कल्पवास के परिक्रमा में गोविंद हरे-गोपाल हरे के जयकारा से गूंज उठा सिमरिया धाम

 






बेगूसराय, 08 नवम्बर (हि.स.)। बेगूसराय के सिमरिया गंगा तट पर चल रहे राजकीय कल्पवास मेला सिमरिया के द्वितीय परिक्रमा के दौरान बुधवार को पूरा सिमरिया धाम ''जय गोविंद हरे - जय गोपाल हरे और जय श्रीराम की जयकारा से गूंज उठा। परिक्रमा में शामिल होने के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी।

अखिल भारतीय सर्वमंगला सिद्धाश्रम परिसर से स्वामी चिदात्मन जी के सानिध्य में बैंड-बाजे के साथ निकली परिक्रमा सिमरिया धाम बाजार, बिंद टोली चौक, कल्पवास मेला क्षेत्र, मुख्य घाट, रामघाट होते हुए पुनः सर्वमंगला सिद्धाश्रम पहुंच परिक्रमा संपन्न हुई। परिक्रमा में सैकड़ों साधु-संत के साथ हजारों श्रद्धालुओं शामिल थे।

जिला प्रशासन की ओर से बरौनी सीओ सुजीत सुमन, चकिया ओपी प्रभारी दिवाकर कुमार सिंह के नेतृत्व में भारी संख्या में महिला और पुरुष पुलिस बल की टीम मुस्तैद थे। वहीं, सर्वमंगला सिद्धाश्रम के व्यवस्थापक रविन्द्र ब्रह्मचारी, प्रयागराज के माधवानंद, सत्यानंद, मीडिया प्रभारी नीलमणि, दिनेश सिंह, सुशील चौधरी, श्याम, राम एवं लक्ष्मण सहित अन्य व्यवस्था में लगे थे।

परिक्रमा के बाद ज्ञान मंच से श्रद्धालुओं की भीड़ को संबोधित करते हुए स्वामी चिदात्मन जी ने कहा कि भारत धर्म प्रधान देश है और अपने देश में वर्ष में तीन महीने में अलग-अलग जगहों पर कल्पवास की परंपरा है। कार्तिक माह में सतयुग का प्राकट्य हुआ था और अनादि काल से ही कार्तिक महीने में कल्पवास बेगूसराय के सिमरिया में गंगा तट पर लग रहा है।

उन्होंने कहा कि कल्पवास के दौरान स्नान करने से एक वर्ष तक गंगा स्नान करने का फल प्राप्त होता है। सिमरिया समुद्र मंथन, शास्त्र मंथन, शरीर मंथन की स्थली मिथिला का दक्षिणी प्रवेश द्वार है। यहां कल्पवास के दौरान स्नान और कल्पवास की परिक्रमा करने से इहलौकिक और पारलौकिक पुण्य मिलता है। तभी तो इस आदि कुंभस्थली पर सिर्फ मिथिला ही नहीं, देशभर से लोग आते हैं।

चिदात्मन जी ने कहा कि सिमरिया में कल्पवास अनादि काल से चल रहा है और पर्व स्नान का विशेष महत्व है। यहां छठ व्रती स्नान करने आते हैं, एकादशी में रात्रि जागरण करते हैं। ''सर्वस्व लोचनम शास्त्रम'' यानी तीसरी आंख शास्त्र को ही कहा गया है। दो आंख से हम संसार को देखते हैं, जबकि तीसरी आंख तत्व ज्ञान और पुरनत्व की प्राप्ति करने वाला होता है।

हमारी संस्कृति और हमारे देशवासी महान हैं। हमारा भारत ऋषियों, मुनियों, संत, महात्माओं, सती और राजाओं का देश है। हमें अपने देश पर गर्व है। कल्पवास धर्महित, जनहित, समाजहित और संस्कृति हित के लिए होता है। देवभूमि भारत वासी धर्म को अपने जीवन में उतारते हैं। विश्व ब्रह्मांड को आत्मवत देखते हैं, विश्व ब्रह्मांड का कल्याण करते हैं। हम सनातन धर्म के ध्वजवाहक हैं, सबकी शांति और एक-दूसरे के कल्याण की कामना करते हैं।

हिन्दुस्थान समाचार/सुरेन्द्र/गोविन्द