सिर्फ भाई-बहन का पर्व नहीं है रक्षाबंधन, जानिए इससे जुड़ी कई कहानियां...
आज पूरे देश में भाई-बहन के अटूट विश्वास व प्रेम के प्रतीक रक्षाबंधन के पर्व को बड़ी उमंग से मनाया जा रहा है। यह पर्व भाई-बहन के रिश्ते को सदियों से मजबूती दे रहा है। आज बहने अपने भाइयों की कलाई पर रक्षासूत्र बांध कर उनसे अपनी रक्षा का वादा लेती है। क्या आप जानते है रक्षाबंधन केवल भाई-बहन का पर्व नहीं है, बल्कि इसके पीछे कई कहानी जुड़ी हुई है। आइये जानते है इन कहानियों के बारे में।
वैदिक काल में सावन पूर्णिमा को रक्ष पूर्णिमा भी कहा गया है। रक्ष पूर्णिमा, यानी कि रक्षा करने वाली पूर्णिमा। बताते हैं कि दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने देव-दानवों के युद्ध से पहले राक्षसों की कलाई में मंत्र फूंका हुआ धागा बांधा था.
शुक्राचार्य तंत्र-मंत्र और जादुई विद्या के भी ज्ञानी ऋषि थे। धागे को रक्षा कवच बना देने का तरीका उन्होंने ही विकसित किया था।
हालांकि कर्नाटक में एक त्योहार है जिसमें भाई-बहन का प्यार झलकता है। सावन में शुक्ल पक्ष की पंचमी को कन्नड़ बहनें सांप की बॉबी के पास जाती हैं। वो यहां दूध की धारा चढ़ाती हैं. इसके बाद दूध से भीगी मिट्टी घर लाकर भाई की पीठ पर लगाती हैं। माना जाता है कि इससे भाई के जीवन के सारे कष्ट नाग देवता दूर कर देते हैं। ये सुनकर आपको उत्तर भारत की नागपंचमी याद आई होगी. बिल्कुल ठीक समझा आपने, दोनों एक जैसे ही त्योहार हैं और थोड़े मिलते-जुलते भी हैं।
कृष्ण ने बचाई थी द्रौपदी की लाज
द्वापरयुग में कृष्ण और द्रौपदी से जुड़ी भी की एक कहानी है। कहते हैं कि शिशुपाल वध के समय जब श्रीकृष्ण की उंगली कट गई तो द्रौपदी ने अपनी साड़ी का आंचल फाड़कर उनकी उंगली में बांध दिया था। तब कृष्ण ने भी उन्हें रक्षा का वचन दिया था। इसके कुछ दिन बाद हस्तिनापुर में जुआ खेला गया। पांडव द्रौपदी को जुए में हार गए। जब दुर्योधन-दुशासन ने द्रौपदी के चीर हरण की कोशिश की तब श्रीकृष्ण ने उनकी रक्षा की थी. कहते हैं कि कृष्ण ने द्रौपदी के लिए द्वारिका से एक अनोखी साड़ी भेजी थी। इस साड़ी के कपड़े की खासियत थी कि हाथी के जितना ऊंचा कपड़े का ढेर, अंगूठी के छल्ले से पार किया जा सकता था। दुशासन ने जब इसे खींचा तो ये खिंचता ही चला गया और द्रौपदी की लाज बच गई।
सिकंदर की पत्नी ने पोरस को बांधा था कलावा
रक्षाबंधन के भाई-बहन के पर्व का जिक्र सिकंदर और पोरस के इतिहास में भी मिलता है। कहीं-कहीं लिखा मिलता है कि सिकंदर की पत्नी ने पोरस की कलाई में राखी बांध दी थी। यह वजह है कि जब युद्ध में एक समय सिकंदर की छाती पोरस के भाले के नींचे थी, ठीक उसी समय पोरस की नजर अपने हाथ में बंधे कलावे पर गई और सिकंदर की जान बच गई.कहते हैं कि मुगलों के समय में राजपूत रानी कर्णावती ने हुमायूं के पास भी राखी भेजकर रक्षा की अपील की थी, लेकिन हुमायूं के पहुंचने से पहले कर्णावती सती हो गई थी।
यह त्योहार सिर्फ भाई-बहनों का ही नहीं रहा है। आप यकीन नहीं करेंगे, एक पत्नी ने अपने पति के हाथ में भी राखी बांधी थी। आज के इस समय में अगर ऐसा कहीं हो तो आप भरोसा ही नहीं करेंगे. लेकिन देवराज इंद्र की पत्नी देवी शची ने इंद्र की कलाई में रक्षा का धागा बांधा था। इस कथा का जिक्र भविष्य पुराण में है।
वामन अवतार की कथा
रक्षाबंधन के भाई-बहन के पर्व का जिक्र वामन-पुराण में भी दिखाई देता है। जब भगवान विष्णु वामन अवतार लेकर राजा बलि के पास पहुंचते हैं वहां वे तीन पग भूमि की बात कहकर सारी धरती, सारा आकाश नाप लेते हैं. इसके बाद तीसरा पग वो राजा बलि के सिर पर रखकर उसे पाताल पहुंचा देते हैं।
इस दान से खुश होकर श्रहरि बलि से वरदान मांगने को कहते हैं तो वह उन्हें ही मांग लेता है। इधर, वैकुंठ में निराश देवी लक्ष्मी जब, अपने पति विष्णु को वापस पाने का उपाय पूछती हैं तो नारद मुनि बताते हैं कि, आप राजा बलि को राखी बांधकर भाई बना लीजिए और उपहार में उनसे पति मांग लीजिए। देवी लक्ष्मी ऐसा ही करती हैं। माना जाता है कि तब से ही सावन पूर्णिमा को बहनें-भाई की कलाई में राखी बांधती हैं और भाई उनके रक्षा का वचन देते हैं।