गायत्री शक्तिपीठ में व्यक्तित्व परिष्कार सत्र का आयोजन
सहरसा,07 जनवरी (हि.स.)। गायत्री शक्तिपीठ में रविवार को व्यक्तित्व परिष्कार सत्र का आयोजन किया गया।कार्यक्रम को संबोधित कर डा अरुण कुमार जायसवाल ने कहा यदि मन के विपरीत बातें घटित होती है तो दुःख होता है।जहां सृजन है वहीं त्याग है।तप और त्याग के बल पर हीं यह संसार चलता है। जहां कहीं तप और त्याग नहीं है वह जीवन बेकार है।जो सुख सुविधा लग्जरी का त्याग किया वही अवतारी कहलाते हैं।वही समाज में,राष्ट्र में महात्मा होते हैं।उनकी बताई हुई बातों पर दुनियाँ चलती है।
ज्ञान की बातें बताते हुए कहा अगर समाज का एक अंग,एक नागरिक खतरे में है तो पूरा समाज,पूरा देश खतरे में है।उन्होंने कहा अपने आप स्वयं तक हीं सीमित मत रहिए। अपने दायरे से बाहर आईए और अपने बारी का इन्तजार कीजिए। अगर कोई किसी भी समस्या में है उसकी आप मदद कीजिए। उन्होंने कहा-
पंडित राम शर्मा आचार्य गायत्री परिवार बनाया और उसका नाम दिया विचार क्रांति अभियान। विचार क्या है?विचार मन को जोड़ता है।मन में जो कल्पना होती है बुद्धि उसकी आकृति देती है तो वह विचार वन जाता है।जैसा विचार होता है वैसा हीं उसका मन होता है।विचार हीं उसकी व्यथा है और विचार हीं उसकी संपदा है।इसी विचार के कारण सभी मनोरोग पैदा होते हैं।
जयसवाल ने कहा मनुष्य एक पूल है दो विन्दुओं को जोड़ता हुआ उसका अस्तित्व है।यह विचारों का अस्तित्व है।पुल के इस पार पशुता विचार हीन और उस पार विचार शून्य ऋषि है। बीच की स्थिति मनुष्य की है।अगर पोजिटिव रहेंगे तो धन,संपदा प्रगति बढेगी,अगर निगेटिव विचार है तो दुःख होगा।उन्होंने कहा पं पुज्य गुरुदेव कहते हैं दुर्योधन-बंद बीज है।उसके अंदर भी मनुषत्व सोया हुआ है,और अर्जुन अंकुरित बीज है।वह सोचता है मेरा क्या होगा। हम तो अंकुरित हैं वृक्ष होगा की नहीं,फूलेगें फलेंगे या नहीं?अर्जुन मानव जीवन का प्रतिनिधित्व कर रहा है।भगवान कृष्ण अर्जुन के सोच का समाधान गीता के माध्यम से दे रहे हैं।अर्जुन की परेशानी हम सभी मानवों की परेशानी है।कहने का अर्थ यही है कि आप धीरे-धीरे पूल पार कर सकते हैं या दौर कर पार कर सकते हैं।विचारवान से विचार शून्य की ओर जाना चाहते हैं परमात्मा से मिलना चाहते हैं।इस अवसर पर सुनील, तनुजा ठाकुर, अव्या झा और नीरज ठाकुर ने भी परिष्कार सत्र में अपने अपने विचार व्यक्त किए।
हिन्दुस्थान समाचार/अजय/चंदा