नदी एवं जल संरक्षण के लिए भारतीय ज्ञान परंपरा ही अनुकरणीय : प्रो. भारती

 




सहरसा,30 जनवरी (हि.स.)।भारतीय ज्ञान परंपरा में नदी और समाज विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी और परिचर्चा का आयोजन नदी मित्र ईकाई द्वारा की गई।परिचर्चा में प्रमुख वक्ता के रूप में नदी विशेषज्ञ तथा फिजी में भारत के पूर्व सांस्कृतिक राजनायिक प्रो.ओम प्रकाश भारती ने विचार रखते हुए कहा कि किनारों को मयार्दाओं को तोड़ना नदियों का शास्त्रसम्मत आचरण है।भूगोल भी यहीं कहता है।नदियां उफनती है,बाढ़ लाती है।भारतीय ज्ञान परंपरा में बाढ़ वृद्धि और समृद्धि का प्रतीक रही है।ज्ञान और धन को बाढ़ सामाजिक अपेक्षाएं रहीं हैं।तो नदियों को बाढ़ की उपेक्षा क्यों।नदियाँ उपेक्षित हुई।नदी आधारित पशुपालन और कृषि व्यवस्था से लोग दूर होते गए। नदियों को बांधा गया।रोड तथा रेल लाइन बनाने के क्रम में नदियों का मार्ग अवरुद्ध हुआ।जिस बाढ़ के कारण जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती थी और अच्छी फसलें होती थी,अब वह विनाशकारी है। उत्तर बिहार की जीवनदायिनी नदियां और अच्छी वर्षा लोगों के लिए वरदान था।

डॉ ओम प्रकाश भारती ने नदी, समाज व सरकार विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि भारत की नदियां पूजनीय व देवी-देवताओं की श्रेणी में आती है। उन्होंने कहा कि राजाओं के समय में नदियां समाज की थी और अब सरकार की है।सरकार ने नदियों पर बांध बनाया।नहरे निकाले और पनबिजली घर बनाया।जिससे नदियों का प्राकृतिक बहाव अवरुद्ध हुआ।वही नदियों को प्राकृतिक दायित्व निभाने से रोका गया।नदी व पानी तो प्रकृति से प्राप्त है और इस पर समाज का अधिकार होना चाहिये, समय में स्वच्छ जल की उपलब्धता सरकार व समाज की सबसे बड़ी चुनौती है।

हिन्दुस्थान समाचार/अजय/चंदा