वाराह अवतार की कथा में प्रकट हुई ब्रज भूमि की महिमा, श्रीमद्भागवत ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिवस भावविभोर हुए श्रद्धालु
कथा से पूर्व पारंपरिक पूजन-अर्चन की परंपरा निभाई गई। षष्ठपीठ के युवराज गोस्वामी प्रियेन्दु बावा और मनोरथी परिवार से शेखर रस्तोगी (सपरिवार) ने श्रीमद्भागवत पोथी की विधिपूर्वक पूजा की और प्रभु को भोग अर्पित कर कथा का शुभारंभ कराया।
अपने वचनामृत में सतीश शर्मा ने बताया कि पुष्टिमार्ग में ब्रह्म संबंध वास्तव में श्रीकृष्ण से सीधा संबंध होता है, जो वल्लभकुल के आचार्यों के माध्यम से जीवों को प्राप्त होता है। यह संबंध न केवल आध्यात्मिक बल प्रदान करता है, बल्कि व्यक्ति को जीवन के हर संकट से ऊपर उठाने में समर्थ होता है।
शर्मा ने वाराह अवतार की कथा का वर्णन करते हुए बताया कि किस प्रकार भगवान विष्णु ने वाराह रूप धारण कर पृथ्वी को हिरण्याक्ष के चंगुल से मुक्त किया। कथा का सबसे भावप्रवण क्षण तब आया जब भगवान ने पृथ्वी से पूछा कि उसे कहाँ स्थापित किया जाए। तब पृथ्वी ने उत्तर दिया—ब्रज भूमि पर। क्योंकि यही वह भूमि है जो प्रलय के समय भी समुद्र में नहीं डूबती। इस प्रसंग के माध्यम से उन्होंने ब्रज की महिमा और आध्यात्मिक महत्व को अत्यंत प्रभावशाली ढंग से रेखांकित किया।
कथा के दौरान उन्होंने यह भी बताया कि काशी, श्री वल्लभाचार्य जी की कर्मभूमि रही है। यहीं पर श्री मुकुंद राय जी श्री गोपाल मंदिर (चौखंभा) में विराजमान हैं और यहीं काशी में वल्लभ सम्प्रदाय की तीन महत्वपूर्ण बैठकें स्थित हैं। इनमें से पहली 'लगन की बैठक' पंचगंगा घाट पर है, दूसरी 'आसूर व्यामों लीला की बैठक' हनुमान घाट पर और तीसरी 'जतनबर बैठक' सेठ पुरुषोत्तम दास वैष्णव के नाम से विख्यात है।
इसी जतनबर बैठक में श्री महाप्रभु वल्लभाचार्य जी ने सर्वप्रथम 'नंद महोत्सव' का आयोजन किया था। इस ऐतिहासिक प्रसंग में बाबा विश्वनाथ और काल भैरव स्वयं प्रकट होकर उपस्थित हुए थे। साथ ही वहां स्थित पवित्र कूप से नंद-यशोदा, विश्वभानु राजा, कीर्ति कुमारी, गोपियां और ग्वालबाल प्रकट हुए थे, जिसे कथा में बड़े भावविभोर अंदाज में वर्णित किया गया।
कार्यक्रम में उपस्थित मीडिया प्रभारी अतुल शाह, अरुण पारिख, प्रदीप अग्रवाल, राजेश अग्रवाल, मधुसूदन दास, सोनावाला, मनोरथी परिवार सहित सभी भक्तों एवं वैष्णवों ने कथा का श्रवण कर आत्मिक आनंद की अनुभूति की।