ओणम का महापर्व दस दिनों में भाग्य को सौभाग्य में बदल देता है, जानिए कुछ खास बातें
केरल में इस वक्त ओणम पर्व की धूम है। नवरात्रि के त्योहार की तरह ही ओणम का पर्व भी दस दिनों तक मनाया जाता है। ओणम का यह त्यौहार न केवल सांस्कृतिक बल्कि धार्मिक दृष्टि से बेहद ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन मलयाली समाज के लोग एक-दूसरे से गले मिलकर शुभकामनाएं देते हैं। इस पर्व के दौरान लोग अपने-अपने घरों की साफ़-सफाई कर, उसे फूलों और दीयों से सजाते हैं।
लोग अपने घर के दरवाज़े पर फूलों से रंगोली बनाते हैं। प्रथा अनुसार विशेष रूप से राजा बलि की मिट्टी से मूर्ति बनाकर उसे सजाया जाता है।
दस दिनों की धूम का त्योहार है ओणम
ऐसी मान्यता है राजा बली प्रजा का हाल-चाल लेने के बाद पाताल लोक वापस चले जाते हैं। ओणम के नौवें दिन केरल के हर घर में भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित कर महिलाएं उसके आसपास नृत्य करती हैं। ओणम में विष्णु जी के वामन अवतार की पूजा की जाती है।
इस त्यौहार के मुख्य सांस्कृतिक आकर्षण कथककली नृत्य और नौका रेस माने जाते हैं। इस दस दिनों तक चलने वाले त्यौहार के दौरान लोग अपने-अपने घरों पर अलग-अलग प्रकार के पकवान बनाते हैं। लोग इस दिन गुड़, चावल और नारियल के दूध को मिलाकर खीर बनाते हैं। सांभर और कई तरह की सब्ज़ियाँ इस पर्व के दौरान हर घर में बनाई जाती हैं।
यह है पौराणिक कहानी
वामन पुराण के अनुसार त्रेतायुग में राजा बलि ने तीनों लोकों पर अपना अधिकार कर लिया था. वह दैत्य कुल में जन्मा था, लेकिन बड़ा ही दानवीर था, हालांकि इसके कारण उसके अंदर अहंकार भी आ रहा था। बलि का अहंकार मिटाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और बलि से तीन पग भूमि का दान मांगा।
वहां मौजूद दैत्य गुरु शुक्राचार्य भगवान विष्णु की चाल को समझ गए और बलि को दान के लिए रोका, लेकिन जब बलि नहीं माना तो उसका संकल्प रोकने के लिए शुक्राचार्य कलश की नली में जाकर बैठ गए।
शुक्राचार्य की फूट गई आंख
भगवान विष्णु ने देख लिया कि यह शु्क्राचार्य की चाल है, तो उन्होंने एक तिनका लेकर बलि को नली साफ करने को दी, लेकिन तिनका शुक्राचार्य की आंख में जा लगा। तब से शुक्राचार्य को एकाक्ष भी कहा जाता है।
इधर, बलि से वचन मिलते ही विष्णु जी ने विराट रूप धारण कर लिया और एक पांव से पृथ्वी तो दूसरे पांव की एड़ी से स्वर्ग और पंजे से ब्रह्मलोक को नाप लिया। अब तीसरे पांव के लिए राजा बलि के पास कुछ भी नहीं बचा था, इसलिए बलि ने वचन पूरा करते हुए अपना सिर उनके पैरों के नीचे कर दिया और भगवान वामन ने तीसरा पैर राजा बलि के सिर पर रख दिया।
राजा बलि प्रजा से मिलने आते हैं
राजा बलि की वचन प्रतिबद्धता से खुश होकर भगवान वामन ने उनसे वरदान मांगने के लिए कहा, तब बलि ने कहा कि प्रभु! मेरी आपसे विनती है कि साल में एक बार मुझे लोगों से मिलने दिया जाए। भगवान ने इच्छा को स्वीकार कर लिया, इसलिए थिरुवोणम के दिन राजा महाबलि लोगों से मिलने के लिए आते हैं। ओणम का यह त्यौहार न केवल सांस्कृतिक बल्कि धार्मिक दृष्टि से बेहद ही महत्वपूर्ण माना जाता है।
10 दिनों का त्योहार है ओणम
ओणम पर्व मूलतः 10 दिनों का त्योहार है. यह उत्तर भारतीय नवरात्र की तरह मनाया जाता है और माना जाता है कि ये 10 दिन भाग्य को सौभाग्य में बदल देते हैं। जानिए इन 10 दिनों को किन अलग-अलग नामों से जाना जाता है।
प्रथम दिन – एथम/अथम
ओणम महोत्सव के पहले दिन सुबह उठकर स्नान-आदि करें. उसके बाद किसी मंदिर में या घर के पूजा-स्थल पर ही भगवान की पूजा-आदि करें।
पहले ही दिन पूक्कलम यानी ओणम रंगोली बनती है।
दूसरा दिन – चिथिरा
ओणम महोत्सव के दूसरे दिन की शुरुआत भी पूजा के साथ होती है और पूक्कलम के फूल भी बदले जाते हैं।
तीसरा दिन – चोधी
ओणम उत्सव का तीसरा दिन विशेष होता है, इस दिन धनतेरस की तरह खरीदारी करना शुभ होता है।
चौथा दिन – विसाकम
चौथे दिन केरल के कई क्षेत्रों में परंपरागत तरीके से फूलों की कालीन बनाने की प्रतियोगिता का आयोजन होता है. इसी दिन पकवान भी बनते हैं।
पाँचवां दिन – अनिजाम
पांचवें दिन नौका दौड़ प्रतियोगिता होती है जिसे वल्लमकली भी कहते हैं। इस दौरान बड़े स्तर पर नौकाओं की दौड़ होती है।
छठा दिन – थ्रिकेता
छठे दिन कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का प्रदर्शन लोगों द्वारा किया जाता है। कथकली यहां का खास नृत्य है।
सातवां दिन – मूलम
सातवां दिन बेहद खास होता है. लोग इस दिन बाज़ार और घरों को सजाते हैं। छोटे-छोटे मेलों का आयोजन होता है।
आठवां दिन – पूरादम
ओणम के आठवें दिन लोग मिट्टी से पिरामिड के आकार में मूर्तियां बनाते हैं। इन मूर्तियों को ‘माँ’ के नाम से संबोधित किया जाता है। लोग इस मूर्ति को पूजा स्थान पर स्थापित कर उसपर पुष्प और अन्य पूजा सामग्री अर्पित करते हैं।
नौवां दिन – उथिरादम
उत्सव के नौवें दिन लोग उत्सुकता के साथ राजा महाबलि का इंतज़ार करते हैं. उनके इंतजार में विधिवत पूजन कर सारी तैयारी पूरी कर ली जाती हैं। महिलाएं फूलों के रास्ते तैयार करती हैं. यह बलि राजा के स्वागत में होता है।
दसवां दिन – थिरुवोणम
दसवें दिन राजा महाबलि का आगमन होता है। लोग एक-दूसरे को ओणम पर्व की बधाई देते हुए उन्हें पकवान खिलाते हैं। रात में आतिशबाज़ी करने के साथ लोग इस महापर्व का उत्सव मनाते हैं।