जानिए आखिर क्यों जगन्नाथ मंदिर का ध्वज हवा की विपरीत दिशा में लहराता है, क्या है रहस्य?
भारत में कई अनगिनत मंदिर है, जिनमें से कई मंदिर ऐसे है जो चमत्कारी होने के साथ-साथ रहस्यमयी भी है और उनके पीछे कई पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हुई है। इन मंदिरों में एक मंदिर है श्री जगन्नाथ मंदिर, जो भारत के ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित है। यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। आज हम आपको इस मंदिर से जुड़ा एक आश्चर्यजनक रहस्य और इससे जुडी पौराणिक कथाओं के बारें में बताएंगे।
भारत में कई अनगिनत मंदिर है, जिनमें से कई मंदिर ऐसे है जो चमत्कारी होने के साथ-साथ रहस्यमयी भी है और उनके पीछे कई पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हुई है। इन मंदिरों में एक मंदिर है श्री जगन्नाथ मंदिर, जो भारत के ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित है। यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। आज हम आपको इस मंदिर से जुड़ा एक आश्चर्यजनक रहस्य और इससे जुडी पौराणिक कथाओं के बारें में बताएंगे।
दरअसल, श्री जगन्नाथ मंदिर के ऊपर स्थापित लाल ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है। ऐसा किस कारण होता है यह तो वैज्ञानिक ही बता सकते हैं लेकिन यह निश्चित ही आश्चर्यजनक बात भी है। यह भी आश्चर्य है कि प्रतिदिन सायंकाल मंदिर के ऊपर स्थापित ध्वज को मानव द्वारा उल्टा चढ़कर बदला जाता है। ध्वज भी इतना भव्य है कि जब यह लहराता है तो इसे सब देखते ही रह जाते हैं। ध्वज पर शिव का चंद्र बना हुआ है।
ध्वज के विपरीत दिशा में लहराने की कथा या कारण हनुमानजी से जुड़ी हुई है। हनुमान जी इस क्षेत्र की दशों दिशाओं से रक्षा करते हैं। यहां के कण-कण में हनुमानजी का निवास है। हनुमानजी ने यहां कई तरह के चमत्कार बताए हैं। उन्हीं में से एक है समुद्र के पास स्थित मंदिर के भीतर समुद्र की आवाज को रोक देना। इस आवाज को रोकने के चक्कर में ध्वज की दिशा भी बदल गई थी।
एक बार नारद जी भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए पहुंचे तो उनका सामना हनुमान जी से हुआ। हनुमान जी ने कहा कि इस वक्त तो प्रभु विश्राम कर रहे हैं आपको इंतजार करना होगा। नारदजी द्वार के बाहर खड़े होकर इंतजार करने लगे। कुछ समय बाद उन्होंने मंदिर के द्वार के भीतर झांका तो प्रभु जगन्नाथ श्री लक्ष्मी के साथ उदास बैठे थे। उन्होंने प्रभु से इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि यह समुद्र की आवाज हमें विश्राम कहां करने देती है।
नारदजी ने यह बात बाहर जाकर हनुमानजी को बताई। हनुमानजी ने क्रोधित होकर समुद्र से कहा कि तुम यहां से दूर हटकर अपनी आवाज रोक लो क्योंकि मेरे स्वामी तुम्हारे शोर के कारण विश्राम नहीं कर पात रहे हैं। यह सुनकर समुद्र देव ने प्रकट होकर कहा कि हे महावीर हनुमान! यह आवाज रोकना मेरे बस में नहीं। जहां तक पवनवेग चलेगा यह आवाज वहां तक जाएगी। आपको इसके लिए अपने पिता पवन देव से विनती करना चाहिए।
तब हनुमानजी ने अपने पिता पवन देव का आह्वान किया और उनसे कहा कि आप मंदिर की दिशा में ना बहें। इस पर पवनदेव ने कहा कि पुत्र यह संभव नहीं है परंतु तुम्हें एक उपाय बताता हूं कि तुम्हें मंदिर के आसपास ध्वनिरहित वायुकोशीय वृत या विवर्तन बनाना होगा। हनुमान जी समझ गए।
तब हनुमानजी ने अपनी शक्ति से खुद को दो भागों में विभाजित किया और फिर वे वायु से भी तेज गति से मंदिर के आसपास चक्कर लगाने लगे। इससे वायु का ऐसा चक्र बना की समुद्र की ध्वनि मंदिर के भीतर ना जाकर मंदिर के आसपास ही घूमती रहती है और मंदिर में श्री जगन्नाथ जी आराम से सोते रहते हैं। यही कारण है कि तभी से मंदिर के सिंहद्वार में पहला कदम प्रवेश करने पर ही (मंदिर के अंदर से) आप सागर द्वारा निर्मित किसी भी ध्वनि को नहीं सुन सकते। आप (मंदिर के बाहर से) एक ही कदम को पार करें, तब आप इसे सुन सकते हैं। इसे शाम को स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकता है। इसी तरह मंदिर के बाहर स्वर्ग द्वार है, जहां पर मोक्ष प्राप्ति के लिए शव जलाए जाते हैं लेकिन जब आप मंदिर से बाहर निकलेंगे तभी आपको लाशों के जलने की गंध महसूस होगी।
दूसरा यह कि इस कारण श्री जगन्नाथ मंदिर के ऊपर स्थापित लाल ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है। यह भी आश्चर्य है कि प्रतिदिन सायंकाल मंदिर के ऊपर स्थापित ध्वज को मानव द्वारा उल्टा चढ़कर बदला जाता है। ध्वज भी इतना भव्य है कि जब यह लहराता है तो इसे सब देखते ही रह जाते हैं। ध्वज पर शिव का चंद्र बना हुआ है।