बिहार का डांडी है नमक सत्याग्रह स्थल गढ़पुरा

 


(बिहार के नमक सत्याग्रह दिवस 21 अप्रैल पर विशेष)

बेगूसराय, 20 अप्रैल (हि.स.)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव 2.0 मना रहा है। देशवासियों को बताया जा रहा है कि अंग्रेजी दासता से मुक्त कराने के लिए हमारे वीर सपूतों ने किस तरीके से अपने प्राण न्योछावर कर दिए। भारत को आजाद करने के लिए देश के कोने-कोने में आंदोलन हुए और हमें विदेशी शासकों से मुक्ति मिली। लेकिन स्वतंत्रता संग्राम का वह इतिहास बिहार की चर्चा किए बिना सदा अधूरा रहेगा।

सांस्कृतिक विरासत, संपन्नता, राजनीतिक चेतना और क्रांतिकारी विचार धाराओं के लिए सदा से चर्चित बिहार में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आह्वान पर युवाओं की टोली ने अंग्रेज अंग्रेजों को ऐसा सबक सिखाया कि वे सोचने को मजबूर हो गए थे। 1929 अंग्रेजों ने जब घर घर में बनाकर उपयोग किए जाने वाले नमक पर टैक्स लगा दिया तो देशवासियों के मानस पटल पर अंग्रेजों के पूर्व साम्राज्य की एक और लकीर खींच गई थी। लेकिन अंग्रेज शासक के शोषण के खिलाफ संघर्ष कर रहे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इसका कड़ा विरोध किया।

अंग्रेजों द्वारा बनाये गये नमक कानून के विरोध में महात्मा गांधी ने 12 मार्च 1930 को 78 स्वयंसेवकों के साथ साबरमती आश्रम से दांडी की यात्रा शुरू की। छह अप्रैल 1930 को 358 किलोमीटर पैदल चलकर सविनय अवज्ञा आंदोलन के तहत गांधी जी दांडी के समुद्र तट पर पहुंचे और नमक बनाकर अंग्रेजों का कानून भंग किया गया था। छह अप्रैल को दांडी में उन्होंने जब नमक बनाकर नमक कानून भंग किया तो देश में क्रांति की आग फैल गई। कोने-कोने में नमक कानून तोड़ो अभियान शुरू हो गया और यह इस अभियान की लौ बिहार भी पहुंची।

गांधी जी के आह्वान पर ही बिहार में गढ़पुरा के साथ सारण, भागलपुर आदि जगहों पर भी नमक बनाया गया। बिहार में सबसे पहले नमक बनाए जाने वाले जगह की चर्चा लाजमी है। जहां कि मुंगेर में जिला परिषद के अध्यक्ष मो. शाह जुबेर और उपाध्यक्ष डॉ. श्रीकृष्ण सिंह ने इसकी कमान संभाली। आठ अप्रैल 1930 को मुंगेर जिला कांग्रेस की बैठक में तय किया गया कि मुंगेर जिला में नमक बनाया जाए। लेकिन जगह तय करना बहुत ही मुश्किल था, क्योंकि नोनिया (एक तरह की विशेष मिट्टी) से ही नमक बनाया जा सकता था।

बैठक में गढ़पुरा निवासी बिंदेश्वरी प्रसाद सिंह ने गढ़पुरा में नमक कानून भंग करने का प्रस्ताव दिया तो सर्वसम्मति से गढ़पुरा का चयन किया गया। 17 अप्रैल 1930 को कष्टहरणी घाट पर गंगा में प्रवेश कर श्रीबाबू ने नमक कानून भंग करने का शपथ लिया तथा नाव से गंगा पार करने के बाद काफिला गढ़पुरा की ओर चल पड़ा। रास्ते में लोग साथ होते गए कारवां बढ़ता गया। ना दिन में आराम करने का कोई ठिकाना, ना रात में सोनेे के लिए कोई फिक्स जगह।

बेगूसराय होते हुए जब 19 अप्रैल की दोपहर कारवां को मोहनपुर में रोका गया, तो वहां ग्रामीणों को संबोधित करते हुए श्रीबाबू ने कहा था कि मोहनपुर नमक सत्याग्रह आंदोलन का श्रृंगवेरपुर है। वहां से जत्था आगे बढ़ा और रात्रि का पड़ाव कोरिया में हुआ था। श्रीबाबू के नेतृत्व में सत्याग्रहियों के गढ़पुरा पहुंचने से पहले ही लोगों ने तैयारी कर ली थी। रामजानकी ठाकुरबाड़ी के महंत सुखराम दास जी ने अपनी ठाकुरबाड़ी का भंडार भोजन के लिए खोल दिया।

