कर रहे हैं बनारस की यात्रा तो जरूर घूमें ये 6 स्थान, आध्यात्म से जुड़ा हैं इनका नाता 

जब भी बनारस, वाराणसी या काशी का नाम आता हैं तो मन में एक निर्मल और पवित्र छवि बन जाती हैं। यहां गंगा जैसी पवित्र नदी के साथ ही कई जगहें हैं जो आध्यात्म से जुड़ी हुई हैं और अपना पौराणिक महत्व भी रखती हैं। अगर आप भी बनारस की यात्रा कर रहे है या घूमने जाने का प्लान बना रहे हैं तो आज हम आपके लिए बनारस के कुछ प्रसिद्द स्थलों के बारे में बताने जा रहे हैं जहां घूमने का मजा लेकर आपको अलौकिक आनंद की प्राप्ति होगी। तो आइये जानते हैं बनारस की इन जगहों के बारे में-

 

जब भी बनारस, वाराणसी या काशी का नाम आता हैं तो मन में एक निर्मल और पवित्र छवि बन जाती हैं। यहां गंगा जैसी पवित्र नदी के साथ ही कई जगहें हैं जो आध्यात्म से जुड़ी हुई हैं और अपना पौराणिक महत्व भी रखती हैं। अगर आप भी बनारस की यात्रा कर रहे है या घूमने जाने का प्लान बना रहे हैं तो आज हम आपके लिए बनारस के कुछ प्रसिद्द स्थलों के बारे में बताने जा रहे हैं जहां घूमने का मजा लेकर आपको अलौकिक आनंद की प्राप्ति होगी। तो आइये जानते हैं बनारस की इन जगहों के बारे में-


श्री काशी विश्वनाथ मंदिर 

अगर आप बनारस घूमने आये हैं और काशी विश्वनाथ मंदिर नहीं गए तो आपका आना व्यर्थ है क्यूंकि काशी में भगवान शिव का भव्य मंदिर है जिसको “काशी विश्वनाथ मंदिर” के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर गंगा नदी के साथ में स्थित है। यह मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। काशी विश्वनाथ मंदिर का हिन्दू धर्म में एक विशिष्ट स्थान है और यह कई हजारों वर्षो पुराना मंदिर है। एक मान्यता के अनुसार गंगा नदी में स्नान करने और इस मंदिर में भगवान शिव के दर्शन करने से मोक्ष कि प्राप्ति होती है। अपने इतिहास को पढ़ने से पता चला कि अहिल्याबाई होलकर ने काशी विश्वनाथ मंदिर बनवाया जिस पर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने सोने का छत्र बनवाया। ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने ज्ञानवापी का मंडप बनवाया और महाराजा नेपाल ने वहां विशाल नंदी प्रतिमा स्थापित करवाई। हमारी राय माने तो काशी विश्वनाथ मंदिर में भगवान शिव के दर्शन के साथ-साथ अन्नपूर्णा मंदिर भी जरूर जाएँ जो कि उसी प्रांगण में बना हुआ है क्यूंकि यह भी वाराणसी में घूमने की जगह में शामिल है।

गंगा नदी

बनारस की सबसे पवित्र और सबसे बड़ी नदी गंगा नदी है। बनारस इसी नदी के किनारे बसा हुआ है। यह नदी अपने आप में ही हमारे देश की एक सांस्कृतिक धरोहर को समेटे हुए है। बनारस के ज्यादातर मंदिर इसी नदी के आस-पास स्थित हैं। बनारस में कुल 88 घाट हैं जो की गंगा नदी के तट पर बसे हैं। देश-विदेश से हमारे श्रद्धालु भक्त और पर्यटक यहाँ गंगा नदी में स्नान करने आते हैं। हम सब जानते हैं की इंसान गलतियों का पुतला है और अपनी गलतियों के कारण ही जाने-अनजाने में कभी-कभी कुछ पाप भी कर बैठता है। हिन्दू धर्म के अनुसार, गंगा नदी में स्नान मात्र से ही माँ गंगा सारे पाप धो देती है। 1991 में गंगा आरती की शुरुआत दशाश्वमेध घाट पर हुई थी और तभी से ये आरती बहुत प्रसिद्ध है क्योंकि उस समय यहाँ का नज़ारा देखने योग्य होता है। गंगा आरती हर रोज शाम को होती है। यहाँ की गंगा आरती विश्व प्रसिद्ध है और इसको देखने के लिए दूर-दूर से सैलानी, बड़े-बड़े सेलिब्रिटी और वीवीआयीपी आते हैं।


