जानिए आखिर क्यों शिवलिंग के ऊपर रखा जाता है एक-एक बूंद टपकने वाला पानी का कलश, क्या है इसके पीछे का रहस्य?
आपने अक्सर कई मंदिरों में देखा होगा कि शिवलिंग के ऊपर एक कलश रखा होता है और इस कलश में से पानी की एक एक बूंद शिवलिंग के ऊपर गिर रही होती है। इसके अलावा शिवलिंग से निकली जल निकासी नलिका, जिसे जलाधारी कहा जाता है, उसे भी परिक्रमा के दौरान लांघा नहीं जाता। ये देखकर आपके मन में भी ये जानने की उत्सुकता कभी न कभी जरूर हुई होगी कि आखिर ऐसा क्यों किया जाता है? आइये आज हम आपको बताएंगे शिवलिंग पर 24 घंटे जल की बूंद गिरने का रहस्य क्या है और शिवलिंग की जलाधारी को लांघना क्यों वर्जित है?
यदि धार्मिक कारणों पर नजर डालें तो इसका सम्बंन्ध समुद्र मंथन से जुड़ा हुआ है. समुद्र मंथन के दौरान निकले हलाहल विष को पीने के बाद महादेव का गला नीला पड़ गया था और उनके शरीर में बहुत ज्यादा जलन हो रही थी. उनका मस्तक गर्म हो गया था. तब उनके सिर और माथे को ठंडक पहुंचाने के लिए उनके ऊपर जल चढ़ाया गया। इससे महादेव के शरीर को थोड़ी ठंडक मिली। तभी से महादेव को जलाभिषेक अत्यंत प्रिय हो गया। इसीलिए महादेव के भक्त उनकी पूजा के दौरान जलाभिषेक जरूर करते हैं, वहीं महादेव को ठंडक पहुंचाने के भाव से शिवलिंग पर कलश स्थापित किया जाता है जिससे 24 घंटे बूंद बूंद करके जल टपकता है। खासतौर पर ये कलश गर्मी के दिनों में रखा जाता है. माना जाता है कि जो भी भक्त शिवलिंग पर पानी का कलश स्थापित करता है, एक एक बूंद के साथ उसका हर संकट दूर हो जाता है।
वैज्ञानिक वजह जानकर रह जाएंगे हैरान
शिवलिंग को यदि वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो ये बहुत ही शक्तिशाली सृजन है। तमाम वैज्ञानिक अध्ययनों में ये स्पष्ट हो चुका है कि शिवलिंग एक न्यूक्लियर रिएक्टर के रूप में काम करता है। यदि आप भारत का रेडियो एक्टिविटी मैप उठाकर देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि भारत सरकार के न्यूक्लियर रिएक्टर के अलावा सभी ज्योतिर्लिंगों के स्थानों पर सबसे ज्यादा रेडिएशन पाया जाता है। एक शिवलिंग एक न्यूक्लियर रिएक्टर की तरह रेडियो एक्टिव एनर्जी से भरा होता है। इस प्रलयकारी ऊर्जा को शांत रखने के लिए ही हर शिवलिंग पर जल चढ़ाया जाता है। वहीं कुछ मंदिरों में कलश में जल भरकर ही शिवलिंग के ऊपर रख दिया जाता है। इससे गिरती एक एक बूंद शिवलिंग को शांत रखने का काम करती है।
जाने क्यों नहीं लांघी जाती जलाधारी
इसके अलावा सभी मंदिरों की और देवताओं की पूरी परिक्रमा की जाती है, लेकिन शिवलिंग की चंद्राकार परिक्रमा की जाती है यानी शिव के भक्त उनके जलाधारी को लांघते नहीं, वहीं से वापस लौट आते हैं। इसके पीछे वैज्ञानिक ये है कि शिवलिंग पर चढ़ा पानी भी रेडियो एक्टिव एनर्जी से भरपूर हो जाता है। ऐसे में इसे लांघने पर ये ऊर्जा पैरों के बीच से शरीर में प्रवेश कर जाती है। इसकी वजह से व्यक्ति को वीर्य या रज संबन्धित शारीरिक परेशानियों का सामना भी करना पड़ सकता है, इसलिए शास्त्रों में जलाधारी को लांघना घोर पाप माना गया है।