सतुआन पर सुलतान पोखर में दर्जनों बच्चों का हुआ मुंडन संस्कार

 




अररिया 14 अप्रैल(हि.स.)। जिले के फारबिसगंज में सतुआन पर्व रविवार को विधि विधान के साथ मनाया गया।स्थानीय भाषा में सतुआन की सिरुआ पर्व भी कहा जाता है।फारबिसगंज के सुलतान पोखर में सतुआन के मौके पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे और पोखर में स्नान करने के बाद विधि विधान के साथ पूजा अर्चना करने के बाद दर्जनों बच्चों का मुंडन संस्कार किया गया।

मौके पर अगल बगल के इलाके में मेले सा दृश्य था।महिलाओं ने सुलतान पोखर में स्नान करने के बाद हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक सुलतानी माई के मंदिर में पूजा अर्चना की और चढ़ावा चढ़ाया।स्थानीय लोगो का मानना है कि सुल्तान पोखर व सुल्तानी माई का मंदिर हिंदू- मुस्लिम का सौहार्द का एक ऐसा प्रतीक माना जाता है, जहां एक ही स्थान पर एक साथ दोनो समुदाय के लोगो पूजा और इबादत करते हैं।इस पोखर में स्नान कर मंदिर में आकर जो भी मन्नते मुरादे मांगी जाए वह अवश्य पूर्ण होती है।खासकर निसंतान औरते मुख्य रूप से औलाद की मन्नतें मांगने आती है।

मुगल काल की ऐतिहासिक धरोहर आज भी सांप्रदायिक सौहार्द्र और अमन का पैगाम देती है। मौके पर मां भगवती वैष्णो देवी मंदिर सुल्तान पोखर पूजा कमेटी के अध्यक्ष करण कुमार पप्पू, तुलालन यादव, सुभाष कुमा,र खालतु पूर्वे, सोनू राय, हेमंत सिक्वल, रोहित राय, धीरज मंडल, संजय कुमार सनी, चौधरी, दीपक मंडल, विनय रजक, अरविंद शर्मा, प्रकाश रजक, अमन सिंह ने बताया कि सिरवा के मौके पर सुल्तान पोखर व मंदिर परिसर में मेले जैसा नजारा हर साल देखने को मिलता है।

उल्लेखनीय हो कि सतुआन उत्तरी भारत के राज्यों में मनाया जाने वाला एक प्रमुख पर्व है। यह पर्व गर्मी के आगमन का संकेत देता है। मेष संक्रांति के दिन ही सतुआन का पर्व मनाया जाता है। इस दिन सूर्य मीन राशि से मेष राशि में प्रवेश करता है। इस दिन भगवान को भोग के रूप में सत्तू अर्पित किया जाता है और सत्तू का प्रसाद खाया जाता है। यह खास त्यौहार बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल हिस्से में मनाया जाता है।

बिहार में मिथिलांचल में इसे जुड़ शीतल नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है इस दिन से ही मिथिला में नए साल की शुरुआत हुई थी।सतुआन पर्व बैसाख माह के कृष्णा पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन सूर्य भगवान अपनी उत्तरायण की आधी परिक्रमा को पूरी कर लेते हैं। यह पर्व गर्मी के मौसम का स्वागत करता है। इस पर्व में प्रसाद के रूप में सत्तू खाया जाता है इसलिए इसका नाम सतुआन है। गर्मी के मौसम में सत्तू हमारे शरीर को ठंडा रखने में मदद करता है और लू से बचाता है।

हिन्दुस्थान समाचार/राहुल/चंदा