15 दिसंबर को जिला परिषद अध्यक्ष का चुनाव, राजनीतिक जोड़-तोड़ तेज

 


गोपालगंज, 6 दिसंबर (हि.स.)। जिला परिषद अध्यक्ष सुभाष सिंह के सदर विधायक निर्वाचित होने के बाद जिला परिषद अध्यक्ष के पद खाली रहे जिला परिषद अध्यक्ष पद के लिए आगामी 15 नवंबर को चुनाव होगा। उसी दिन निर्वाचित अध्यक्ष को शपथ भी दिलाया जाएगा। जिसे लेकर एक ओर जहां प्रशासनिक तैयारी पूरी करने में जुटा हुआ है।

शनिवार को जिला परिषद के 32 सदस्यों को इसकी जानकारी दी गई।निर्वाचन पदाधिकारी (पंचायत) सह जिलाधिकारी पवन कुमार सिन्हा ने चुनाव को लिए कार्यक्रम घोषित किया है। जिसमें आगामी 15 दिसंबर को डीएम के अभिभाषण के साथ कार्यक्रम का शुरूआत होगा। 15 दिसंबर को जिला परिषद के अध्यक्ष के लिए 11: 30 बजे नामांकन किया जाएगा। उसी दिन नामांकन पत्रों की जांच होगी। उसके बाद नाम वापसी की घोषणा 12: 06 बजे की जाएगी। 12: 31 से 01:31 बजे तक मतदान का समय निर्धारित किया गया है। शाम 01:35 के बाद मतगणना का कार्य किया जाएगा और 02: 15 शाम में अध्यक्ष को शपथ ग्रहण कराया जाएगा।

वहीं दूसरी ओर अध्यक्ष पद पर कब्जा को लेकर जोड़-तोड़ की राजनीति शुरू कर दी है। जिला परिषद अध्यक्ष पद पर होने वाले चुनाव को लेकर जिले में राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गयी है।कलेक्ट्रेट के सभागार में होगा अध्यक्ष पद का चुनाव होगा। राज्य निर्वाचन आयोग ने जिला परिषद के अध्यक्ष के रिक्त पद पर निर्वाचन कराने एवं निर्वाचित अध्यक्ष को शपथ दिलाने के लिए 15 दिसंबर की तिथि निर्धारित की है।

जिला निर्वाचन पदाधिकारी (पंचायत) सह जिलाधिकारी पवन कुमार सिन्हा के नेतृत्व में अध्यक्ष पद का चुनाव कराया जाएगा। जबकि उनके द्वारा ही निर्वाचित अध्यक्ष को शपथ दिलाया जाएगा। जिसको लेकर सदस्यों को पत्र भेज कर सूचना दे दिया जा रहा है। चुनाव की जहां प्रशासनिक तैयारी पूरी करने में वरीय अधिकारी जुटे हुए है।जिला परिषद में अध्यक्ष को लेकर समीकरण बनना शुरू हो गया है। इस बार कुछ नए चेहरे भी जोर आजमाइश शुरू कर दी है।

सूत्रों कि मानें तो जो तीन सदस्य अध्यक्ष पद के प्रबल दावेदार है, वे सदस्यों से छिपकर मिल रहे और अपने पक्ष में गोल बंद करने के लिए समीकरण बनाने में लगे हुए है। दो दशक से जिला परिषद अध्यक्ष पद पर वहीं व्यक्ति आसीन होते आए आया है। जिसका साथ कुचायकोट विधानसभा के विधायक अमरेन्द्र कुमार पांडेय व उनके बड़े भाई बाहूबली सतीश पांडेय को मिला है। वहीं दूसरी ओर पहले तो जातीय गणित, फिर दलीय फार्मूला और फिर व्यक्तिगत संबंधों पर समीकरण बनाए जाने की बात भी कही जा रही है।

मैदान में सक्रिय रहने वाले कूटनीतिज्ञों बताते हैं कि ताकतवर प्रत्याशी के पक्ष में ही सदस्यों का रुझान होता है खासकर जिला परिषद अध्यक्ष के पद को मुख्यधारा की राजनीति प्रभावित करती रही है। मुख्यधारा के नेताओं के प्रभाव का असर इस चुनाव में देखा जाता है। ये अलग बात है कि चुनाव दलीय आधार पर नहीं होता है लेकिन इससे पहले जब-जब चुनाव हुए हैं। सत्ताधारी दलों की तरफ रुझान वाले नेताओं की ही जीत होती रहती है।

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हिन्दुस्थान समाचार / Akhilanand Mishra