सावधान : पर्यावरण और स्वास्थ्य का दुश्मन है पटाखा
बेगूसराय, 10 नवम्बर (हि.स.)। हर ओर दीपों के पर्व दीपावली की धूम मचनी शुरू हो गई है। पटाखों का बाजार सज गया है, दुकानों में 20 डेसिबल से 180 डेसिबल का भारतीय ही नहीं चाइनीज पटाखा भी बिक रहा है। शहर से लेकर गांव तक के मोहल्ले में छिटपुट पटाखे फूटने भी लगे हैं। लेकिन, यह सनातन संस्कृति का अंग या परंपरा नहीं, बल्कि पर्यावरण और स्वास्थ्य का दुश्मन है।
एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) जब दीपावली में होने वाला ध्वनि प्रदूषण चिंता का विषय है। शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन से यह बात सिद्ध हो चुकी है कि प्रदूषण का स्तर अधिक है। ज्वलनशील एवं हानिकारक पटाखों के कारण परिवेश से वायु में प्रदूषक तत्व एवं ध्वनि स्तर पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। पटाखों से उत्पन्न ध्वनि की तीव्रता का मानव अंगों पर दुष्प्रभाव पड़ता है।
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा अधिसूचना जारी कर पटाखों के फूटने से होने वाले शोर का मानक तय करते हुए फोड़ने से चार मीटर की दूरी 125 डीबी (एआई) या 145 डीबी (सी) पीक से अधिक ध्वनि स्तर जनक पटाखों का विनिर्माण विक्रय और उपयोग वर्जित किया गया है। प्रतिबंधित पटाखों का विक्रय नहीं हो इसके लिए पुलिस प्रशासन को दायित्व दिए गए हैं।
लेकिन सभी आदेश के बावजूद कारोबारी अधिक ध्वनि उत्पन्न करने वाले पटाखों की बिक्री कर रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम कर रहे लोगों का कहना है कि पटाखों के जलने से उत्पन्न आवाज कई गंभीर बीमारियों को जन्म देता है। पर्यावरण के लिए खतरा रहने के साथ ही पटाखों का तेज आवाज बीमार चल रहे लोगों के लिए खतरनाक है। पटाखा फटने के बाद कागज के टुकड़े एवं अधजला बारूद बच जाता है।
इस जानलेवा कचरा के संपर्क में आने वाले पशुओं एवं बच्चों के दुर्घटनाग्रस्त होने की संभावना रहती है। इसलिए पटाखा खतरनाक है, थोड़ा बहुत ग्रीन पटाखों का उपयोग किया जा सकता है। पटाखों को जलाने के बाद उत्पन्न कचड़े को ऐसे स्थान पर रखना चाहिए, जहां प्राकृतिक जल स्त्रोत एवं पेयजल स्त्रोत्र प्रदूषित होने की संभावना नहीं हो, क्योंकि विस्फोटक सामग्री खतरनाक रसायनों से निर्मित होती है।
पटाखों की टेस्ट रिपोर्ट के अनुसार एटम बम (टाइमिंग बम) 135 डेसीबल, चाइनीज पटाखे (एक हजार की लड़ी) 128 डेसीबल, चाइनीज पटाखे (छह सौ की लड़ी) 132 डेसीबल, नाजी (एटम बम) 135 डेसीबल, मेजिक फार्मूला (फलावर बम) 136 डेसीबल, एटम बम (फॉयल्ड) 131 डेसीबल, हाइड्रोजन बम 134 डेसीबल, राजन क्लासिक धमाका (फौयल्ड बम) 136 डेसीबल, सम्राट क्लासिक बम (डीलक्स) 136 डेसीबल, हाइड्रो फॉयल्ड (बम) 132 डेसीबल, थ्री साउंड (बम) 119 डेसीबल, एटम बम (स्थानीय) 136 डेसीबल ध्वनि उत्पन्न करता है।
पटाखा से दूर रहने की अपील करते हुए श्री विश्वबंधु पुस्तकालय बखरी के अध्यक्ष कौशल किशोर क्रांति कहते हैं कि दीपावली खुशियों और समृद्धि का त्योहार है। खुशियां मनाने के बहुत सारे तरीकों में पटाखा फोड़ना भी एक वर्तमान तरीका है। पटाखे फोड़ना सनातन संस्कृति का अंग नहीं रहा है, पूरे वर्ष में दीपावली के समय ही सबसे अधिक पटाखे फोड़े जाते हैं। इससे निकलने वाले जहरीला धुआं, अत्यधिक शोर एवं सैकड़ों प्रकार के हानिकारक द्रव्य पर्यावरण में गंभीर वायु, ध्वनि और मिट्टी प्रदूषण का बड़ा कारण बनते हैं।
इसका प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष, गंभीर प्रतिकूल परिणाम लोगों की सेहत और पर्यावरण पर पड़ता है। इसके हानिकारक प्रभाव से मानव समुदाय में सांस, स्किन, फेफड़े से संबंधित बीमारियों समेत कई बीमारियों का खतरा कई गुणा बढ़ जाता है। पृथ्वी की आबोहवा में नाकारात्मक परिवर्तन को बल मिलता है, पृथ्वी का तापमान बढ़ने के साथ ही मौसम चक्र में भी बदलाव संभव है। समय की आवश्यकता को देखते हुए सभी को पटाखों के इस्तेमाल कम से कम करने के लिए प्रेरित जरूर करें।
हिन्दुस्थान समाचार/सुरेन्द्र/चंदा