नगरीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में एएनएम प्रशिक्षण केंद्र में आशा कार्यकर्ताओं के दो बैच का प्रशिक्षण कार्यक्रम

 

वाराणसी। नगरीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) शिवपुर परिसर स्थित एएनएम प्रशिक्षण केंद्र में 16 अक्टूबर से 20 नवम्बर तक आशा कार्यकर्ताओं के दो बैच का प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित हुआ। इसमें आशाओं को मॉड्यूल 6 और 7 के तहत संस्थागत प्रसव के बाद गृह आधारित नवजात की देखभाल (एचबीएनसी) के बारे में जानकारी दी गई। इस वित्तीय वर्ष अब तक नगर की करीब 189 आशा कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया जा चुका है। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम निरंतर जारी है। नगर में कुल 590 आशाएं कार्यरत हैं। 

एचबीएनसी के जरिए आशा बचा रहीं शिशुओं की जान- मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ. संदीप चौधरी ने बताया कि प्रसव के बाद नवजात के बेहतर देखभाल की जरूरत बढ़ जाती है। संस्थागत प्रसव के बाद दो दिनों तक मां और नवजात का ख्याल अस्पताल में ही रखा जाता है। इसके पश्चात शुरूआती के 42 दिन विशेष देखभाल के लिए अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। ऐसे में होम बेस्ड न्यू बोर्न केयर (एचबीएनसी) यानि गृह आधारित नवजात देखभाल कार्यक्रम काफी कारगर साबित हो रहा है। इस कार्यक्रम के तहत संस्थागत प्रसव की स्तिथि में आशा कार्यकर्ता 6 बार (जन्म के 3, 7,14, 21, 28 एवं 42वें दिन पर) गृह भ्रमण करती हैं। वहीं गृह प्रसव की स्तिथि में 7 बार (जन्म के 1, 3, 7,14, 21, 28 एवं 42वें दिन पर) गृह भ्रमण कर नवजात की देखभाल करती है और अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं।  

नोडल अधिकारी (एनयूएचएम) डॉ. अमित सिंह, उप जिला स्वास्थ्य शिक्षा एवं सूचना अधिकारी कल्पना सिंह, गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) की रेखा उपाध्याय एवं सीसीपीएम (एनएचएम) कौशल चौबे ने आशा कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दिया। इस दौरान नवजात शिशु में खतरे के संकेतों को पहचान कर शिशु को सीएचसी रेफर करने के बारे में जानकारी दी। जब शिशु स्तनपान करने में असमर्थ हो, खानपान पर उल्टी कर दे, शरीर में ऐंठन हो, सुस्त या बेहोश हो तो यह स्थितियां खतरे का संकेत करतीं हैं। ऐसी स्थिति में उसे तुरंत पीएचसी व सीएचसी रेफर कर देना चाहिए। गृह भ्रमण के दौरान मां व परिवार को छह माह तक सिर्फ स्तनपान, कंगारू मदर केयर(इसमें मां अपने बच्चें को अपने सीने से लगाकर रखती है)  आदि के बारे में विस्तार से जानकारी देनी चाहिए। 

डॉ. अमित सिंह ने बताया कि नवजात के घर पहुंचने पर आशा कार्यकर्ता की सबसे पहली जिम्मेदारी साबुन और पानी से अपना हाथ धुलने की है। इसके लिए सुमन-के विधि का प्रयोग करना चाहिए। ‘सुमन-के’ (SUMAN-K) फार्मूला का ध्यान रखना सभी के लिए बहुत जरूरी है। सुमन-के में ‘स’ का मतलब है कि पहले सीधा हाथ धुलें, ‘उ’ का मतलब है कि उल्टी तरफ से हाथ धुलें, ‘म’ का मतलब है कि मुठ्ठियों को अन्दर से धुलें, फिर ‘अ’ का मतलब है कि अंगूठों को धुलें, ‘न’ बताता है कि नाखूनों को रगड़-रगड़ कर अच्छे से धुलें क्योंकि नाखूनों में आसानी से मैल जमा हो सकता है और आखिर में ‘के’ का मतलब है कि उंगलियों के बाद कलाई को भी धुलना बहुत जरूरी है। इस तरह हर आधे घंटे पर कम से कम 40 सेकेण्ड तक हाथ धुलना चाहिए।

डिप्टी डीएचईआईओ कल्पना सिंह ने थर्मामीटर से नवजात का तापमान मापने, वजन मशीन के माध्यम से वजन करने, शिशु को कंबल में लपेटने का तरीका बताया। साथ ही दस्त, बुखार आदि से बचाव व मलेरिया जैसे संक्रमण से उनका बचाव करने के बारे में जानकारी दी। उन्होंने चार्ट के अनुसार बालक - बालिकाओं में कुपोषण के स्तर का पता लगाने के बारे में भी बताया।

आशा कार्यकर्ता शशिकला उपाध्याय, गंगा यादव और सुषमा यादव ने बताया कि प्रसव के बाद मां जब घर आती है तो नवजात को विशेष देखभाल की जरूरत होती है। इसी के दृष्टिगत व मौसम के अनुसार सभी बीमारियों से बचाव व प्रबंधन के लिए प्रशिक्षण प्रदान किया गया।