Ganesh Utsav 2024 : गणपति बप्पा का 'दगडूशेठ हलवाई गणपति मंदिर', 30 दिन में पूरी होती है मुराद 

हर पूजा में सबसे पहले गणपति जी की पूजा की जाती हैं। खासकर गणेशोत्सव में उनकी पूजा का महत्व और बढ़ जाता हैं। इसलिए ही सभी भक्तगण गणपति जी को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए आतुर रहते हैं। गणेशोत्सव के इस ख़ास मौके पर आज हम आपको गणपति जी के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके लिए माना जाता है कि 30 दिन में आपकी मुराद पूरी हो जाती है। हम बात कर रहे हैं पुणे के श्रीमंत दगडूशेठ हलवाई गणपति मंदिर के बारे में। तो आइये जानते है इस मंदिर के बारे में।

 

हर पूजा में सबसे पहले गणपति जी की पूजा की जाती हैं। खासकर गणेशोत्सव में उनकी पूजा का महत्व और बढ़ जाता हैं। इसलिए ही सभी भक्तगण गणपति जी को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए आतुर रहते हैं। गणेशोत्सव के इस ख़ास मौके पर आज हम आपको गणपति जी के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके लिए माना जाता है कि 30 दिन में आपकी मुराद पूरी हो जाती है। हम बात कर रहे हैं पुणे के श्रीमंत दगडूशेठ हलवाई गणपति मंदिर के बारे में। तो आइये जानते है इस मंदिर के बारे में।

दगडूशेठ गडवे एक लिंगायत व्यापारी और हलवाई थे, जो कलकत्ता से आकर पुणे में बस गए थे। उन्होंने हलवाई के रूप में बहुत ख्याति पाई और लोगों ने उन्हें 'हलवाई' उपनाम दे दिया और इस तरह दगडूशेठ गडवे लोगों के बीच दगडूशेठ हलवाई के नाम से प्रसिद्ध हो गए। धीरे-धीरे दगडूशेठ एक समृद्ध व्यापारी और नामचीन हलवाई बन गए और भगवान की असीम अनुकम्पा उनपर बनी रही।

बताया जाता है दुर्भाग्य से, 18वीं सदी के उत्तरार्द्ध में प्लेग की महामारी में उनके बेटे का देहांत हो गया। अपने पुत्र की अकाल मृत्यु से शोकाकुल दगडूशेठ और उनकी पत्नी अवसादग्रस्त हो गए। तब उनके आध्यात्मिक गुरु श्री माधवनाथ महाराज ने उन्हें इस दुख से उबरने के लिए भगवान गणेश का एक मंदिर बनवाने का सुझाव दिया। इसके बाद, दगडूशेठ हलवाई ने पुणे में गणपति जी के मंदिर का निर्माण कराया। यह मंदिर अपनी भव्यता और यहां आने वाले हर भक्त की मुराद पूरी होने के कारण प्रसिद्ध है।

कहते हैं बप्पा के दर से कोई भी भक्त खाली हाथ नहीं जाता है। यहां बप्पा 30 दिनों में भक्तों की हर मनोकामना पूरी कर देते हैं। कहते हैं यह मंदिर दगरूसेठ हलवाई और पुणे के गोडसे परिवार की श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है। यह मंदिर वास्तुशास्त्र के लिहाज से बनाया गया है। मंदिर के मुख्य मंडप की दीवारों पर उभरी आदिशक्तियों की अद्भुत झांकी, प्रतीक है।

बप्पा स्वयं इस ऐश्वर्य में नहीं विराजते, बल्कि उनकी शरण में आने वाला उनका हर भक्त दरिद्रता और विघ्नबाधाओं से मुक्ति पाकर ऐसे ही ऐश्वर्य को प्राप्त करता है। शास्त्रों में बप्पा यानी गणपति को पंचभूत कहा गया है। मान्यता है कि धरती आकाश, आग, हवा और जल की सारी शक्तियां इन्ही में समाहित है। यहां कोई मनन्त के लिए शीश नवाता है तो कोई बप्पा का आशीर्वाद लेने दूर-दूर से यहां आता है। इस मंदिर में भगवान गणेश की 7.5 फ़ीट उंची और 4 फिट चौड़ी, लगभग 8 किग्रा सोने से सुसज्जित प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर का निर्माण बड़ी ही खूबसूरती से किया गया है निर्माण में विशेष शैली को उपयोग है भगवान की पीठासीन प्रतिमा मंदिर के बाहर से ही दिखाई देती है। मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर जय और विजय नामक दो प्रहरियों की संगमरमर की मूर्तियां स्थित की गई हैं।