जानिए क्यों कहा जाता है छठ पूजा को सबसे कठिन व्रत
लोक आस्था का महापर्व छठ श्रद्धा भाव से मनाया जा रहा है। सोमवार को नहाय खाय के साथ इसकी शुरुआत हुई। मंगलवार को खरना पूजा के बाद बुधवार को अस्ताचलगामी सूर्य और गुरुवार को सूर्योदय के बाद उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद महापर्व का समापन होगा। कार्तिक मास की अमावस्या के छह दिनों के बाद मनाए जाने के कारण महापर्व का नाम छठ रखा गया है। यह त्योहार दिवाली के छह दिन बाद कार्तिक शुक्ल को मनाया जाता है, इसलिए इसे छठ कहा जाता है।
छठ त्योहार के साथ एक कठिन साधना है। जिसमें व्रती 36 घटों से ज्यादा निर्जला उपवास करती हैं। प्रकृति पूजा के इस पर्व में लोग आडंबर से कोसों दूर रहते हैं। इस व्रत में साफ-सफाई का खासा ध्यान रखा जाता है, और गलती की कोई गुंजाइश नहीं होती है। यही वजह है कि इसे महापर्व और महाव्रत भी कहा जाता है।
ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं छठ माईछठ देवी सूर्य देव की बहन हैं। छठ पर्व पर प्रकृति के सभी अवयव जल, वायू, अग्नि और मिट्टी को साक्षी मानकर उनकी पूजा की जाती है। इन सब चीजों की महत्ता को मानकर ही भगवान भास्कर की पूजा की जाती है।
यही वजह है कि छठ पर्व को जल यानी किसी नदी में पैरों तक पानी में खड़े होकर सूप पर प्रसाद के साथ अग्नि यानि दीपक के साथ उनकी अराधना की जाती है। छठ पूजा में बहते पानी वाली नदी में पूजा करने का महत्व है। तो वहीं मार्कण्डेय पुराण में भी इस बात का उल्लेख है कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया है। उनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में जाना जाता है, जो ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं, इन्हें छठ देवी भी कहा जाता है।
संतान प्राप्ति के लिए छठ मैया की अराधना
कहा जाता है कि षष्ठी मां यानी छठ माई को बच्चे बहुत प्रिय हैं, इसलिए व्रती उनसे संतान प्राप्ति की कामना करती हैं। साथ ही व्रती माता छठ से बच्चों की लंबी आयु और समृद्दि की भी कामना करती हैं। छठ माई को बच्चों की रक्षा करने वाली देवी कहा जाता है. वो संतान को आरोग्य, निरोग और वैभव प्रदान करती है.