परशुराम जयंती : कामधेनु गाय की चोरी से मचा ऐसा रक्‍तपात, मि‍ट गया माहि‍ष्‍मति‍ साम्राज्‍य का नामोनि‍शान 

भगवान विष्‍णु के छठे अवतार, ऋषि जमदग्‍नि और माता रेणुका के पुत्र तथा महान शिव भक्‍त भगवान परशुराम को लेकर एक धारणा जो आम है वह यह कि वे क्षत्रियों के कुल का नाश करने वाले थे। हालांकि ये बात उतनी भी सत्‍य नहीं है। बीती शताब्‍दि‍यों में हि‍न्‍दू धर्म में फूट डालने की नि‍यत से ऐसी कहानि‍यां चली आ रही हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम 'क्षत्रिय' वर्ण (चार वर्णों में से एक) के हंता ना होकर मात्र क्षत्रियों के एक कुल (हैहय वंश) का समूल विनाश करने वाले हैं। मगर आज ज्‍यादातर हि‍न्‍दुओं के पास अपने धार्मि‍क और पौराणि‍क ग्रंथों को पढ़ने का समय ही नहीं है, नतीजन कथि‍त बुद्धि‍जीवि‍यों ने हमें जो सि‍खाया और समझाया उसी आधार पर हमने अपनी राय बना ली और समाज में कटुता और वैमनस्‍यता को बढ़ावा देने में जुट गये। आइए जानते हैं क्‍यों करना पड़ा भगवान परशुराम को एक क्षत्रिय कुल का समूल विनाश। 
 

भगवान विष्‍णु के छठे अवतार, ऋषि जमदग्‍नि और माता रेणुका के पुत्र तथा महान शिव भक्‍त भगवान परशुराम को लेकर एक धारणा जो आम है वह यह कि वे क्षत्रियों के कुल का नाश करने वाले थे। हालांकि ये बात उतनी भी सत्‍य नहीं है। बीती शताब्‍दि‍यों में हि‍न्‍दू धर्म में फूट डालने की नि‍यत से ऐसी कहानि‍यां चली आ रही हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम 'क्षत्रिय' वर्ण (चार वर्णों में से एक) के हंता ना होकर मात्र क्षत्रियों के एक कुल (हैहय वंश) का समूल विनाश करने वाले हैं। मगर आज ज्‍यादातर हि‍न्‍दुओं के पास अपने धार्मि‍क और पौराणि‍क ग्रंथों को पढ़ने का समय ही नहीं है, नतीजन कथि‍त बुद्धि‍जीवि‍यों ने हमें जो सि‍खाया और समझाया उसी आधार पर हमने अपनी राय बना ली और समाज में कटुता और वैमनस्‍यता को बढ़ावा देने में जुट गये। आइए जानते हैं क्‍यों करना पड़ा भगवान परशुराम को एक क्षत्रिय कुल का समूल विनाश। 

क्षत्रिय नहीं, हैहय हंता ! 
माना जाता है कि भगवान परशुराम ने कुल 21 बार धरती से हैहयवंशी क्षत्रियों का समूल विनाश किया था। दरअसल, हैहयकुल के क्षत्रीय वंश में सहस्त्रार्जुन नामक एक चन्द्रवंशी राजा हुए। इनके पूर्वज महिष्मन्त कहलाते थे। महिष्मन्‍तों ने ही नर्मदा किनारे माहिष्मती नामक नगरी बसायी थी। इन्हीं माहिष्‍मन्‍त के कुल में आगे चलकर राजा कनक हुए, जिनके चार पुत्रों में सबसे बड़े कृतवीर्य ने माहिष्मती के सिंहासन को संभाला।

परशुराम के पिता थे हैहय कुल के पुरोहित 
माहिष्‍मती राज में भार्गव वंशी ब्राह्मण राज पुरोहित हुआ करते थे। इसी भार्गव वंशीय ब्राह्मण कुल में जमदग्नि ॠषि हुए जो भगवान परशुराम के पिता थे। जमदग्‍नि ऋषि से हैहय राजा कृतवीर्य के मधुर सम्बन्ध थे। कृतवीर्य के पुत्र का नाम अर्जुन था। कृतवीर्य का पुत्र होने के कारण ही उन्हें कार्त्तवीर्यार्जुन भी कहा जाता है। 

कृतवीर्य बना सहस्रबाहु 
कार्त्तवीर्यार्जुन ने अपनी अराधना से भगवान दत्तात्रेय को प्रसन्न किया था। भगवान दत्तात्रेय ने युद्ध के समय कार्त्तवीर्याजुन को हजार हाथों का बल प्राप्त करने का वरदान दिया था, जिसके कारण उन्हें सहस्त्रार्जुन या सहस्रबाहु कहा जाने लगा। कहते हैं कि‍ सहस्त्रार्जुन के पराक्रम से रावण भी घबराता था।

युद्ध का कारण 
एकबार सहस्त्रार्जुन ने भगवान परशुराम के पिता जमदग्नि के आश्रम में कपिला कामधेनु गाय को देखा और उसे पाने की लालसा से वह कामधेनु को बलपूर्वक आश्रम से उठा ले गया। जब परशुराम को यह बात पता चली तो उन्होंने पिता के सम्मान के खातिर कामधेनु वापस लाने की सोची और सहस्त्रार्जुन से युद्ध किया और उसकी हजारों भुजाओं को काटकर अंतत: उसका भी वध कर दिया। 

भगवान परशुराम के पिता की हत्‍या 
सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने प्रतिशोधवश परशुराम की गैरहाजिरी में उनके पिता ऋषि जमदग्नि को मार डाला। इसके बाद भगवान परशुराम की मां रेणुका भी पति की हत्या से विचलित होकर उनकी चिताग्नि में कूदकर सती हो गईं। इस घोर घटना ने परशुराम को अत्‍यधिक क्रोधित कर दिया और उन्होंने संकल्प लिया- "मैं हैहय वंश के सभी क्षत्रियों का नाश करके ही दम लूंगा"। 

21 बार हुआ युद्ध 
इस घटना से क्रोधित भगवान परशुराम ने आखिरकार हैहयवंशी क्षत्रियों से 21 बार युद्ध किया। क्रोधाग्नि में जलते हुए परशुराम ने सबसे पहले हैहयवंशियों की माहिष्मती नगरी पर अधिकार किया, इसके बाद कार्त्तवीर्यार्जुन का वध किया। कार्त्तवीर्यार्जुन की मौत के बाद उनके पांच पुत्र जयध्वज, शूरसेन, शूर, वृष और कृष्ण अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते रहे।