मानव जीवन शैली को कितना प्रभावित करता है वास्तुशास्त्र, जानिए इसका क्या महत्व है?
बोलचाल की भाषा में वास्तु का अर्थ रहने की जगह यानि घर या निवासस्थान होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार पंच तत्व के बीच सामंजस्य स्थापित करने की विघा है। वास्तु शास्त्र कला, विज्ञान, खगोल विज्ञान और ज्योतिष को मिलाकर बनाया गया है। यह माना जाता है कि वास्तुशास्त्र हमारे जीवन को बेहतर बनाने एवं नकारात्मकता को दूर रखने में मदद करता है। दूसरे शब्दों में कहें तो वास्तुशास्त्र हमें नकारात्मक तत्वों से दूर सुरक्षित वातावरण में रखता है। आइये आचार्य प. अमित कुमार पाण्डेय से जानते है कि मानव जीवन शैली को वास्तु शास्त्र कितना प्रभावित करता है इसका क्या महत्व है।
वास्तुशास्त्र का परम उद्देश्य है किसी भवन, आवास व ईमारत का निर्माण सही हुआ है या नहीं, कहीं उसमे कोई दोष तो नहीं है, ज्ञात करना अथवा जानना। प्रकृति में संतुलन बनाए रखने के लिए विविध प्राकृतिक बलों जैसे जल, पृथ्वी, वायु, अग्नि और आकाश के बीच परस्पर क्रिया होती है, जिसका व्यापक प्रभाव इस पृथ्वी पर रहने वाली मनुष्य जाति के अलावा अन्य प्राणियों पर पड़ता है। इन पांच तत्वों के बीच होने वाली परस्पर क्रिया को वास्तु के नाम से जाना जाता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार इस प्रक्रिया का प्रभाव हमारे कार्य, हमारे स्वभाव, हमारे भाग्य एवं जीवन के अन्य पहलुओं पर पड़ता है।
वास्तु शास्त्र आपके आस पास की महान परिशोध है व यह आपके जीवन को प्रभावित करता है। वास्तु का शाब्दिक अर्थ निवासस्थान होता है। इसके सिद्धांत वातावरण में जल, पृथ्वी, वायु, अग्नि और आकाश तत्वों के बीच एक सामंजस्य स्थापित करने में मदद करते हैं।
वास्तु शास्त्र, कला, विज्ञान, खगोल विज्ञान और ज्योतिष का मिलाजुला रूप है।
वास्तुशास्त्र का महत्व
वास्तुशास्त्र हमारे जीवन को बेहतर बनाने एवं कुछ गलत चीजों से हमारी रक्षा करने में मदद करता है। वास्तुशास्त्र हमें नकारात्मक तत्वों से दूर सुरक्षित वातावरण में रखता है।
वास्तुशास्त्र सदियों पुराना निर्माण का विज्ञान है, जिसमें वास्तुकला के सिद्धांत और दर्शन सम्मिलित हैं, जो किसी भी भवन निर्माण में बहुत अधिक महत्व रखते हैं।
इनका प्रभाव मानव की जीवन शैली एवं रहन सहन पर पड़ता है।
वास्तुशास्त्र का मूल आधार विविध प्राकृतिक ऊर्जाओं पर निर्भर है-पृथ्वी से ऊर्जा प्राप्ति, दिन के उजाले से ऊर्जा प्राप्ति, सूर्य की ऊर्जा या सौर ऊर्जा, वायु से ऊर्जा प्राप्ति, आकाश से ऊर्जा प्राप्ति, एवं लौकिक- ब्रह्मांड से ऊर्जा प्राप्ति तथा चंद्रमा की ऊर्जा।
सभी ऊर्जा स्रोत में चुंबकीय, थर्मल और विद्युत ऊर्जा भी शामिल होगी।
जब हम इन सभी ऊर्जाओं का संतुलित उपयोग करते हैं, तो यह हमें अत्यंत आंतरिक खुशी, मन की शांति, स्वास्थ्य एवं समृद्धि के लिए धन प्रदान करती हैं।
वास्तु को किसी भी प्रकार के कमरे, घर, कार्यालय या आवासीय परिसर, संपत्ति, बंगले, विला, मंदिर, नगर नियोजन आदि के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
वास्तु छोटी एवं बड़ी परियोजनाओं एवं उपक्रमों पर भी लागू होता है।
तीन बल महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिनमें जल, अग्नि एवं वायु शामिल हैं।
वास्तु के अनुसार, वहां पूर्ण सद्भाव और शांति होगी, जहां यह तीनों बल अपनी सही जगह पर स्थित होंगे। अगर इन तीन बलों की जगह में आपसी परिवर्तन यानी गड़बड़ी होती है, जैसे कि जल की जगह वायु या अग्नि को रखा जाए और अन्य ताकत का गलत स्थानांतरण हो तो इस गलत संयोजन का जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
सद्भाव की कमी व अशांति पैदा होती है।अगर निर्माण के संयोजन मेंह कोई दोष रह जाता है, तो उसे वास्तु दोष कहा जाता है। जिसे विभिन्न उपायों से दूर किया जा सकता है। अथवा दोष के कारण मिल रहे पीड़ादायक प्रभाव को कम किया जा सकता है।