मिथिला के महाकाल बाबा जालंधर नाथ महादेव का होता है विशेष श्रृंगार पूजा
ग्रामीणों ने की इस ऐतिहासिक व पुरातात्विक महत्व के स्थल को सरकारी संरक्षण की मांग
सहरसा,04 मार्च (हि.स.)।मिथिला में महाकाल के नाम से प्रसिद्ध जिला के गम्हरीया पंचायत अवस्थित रामपुर गांव में तिलावे नदी के तट पर अवस्थित है बाबा जालंधर नाथ शिवलिंग। बाबा जालंधर नाथ शिवलिंग एक स्वयंभू अंकुरित शिवलिंग है। जहां आसपास के हजारों भक्त नित्यप्रति पूजन को आते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस शिवलिंग का महात्म्य असुर राज जालंधर से बतलाया जाता है।ग्रामीणों के अनुसार जहां यह शिवलिंग अवस्थित है।वहां एक घना जंगल था जिसमें बैर के वृक्षों का अत्यंत ही सघन झूरमुट के बीच मिट्टी के अंदर शिवलिंग अवस्थित था। वहां आसपास बहुत सारे विषैले सर्प होने के कारण लोगों का आना जाना नहीं के बराबर होता था। लगभग दो सौ वर्ष पूर्व योग-साधना के परम गुरु, बाबा लक्ष्मीनाथ गोसाईं जी के एकमात्र योग दीक्षा से पूर्ण शिष्य रघुवर गोसाईं जी के वहां से गुजरने के क्रम में उन्हें वहां शिवलिंग होने का आभास हुआ, जिसके बाद ग्रामीणों को साथ कर वहां खुदाई कि गई तो शिवलिंग मिला। गांव से दूर निर्जन एवं जंगली जगह पर होने के वजह से ग्रामीणों ने शिवलिंग को खोदकर गांव लाने का प्रयास किया लेकिन ज्यों खुदाई कि गई शिवलिंग कि मोटाई बढ़ती ही गई जहां शिवलिंग का उपरी भाग काला और गोलाकार था वहीं अंदर का भाग गेहुंआ एवं अष्ट भुजाकार हो गया था।लगभग पच्चीस फ़ीट अंदर तक खुदाई करने के उपरांत शिवलिंग के अंदर से विषैले कीड़े,बिच्छू,निकलने लगे। तब जाकर ग्रामीणों द्वारा खुदाई बंद कर वहां पूजा आरंभ कर दी गई। अभी भी वहां आसपास बहुत सारे विषैले सर्प पाए जाते है।रात्रि के समय तो शिवलिंग के ऊपर कई सर्पों का बसेरा रहता है।
हाल के विगत दो वर्ष पूर्व शैलेश कुमार झा द्वारा जीर्णोद्वार करने के क्रम में पुण: वहां खुदाई करवाई गई जिसमें शिवलिंग का स्वरूप महाकाल स्वरूप में उभरकर आया। साथ ही जो ग्रामीणों में कहा जा रहा था वैसा ही देखने को मिला। शिवलिंग के चारों और जनेउ का चिन्ह खुदा हुआ है।यूं तो यहां वर्ष के प्रत्येक दिन श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है लेकिन सावन, भादो चतुर्दशी एवं शिवरात्रि को बहुत सारे कांवरियां मुंगेर छर्रापट्टि, अगुवानी एवं महादेवपुर से जल लेकर बाबा जालंधर नाथ का जलाभिषेक करते हैं।बाबा मंदिर मे नित्यप्रति गौड़ीशंकर ठाकुर एवं रामशरण ठाकुर द्वारा उनके पूर्वजों से ही ग्रामीणों के सहयोग से दो वक्त विषेष पूजा किया जाता है,जिसमे प्रातःकालीन पूजा, एवं रात्रिकालीन पूजा और विशेष श्रृंगार किया जाता है।मंदिर से खुदाई के क्रम में बहुत सारे पुरातात्विक अवशेष भी मिले थे।
हिन्दुस्थान समाचार/अजय/चंदा