सफेद व लाल चंदन बनेगा पूर्वांचल की पहचान, दुर्लभ व औषधियुक्त पौधों का तैयार होगा जंगल 

मऊ से लेकर वाराणसी तक सफेद व लाल चंदन पूर्वांचल की पहचान बनेगा। दुर्लभ व औषधियुक्त मिलिया-डूबिया व काला शीशम प्रजाति के पौधों के जंगल तैयार किए जाएंगे। पूर्वांचल से गायब हो चुके दुर्लभ व औषधियुक्त पौधों को संरक्षित करने की पहल वन वर्धिनिकी विन्ध्य क्षेत्र ने उठाया है।
 

वाराणसी। मऊ से लेकर वाराणसी तक सफेद व लाल चंदन पूर्वांचल की पहचान बनेगा। दुर्लभ व औषधियुक्त मिलिया-डूबिया व काला शीशम प्रजाति के पौधों के जंगल तैयार किए जाएंगे। पूर्वांचल से गायब हो चुके दुर्लभ व औषधियुक्त पौधों को संरक्षित करने की पहल वन वर्धिनिकी विन्ध्य क्षेत्र ने उठाया है।


विभाग ने लखनऊ के एक निजी शोध संस्थान से बीज की खरीददारी की है। चारों प्रजाति के विलुप्त हो गए पेड़ों के लगभग 10 हजार पौधे उगाने का लक्ष्य रखा गया है। मऊ में नर्सरी तैयार कर ली गई है। मौसम अनुकूल रहा तो फरवरी के प्रथम सप्ताह में इन बीजों को बोया जाएगा। बोने के लगभग तीन माह में इन बीजों को पौधे बनने में लगेंगे। इसके बाद इसे वाराणसी के पिंडरा, रोहनिया और मऊ स्थित वन देवी जंगल में लगाया जाएगा।


चंदन एक परोपजीवी पेड़ है, जिसकी ऊंचाई 18-20 मीटर होती है। आयु वृद्धि के साथ उसके तने और जड़ों की लकड़ी में सुगंधित तेल का अंश बढ़ता जाता है। इसे परिपक्व होने में 8-12 साल लगते हैं। इसके लिए ढाल और जल सोखने वाली मिट्टी मुफीद होती है।