राजकमल मैथिली और हिन्दी साहित्य के ध्रुवतारा थे : दिलीप कुमार चौधरी

 


सहरसा,17 जून (हि.स.)।जिले के महिषी निवासी साहित्यकार राजकमल चौधरी की पुण्य तिथि 19 जून को मनाया जाता है।मैथिली अभियानी शिक्षाविद दिलीप कुमार चौधरी ने कहा कि राजकमल साहित्य के धड़कन थे।वे सदैव साहित्याकाश मे ध्रुवतारा की भांति चमकते रहेंगें।उन्होंने कहा कि मानव स्वभाव देवतुल्य है। साहित्य समय की षडयंत्रों और परिस्थितियों के सामने समर्पण करके इस दिव्यता को उसके स्थान पर स्थापित करने का प्रयास करता है। भावनाएँ स्पंदित करना, उपदेश नहीं मन के कोमल तारों को झकझोर कर और प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर हमारी सभ्यता साहित्य पर आधारित है।

विश्व के अंतर्गत आत्मा ही राष्ट्र की आत्मा है।आत्मा का प्रतिनिधि साहित्य है और इस साहित्य की धड़कन है राजकमल। उन्होंने अपनी ज्ञान-किरण आभा से संपूर्ण सामाजिक व्यवस्था में व्याप्त अंधकार को दूर करने का प्रयास किया।साहित्य का काम मानवीय मूल्यों की स्वीकृति की घोषणा है। साथ ही नग्न वास्तविकता पर प्रतिबिंब भी है।कहानी का मूल आधार है।संक्रांति के दौरान मानव समाज मूल्य विघटन और मूल्य जड़ता की स्थिति में है। राजकमल एक ऐसे व्यक्ति थे जो जीवन के विरोधी नही जीवन सहायक थे।कठिनाइयों के बावजूद वे समाज के बीच खड़े रहे और अपने विशिष्ट लेखन के माध्यम से जीवन को ऊपर उठाने का प्रयास किया।

उन्होंने रोटी, राजनीति के साथ-साथ स्त्री विमर्श पर भी मुखरता से अपने विचार व्यक्त किये। इतनी कम उम्र लगभग अड़तीस वर्ष में किसी भी लेखक ने इतना कुछ नहीं किया। लोगों ने उन्हें पकड़ कर रखने की कोशिश की।लेकिन उन्होंने अपना पूरा जीवन कम उम्र में ही जी लिया और राष्ट्रीय परिदृश्य पर अपनी अमिट छाप छोड़ी।उन्होंने एक छाप छोड़ी राजकमल अस्तित्ववादी थे। वे स्वतंत्र विचार के अनुयायी थे। वे अस्तित्ववादी तर्क के बजाय मानव जीवन के अनुभव के आधार पर विश्व शक्ति को जानने का प्रयास करते हैं। वे केवल श्वान-बोधात्मक ज्ञान को ही अत्यधिक प्रदान करने वाला ज्ञान मानते हैं। अनुभव शुद्ध अर्थात पूर्वाग्रह से मुक्त होना चाहिए।

राजकमल मध्यम वर्ग की समस्याओं और कुंठाओं से बहुत परिचित थे। उनका मानना था कि सभी समस्याओं की जड़ अर्थ है।स्वतंत्रता अर्थ से आती है! नैतिकता अर्थ से आती है, केवल दर्शन से नहीं,केवल पैसा ही मध्यम वर्ग की पीढ़ियों की रीति-रिवाजों और कुंठाओं को तोड़ सकता है। वह एक संयुक्त परिवार का कमाने वाला था। उनका बचपन का समय कठिनाई में बीता। स्वतंत्र विचारों वाली और खानाबदोशी ने कई स्थानों की यात्रा की।बच्चे का समय उन्होंने मसूरी और कलकत्ता में समय बिताया।

इस प्रक्रिया में उन्होंने अपनी कलम को एक नई धार दी। उनका मानना था कि समर्पण मनुष्य को साहस और शक्ति देता है। हीनता के कारण मनुष्य अपना जीवन निराशा और दुख में व्यतीत करता है। मनुष्य प्रकृति से रहित है मनुष्य प्रकृति से डरता है। पड़ोसियों और प्रतिद्वंद्वियों से बेहद डर! यह ज्ञात से अज्ञात की ओर, दृश्य से अदृश्य की ओर भी ऐसा करता है। समर्पण ही शक्तिशाली बनाता है। क्योंकि समर्पण ही शक्तिशाली जीवन है।

हिन्दुस्थान समाचार/अजय/चंदा