बिहार के सभी छह आकांक्षी जिलों में ''खुशहाल बचपन'' अभियान शुरू

 




बेगूसराय, 26 मई (हि.स.)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सोच के अनुरूप नीति आयोग द्वारा चयनित आकांक्षी जिलों में कई ऐसे कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जो बदलाव और सर्वांगीण विकास के लिए महत्वपूर्ण साबित हो रहा है। इसी कड़ी में बेगूसराय सहित बिहार के सभी छह आकांक्षी जिलों में खुशहाल बचपन अभियान शुरू किया गया है।

''खुशहाल बचपन अभियान'' समेकित बाल विकास सेवाएं एवं पीरामल फाउंडेशन की एक संयुक्त पहल है। जो प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (ईसीसीई) के सिद्धांतों पर आधारित है। यह सुरक्षात्मक और सक्षम वातावरण के भीतर देखभाल, स्वास्थ्य, पोषण, खेल और प्रारंभिक शिक्षा के तत्वों को शामिल करता है। इसका उद्देश्य बच्चों के समग्र विकास के लिए एक मजबूत नींव तैयार करना है।

बच्चे को अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने में सक्षम बनाने के लिए एक उत्तरदायी पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना है। खुशहाल बचपन अभियान के माध्यम से बिहार के छह आकांक्षी जिले बेगूसराय, कटिहार, सीतामढ़ी, नवादा, शेखपुरा एवं खगड़िया के चयनित छह सौ आंगनबाड़ी केंद्रों में शून्य से छह वर्ष के बच्चों के लिए प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा एवं इन्फेंट एंड यंग चाइल्ड फीडिंग अभ्यास में सुधार करना है।

बेगूसराय में कार्यक्रम लीड कर रहे दीपक मिश्रा ने बताया कि बच्चों के जीवन के पहले छह वर्ष महत्वपूर्ण होते हैं। क्योंकि इन वर्षों में विकास की दर विकास के किसी भी अन्य चरण की तुलना में अधिक तीव्र होती है। अनुसंधान से पता चलता है कि छह वर्ष की आयु तक बच्चे का मस्तिष्क का 90 प्रतिशत विकास हो चुका होता है। शून्य से छह आयु वर्ग के 158.8 मिलियन बच्चे भारत की 13.1 प्रतिशत जनसंख्या हैं।

पांच वर्ष से कम आयु के 50 प्रतिशत से अधिक बच्चे एनीमिया के शिकार हैं। पांच वर्ष से कम की आबादी का एक तिहाई नाटा और कम वजन का है। इन प्रारंभिक वर्षों में बच्चे के स्वास्थ्य, पोषण, देखभाल की गुणवत्ता और मनो-सामाजिक वातावरण की गुणवत्ता जैसे निर्धारक बच्चे के समग्र विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एक बच्चे के समग्र विकास को प्रभावित करने में आंगनवाड़ी सेवाएं अति महत्वपूर्ण हैं।

जागरूकता की कमी, पहुंच की कमी या प्रदान की गई सेवा संसाधनों, कौशल या बुनियादी ढांचे की कमी के कारण बच्चों के बेहतर विकास में बाधा डालती है। खुशहाल बचपन अभियान का उद्देश्य प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा अभ्यास, प्रक्रियाओं एवं प्रथाओं में रणनीतिक बदलाव लाकर तथा संबंधित विभाग एवं समुदाय के मध्य परस्पर समन्वय के माध्यम से स्कूल पूर्व शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण में आने वाली चुनौतियों का समाधान करना है।

इसके साथ ही स्वास्थ्य, संज्ञानात्मक विकास और प्रतिरक्षा को प्रभावित करने वाली प्रथाओं को विकसित करने तथा बढ़ावा देने के लिए एक अभिसरण पारिस्थितिकी तंत्र की स्थापना करना है। आंगनवाड़ी में शून्य से छह साल के बच्चों के लिए चल रही सेवाओं के प्रभावी क्रियान्वयन में चुनौतियां और कमियों को दूर करने, उनके कार्यान्वयन में सुधार करने एवं बाल विकास परिणामों में तेजी लाने के उद्देश्य से खुशहाल बचपन अभियान (केबीए) की शुरुवात की जा रही है।

इसमें आंगनवाड़ी केन्द्रों में नामांकन और सेवा उपयोग में सुधार करना है। प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (ईसीसीई) के तहत तीन से छह वर्ष की आयु के बच्चों के संज्ञानात्मक और सामाजिक भावनात्मक विकास में सुधार करना तथा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और देखभाल करने वालों की क्षमता निर्माण के माध्यम से स्कूल की तैयारी को सक्षम बनाना है।

इन्फेंट एंड यंग चाइल्ड फीडिंग अभ्यास पर ध्यान केंद्रित तथा विकास निगरानी को मजबूत कर आंगनवाड़ी केन्द्रों में नामांकित शून्य से छह वर्ष के बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण में सुधार करना है। अभिसरण और हिमायत के माध्यम से सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करना है। पंचायती राज सदस्यों, स्वयंसहायता समूहों, स्वयंसेवकों, आस्था आधारित नेताओं सहित समुदाय के सहयोग से केंद्र की सेवाओं को सुदृढ़ करना है।

खुशहाल अभियान की रणनीति आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं एवं पर्यवेक्षकों की क्षमतावर्धन कर दी जाने वाली सेवाओं को सुदृढ़ करना है। स्वयंसेवक, पंचायती राज संस्थान, स्वयंसेवी संस्था, धार्मिक नेताओं एवं स्वयं सहायता समूह से समर्थन लेकर प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा एवं इन्फेंट एंड यंग चाइल्ड फीडिंग में सुधार एवं समुदायों को संवेदनशील बनाकर आंगनवाड़ी सेवा उपयोग में सुधार करना है।

इसके अलावा क्रियान्वयन में आने वाली बाधाओं की अन्तर्विभागीय समन्वय स्थापित करते हुए समाधान आधारित दृष्टिकोण को अपनाना है। खुशहाल बचपन अभियान तीन स्तंभ पर तैयार किया गया है, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं एवं सुपरवाइजर सशक्तिकरण, समुदाय का तैयार होना (कम्यूनिटी रेडीनेस) एवं सिस्टम सशक्तिकरण (सिस्टम रेडीनस)।

इससे स्वास्थ्य, पोषण एवं शिक्षा सहित प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल पर आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के बीच बेहतर समन्वय के साथ शून्य से छह वर्ष के बच्चों के बेहतर नामांकन और तीन से छह वर्ष की आयु के बच्चों के सीखने के स्तर में सुधार। माताओं के बीच बेहतर आईवायसीएफ अभ्यास और छह वर्ष तक की आयु के बच्चों में पोषण की स्थिति में सुधार तथा आंगनबाड़ी केंद्र पर दिए जाने वाले सेवाओं की बेहतर गुणवत्ता की उम्मीद है।

हिन्दुस्थान समाचार/सुरेन्द्र/चंदा