दशाश्वमेध घाट 

बनारस के गंगा नदी के किनारे बसे हुए घाटों में से एक घाट है दशाश्वमेध घाट, जो की सबसे पुराना घाट मन जाता है और सबसे सुन्दर भी। दशाश्वमेध का अर्थ होता है दस घोड़ों की बलि । एक मान्यता के अनुसार यहाँ पर बहुत बड़ा यज्ञं करवाया गया था और उसमे दस घोड़ों की बलि दी गयी थी। वाराणसी के 88 घाटों में से पांच घाट सबसे ज्यादा पवित्र माने गए हैं। ये पांच घाट हैं: अस्सी घाट, दशाश्वमेध घाट, आदिकेशव घाट, पंचगंगा घाट तथा मणिकर्णिका घाट। इन घाटों को सामूहिक रूप से ‘पंचतीर्थ’ कहा जाता है।


अस्सी घाट 

यह वही घाट है जहाँ अस्सी नदी और गंगा नदी का संगम है। एक पौराणिक कथा के अनुसार माँ दुर्गा ने शुम्भ-निशुम्भ नाम के राक्षस का अपनी तलवार से वध करने के बाद उस तलवार को यहाँ फेंक दिया था जिसकी वजह से अस्सी नदी की उत्पत्ति हुई है। इसी घाट पे एक पीपल का बहुत बड़ा बृक्ष है जिसके नीचे भगवान शिव का शिवलिंग और भगवान अस्सींगमेश्वारा का मंदिर भी है जिसके दर्शन करने के लिए बहुत से श्रद्धालु आते हैं।


मणिकर्णिका घाट 

कहा जाता है की इंसान के मरने के बाद उसका दोबारा जन्म होता है और यह जीवन का जन्म-मृत्यु का चक्र हमेशा चलता रहता है। इसी जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाने के लिए आत्मा को मोक्ष मिलना बहुत जरूरी होता है। हिन्दू धर्म में मणिकर्णिका घाट हिन्दुओ के लिए मोक्ष का स्थान है। मान्यता यह है की मृत्यु के बाद जिसका शव मणिकर्णिका घाट पे जलाया जाता है उसकी आत्मा को मुक्ति मिल जाती है और उसको जन्म-मृत्यु के चक्र से भी हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है। इस घाट पे चिता की आग कभी शांत नहीं होती है, हर वक़्त किसी न किसी शव का दाह-संस्कार हो रहा होता है।


धमेख स्तूप 

धमेख स्तूप वाराणसी के सारनाथ में स्थित है। यह स्तूप सम्राट अशोक के समय में बना था। ऐसा माना जाता है की डिअर पार्क में स्थित धमेख स्तूप ही वह स्थान हैं जहाँ महात्मा बुद्ध ने अपने शिष्यों को प्रथम उपदेश दिया था। धमेख स्तूप एक ठोस गोलाकार बुर्ज की तरह दिखता है। इसका व्यास 28.35 मीटर (93 फुट) और ऊँचाई 39.01 मीटर (143 फुट) है। आपको जानकारी के लिए बता दें कि यहाँ आने वाले पर्यटकों के लिए कुछ खास नियम बनाये गए हैं जैसे कि स्तूप परिसर में हैं शांत रहना साथ ही चप्पल या जूते पहन के अंदर नहीं आना, इसके अलावा मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल भी यहां मना किया जाता है। यह भी एक वाराणसी में घूमने की जगह है, जहाँ आकर आपको हमारे इतिहास के कई पन्ने पलटने का मौका मिलता है।