अहंकार के आसन पर बैठ कर कोई ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता : डॉ अरुण कुमार जायसवाल

 




सहरसा,17 मार्च (हि.स.)।गायत्री शक्तिपीठ में रविवार को व्यक्तित्व परिष्कार सत्र से पूर्व रुद्राभिषेक, हवन-यज्ञ एवं विभिन्न संस्कार हुए। परिष्कार सत्र को संबोधित करते हुए डॉ. अरुण कुमार जायसवाल ने कहा ध्यान मन का स्नान है।ध्यान से हम उर्जावान तेजवान बनते हैं।ध्यान कीजिए।हमारे मन की कोठरी में चारोओर अंधेरा भरा पड़ा है यह कैसे दूर हो इसके लिए भगवान की साधना,आराधना,उपासना कीजिए।

भगवान का मतलब विभूतियों का समुच्य। विभूतियों का समूह ही भगवान है।हमारे अंदर कसांइ कल्मस की परत चढ़ी हुई है।आपने भगवान के मूर्ति के समक्ष प्रसाद चढ़ा दिया। पूजा-पाठ कर लिया, माला फेर लिया इससे आपका कोई भला नहीं होगा।हमारे अंदर भी वुद्धि आए इसलिए भगवान की साधना उपासना और आराधना कीजिए।भगवान सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान हैं।

उन्होंने कहा जानकारी जब ज्ञान में उतरे तब उसे तब उसे ज्ञान कहते हैं।इन्द्रियां भी उसको अनुभव करती है।ज्ञान आपके व्यक्तित्व में आपके पर्सनैलिटी उस प्रकार घुल जाता है जैसे रक्त में सर्करा घुल जाता है और सेवा वह है जो आपकी संवेदना से पनपती है।संवेदना हमेशा सेवा की कोख से जन्म लेती है। वही सारे दुर्गुण निष्ठुरता के कोख से पैदा लेते हैं।दया,समता,ममता,प्रेम ये सभी संवेदना के कोख से पैदा लेते हैं तथा छल प्रपंच ,कपट है यह सभी निष्ठुरता के कोख से पैदा लेते हैं।

उन्होंने सेवा के संबंध में कहा-ऐसी सेवा हो जिसके अंदर आपके मन का दर्द छिपा हो और सेवा ऐसी होनी चाहिए जिसमें अहंकार विसर्जित हो।जहां अहंकार संवर्जित होता है वह सेवा नहीं है।जहां अहंकार विसर्जित होता है वह सेवा है।संवेदना जैसे बुखार में होती है उसी तरह संवेदना आपको बेचैन कर देती है सेवा। ज्ञान के संबंध में जैसा कि अष्टावक्र और राजा जनक का उदाहरण देते हुए कहा-अहंकार के आसन पर बैठ कर कोई ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता है।

हिन्दुस्थान समाचार/अजय/चंदा