आत्मरक्षा के लिए सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण जरूरी: प्रसाद रत्नेश्वर
पूर्वी चंपारण,17 मई (हि.स.)। चंपारण के सुप्रसिद्ध कलाविद व सरकार द्वारा नामित रिसोर्स पर्सन प्रसाद रत्नेश्वर ने बिहार में नवनियुक्त 36 ज़िला कला-संस्कृति पदाधिकारियों को राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से अवगत कराया।उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण अपनी आत्मरक्षा के समान है। लगता है इसका अमृत कलश कहीं खो गया है। इसे ढूंढने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति देव संस्कृति है। पटना के होटल पाटलिपुत्र अशोक के प्रेक्षागृह में विशेष प्रशिक्षण देने के क्रम में कलाविद एवं संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के इज़ेडसीसी के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स सदस्य प्रसाद ने बिहार लोक सेवा आयोग के माध्यम से चयनित कला-संस्कृति एवं युवा विभाग के इन अधिकारियों को बिना अनुदान वाली अपनी 40 वर्षीय कठिन रंगयात्रा का संस्मरण सुनाकर प्रेरित किया। बिहार की राष्ट्रीय धरोहरों एवं विरासतों का वर्णन करते हुए बताया कि गहन शोध, प्रलेखन और प्रकाशन के द्वारा हम बिहार को नयी पहचान दिला सकते हैं। राज्य के कलाकारों की निर्देशिका प्रकाशित हो जाने से कला-संस्कृति एवं युवा विभाग की कई कल्याणकारी योजनाओं का लाभ जनपदीय कलाकारों को मिलना शुरू हो जायेगा।
उन्होने इज़ेडसीसी समेत संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार की अन्य संस्थाओं की बिहार में उपस्थिति व उनकी उपलब्धियों के बारे में विस्तार से बताया। लोक संस्कृति के स्रोत एवं संरक्षण, कला का सौंदर्य बोध और प्रशासनिक दृष्टि जैसे विषयों को केंद्र रखकर ज़मीनी हक़ीक़त से रूबरू कराया। प्रशिक्षुओं ने केसरिया और सागर डीह के बौद्ध स्तूप के बारे में भी जानकारी प्राप्त की। उल्लेखनीय है कि बिहार में जिला कला-संस्कृति पदाधिकारी का एक नया कैडर बनाकर सरकार द्वारा 37 कलाकारों की बहाली की गयी है तथा नवनियुक्त को बिपार्ड के माध्यम से अधिकारी के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है।
हिन्दुस्थान समाचार/आनंद प्रकाश/गोविन्द