आक्रामकता की टोपी पहनने के लिए अमेरिका और अधिक उपयुक्त है

 
बीजिंग। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने 2 मई को अमेरिकी मीडिया से साक्षात्कार में चीन पर हमला किया कि चीन विदेशों में आक्रामक रहता है और चीन का लक्ष्य दुनिया में प्रमुख देश बनना है। उन्होंने दावा किया कि अमेरिका का उद्देश्य चीन का दमन करना या रोकना नहीं है, बल्कि नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय नियमों की रक्षा करना है, जिसे चीन चुनौती दे रहा है।

गौरतलब है कि अमेरिकी नियमों से अंतर्राष्ट्रीय नियमों को बदलने और उसके हस्तक्षेप पर न्याय का कपड़ा लगाने की कार्रवाई अमेरिका के लिए बहुत परिचित है।

पिछले दशकों में दुनिया ने जो अमेरिकी नियम देखे हैं, वे बल के खतरों, राजनीतिक अलगाव, आर्थिक प्रतिबंधों और तकनीकी अवरोधों आदि माध्यम से अपने रणनीतिक लक्ष्य को प्राप्त करना ही है। उसने अफगानिस्तान, इराक, लीबिया, सीरिया समेत देशों में युद्ध की ज्वाला प्रज्ज्वलित की, एशिया व अफ्रीका में तथाकथित अरब स्प्रिंग की साजिश रची, यूरेशियन देशों में रंग क्रांति को निर्देशित करने से लेकर ईरान, क्यूबा, वेनेजुएला और चीन पर लांग आर्म ज्यूरिस्डिक्शन के कार्यान्वयन तक अमेरिका के धौंस वाले हाथ हर जगह मौजूद रहे हैं।

ऐसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन भी हैं जो अमेरिका द्वारा बाध्य किए जाते हैं। अमेरिका के निरंतर बाधा डालने के कारण विश्व व्यापार संगठन की अपीलीय निकाय न्यायाधीशों की कमी से गतिरोध में फंस गई, जिसका समाधान अभी तक नहीं किया जा सका है।

यहां तक कि अमेरिका के दोस्त देश भी उसकी जबरदस्ती व धौंस के शिकार हैं। अमेरिका ने जर्मनी से नॉर्ड स्ट्रीम 2 प्राकृतिक गैस पाइपलाइन निर्माण परियोजना को बंद करने की मांग की और डेनमार्क के पोलिटिकेन अखबार को धमकी दी कि अगर हुआवेइ समेत चीनी कंपनियों के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के प्रयोग संबंधी जानकारी प्रदान करने से इनकार किया तो वह उसका ग्राहक नहीं बनेगा। ये बहुत स्पष्ट सबूत हैं।

लोगों ने बहुत पहले से ही स्पष्ट रूप से देखा है कि कौन आक्रामक है और कौन दुनिया पर हावी होने की कोशिश कर रहा है। जबरदस्ती कूटनीति पर मोहित अमेरिकी राजनीतिज्ञ वास्तव में अमेरिका को आधिपत्य से पतन के रास्ते पर धकेल रहे हैं।

(साभार : चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

--आईएएनएस