ठाकुरबाड़ी एवं गढ़पुरा डाकबंगला को छोड़कर शेष सभी कुंआ में किरासन तेल और गोबर डाल दिया गया, ताकि सत्याग्रहियों पर दमनात्मक कार्रवाई करने आए अंग्रेजों को पानी भी नसीब नहीं हो। 20 अप्रैल की शाम यह ऐतिहासिक पदयात्रा एक हजार से अधिक लोगों के साथ एक सौ किलोमीटर से अधिक लंबी, दुरुह एवं कष्टप्रद दूरी तय कर गढ़पुरा राम जानकी ठाकुरबाड़ी पहुंचा तो इलाका भारत माता के जयकारे से गूंज उठा। रात में सभी क्रांतिकारियों ने बैठकर तय रणनीति को अंतिम रूप दिया गया।

21 अप्रैल की सुबह भारत माता का जयकारा लगाते हुए जत्था नमक सत्याग्रह के लिए तय किए गए स्थल की ओर चल पड़ा। दुर्गा गाछी (नोनियां गाछी) में जब नमक बनाने का काम शुरू हुआ तो हजारों हजार की भीड़ जुट गई थी। लेकिन प्रशासन को दिए गए सूचना के आधार पर मात्र 30 लोग चारों तरफ से घेरकर खड़े हो गए। नमक सत्याग्रह की प्राप्त सूचना के आधार पर डीएम, एसपी, डीएसपी, एसडीओ बड़ी संख्या में फौज लेकर पहले से ही गढ़पुरा में डटे थे।

नमक बनाने के लिए भट्ठी पर कड़ाह चढ़ते ही एसपी मथुरा प्रसाद सामने आ गए और कहा कि दिए गए सूचना से अधिक लोगों को जुटाकर आप कानून का उल्लंघन कर रहे हैं, तो श्री बाबू ने कहा था सत्याग्रह 30 लोग ही करेंगे। लेकिन यह भीड़ इसलिए जुटी है कि अगर 30 लोग मारे जाएं तो भी नमक बनाने का सिलसिला रुके नहीं। जब नमक बनाने का कार्य शुरू हो गया तो डीएम ली. साहब के आदेश पर अंग्रेजी फौज ने बर्बरता पूर्वक लाठी चार्ज कर दिया। कितने लोग घायल हुए, लेकिन किसी ने भी प्रतिकार नहीं किया। सभी लोग पहले ही निर्णय ले चुके थे कि गोरी सरकार चाहे गोली से उड़ा दे। लेकिन हम में से कोई भी इसका विरोध नहीं करेंगे, पुलिस पर ढ़ेला तक नहीं चलाएंगे, और हुआ भी यही।

सत्याग्रहियों का जत्था जब मुंगेर से चला था तो श्रीबाबू ने कहा था कि ''आज जिस रास्ते से मैं फूलों की माला पहन कर जा रहा हूं, उसी रास्ते से कल मुझे आप जंजीरों में जकड़ा हुआ लौटते देखेंगे'' यह सच हो गया, सत्याग्रह के दौरान जंजीर तो नहीं डाली गई। लेकिन गढ़पुरा में श्रीबाबू के साथ काफी सख्ती की गई। जब पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने आई तो वे चूल्हे पर चढ़े हुए कराह में गिर गए और सिपाहियों ने उन्हें जानवर की तरह घसीटा। जनता रोती रही, परंतु श्रीबाबू के आंखों से आंसुओं की एक बूंद भी नहीं गिरा।

21 अप्रैल 1930 का वह स्वर्णिम दिन बिहार के बेगूसराय जिला (तात्कालीन मुंगेर जिला) के गढ़पुरा का नाम स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के पन्नों पर स्वर्णाक्षर से अंकित हो गया था। जब बिहार केसरी डॉ. श्रीकृष्ण सिंह ने अंग्रेजी हुकूमत के काले कानून के खिलाफ नमक बनाकर ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत की नींव हिला दी। खौलते कराह में गिरकर श्रीबाबू समेत कई सत्याग्रह घायल हो गए, जेल गए। लेकिन नमक बनाने का काम नहीं रुका, महीनों तक लगातार नमक बनाकर गांव-गांव में पुड़िया बना कर भेजा जाता रहा। आज भी यह नमक सत्याग्रह स्थल बिहार में दांडी की याद दिलाता है।

हिन्दुस्थान समाचार/सुरेन्द्र