भागमभाग भरी जिंदगी में इन सामान्य से दिखने वाले लक्षणों को अनदेखा न करें, तुरंत मनोवैज्ञानिक से मिलें
आज की भागमभाग और हर क्षेत्र में गला काट प्रतिस्पर्धा से भरी जिंदगी में तनाव, उदासी और दुःख का होना बहुत सामान्य सी बात है। वैसे तो जीवन में दुःख सुख लगे रहते हैं, परंतु यदि हम किसी दुःखद घटना के बाद उससे उबर नहीं पा रहे, उदासी और तनाव लम्बे समय तक जीवन में बनी रह रही है और इसके चलते हमारी दिनचर्या पर असर पड़ रहा हो या फिर हर दिन जीवन नीरस लगने लगे तो थम कर सोचने की जरुरत है।
बीते कुछ सालों में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता बढ़ी है। साधारण चिन्ता, विकार, फोबिया हो या डिप्रेशन, ओ. सी.डी, बाईपोलर और शिज़ोफ्रेनिया जैसे गंभीर रोग अथवा अल्जाइमर और पार्किन्सन्स जैसे वृद्धावस्था के रोग, लोग इनके मतलब अब समझने लगे हैं। लेकिन फिर भी इन बीमारियों के लिए उचित कदम उठाने में ज्यादातर लोग देरी कर देते हैं। नतीजा ये होता है कि रोग काफी गंभीर रूप ले लेता है। कभी कभी स्थिति लाइलाज हो जाती है। बहुत बार ये भी देखने में आता है कि रोगी इतने आघात या मानसिक रूप से इतना टूट जाता है कि चिकित्सा के लिए भी तैयार नहीं होता। ऐसे में परिजनों या मित्रों का प्रयास होना चाहिए कि प्रेम और धैर्य से काम लें। कई बार रोगी सामान्य बने रहने का दिखावा भी करते हैं। 'सब ठीक ही तो है' अरे! कुछ ज्यादा भी दिक्कत नहीं'। इस तरह की बात करते हैं, ऐसे में भी परिजनों की भूमिका यह होनी चाहिए कि बिना हीला हवाली किये उनको उचित इलाज के लिए प्रोत्साहित करें।
प्रश्न ये है कि मनोविज्ञानिक की सलाह कब ली जाए?
लक्षणों के आधार पर पहचान सकते हैं –
- अगर किसी व्यक्ति के साधारण व्यवहार में एकाएक इतना परिवर्तन आ जाए कि उसके मित्र एवं परिजनों को अटपटा लगे।
- कोई व्यक्ति अत्यधिक उदास दिखने लगे। बहुत अधिक चिढ़चिढ़ापन हो। छोटी छोटी सी बात पर आपा खो दे। झुञ्लाहट से जवाब दे। या छोटी सी बात पर रोने लगे।
- बहुत जल्दी घबरा जाए, किसी छोटी बात पर भी बहुत डरे या निराशा की बात करे।
- ऐसी चीजों से डरने लगे जो लगे जो डर उत्पन्न करने वाली न हों।
- कभी-कभी निरर्थक विचार, जो एक ही प्रकार के हों, बार-बार उसके मन में आने लगे।
- लोगों से मिलना जुलना बहुत कम कर दे, बार बार कहे 'अब मेरा मन नहीं करता या मुझे नहीं जाना'
- बहुत अधिक अकेला रहना, खाने, अच्छा पहनने का मन न करना।
- हर समय शारीरिक रोग का अनुभव करना, जिसकी जांच कराना या जांच कराने के विषय में सोचना।
- शक या शंका करना, नींद में कमी आना या बहुत अधिक सोना।
- बिना किसी बात के तनाव रहना या चिंतित रहना।
- शरीर में अकारण दर्द का बने रहना, मेडिकल टेस्ट में दर्द का कोई कारण न आना, लंबे समय तक कब्ज, एसिडिटी, गैस, पाचन सम्बन्धी अन्य परेशानियाँ।
- अक्सर सिरदर्द, थकान या दिल की धड़कन में अनियमितता।
- महिलाओं में पीरियड्स का अनियमित होना या लंबे समय तक पी सी ओ डी की समस्या।
- पढ़ाई, जॉब या बिज़नेस में लगातार गिरावट के चलते मानसिक स्वास्थ्य के खराब होने से कार्यक्षमता में कमी आती है। किसी काम में मन नहीं लगता ये भी प्रमुख लक्षण है।
यहाँ ये सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि क्या इन लक्षणों के आधार पर अपने को रोगी मान लिया जाए? ये कुछ सामान्य लक्षण है जो ये इंगित करते है कि अमुक के साथ कुछ गलत है या वातावरण के बदलते कारणों और दबाव के सामने वह समायोजन नहीं कर पा रहा। यदि ऊपर दिए लक्षणों में से कुछ (सभी नहीं) दो या तीन हफ्ते तक रहे तो निश्चित तौर पर व्यक्ति को देर किये बिना मनोवैज्ञानिक सलाह की जरुरत है। रोग किस प्रकार का है उसकी गंभीरता और जटिलता के आधार पर इलाज किया जाता है। समय पर उपचार से व्यक्ति फिर से एक सामान्य जीवन हंसी खुशी से बिता सकता है।