सुभाष मन्दिर में तबले की थाप के साथ सुभाष की अमर कीर्ति गूंजी, सुभाष कीर्ति की गाथा से अभिभूत हुए नौजवान
वाराणसी। विशाल भारत संस्थान एवं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान संकाय के संयुक्त तत्वावधान में लमही के सुभाष भवन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के ऊपर कीर्तन का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि हरिभक्त परायण एवं राष्ट्रीय कीर्तनकार चारुदत्त आफले बुआ ने पहले सुभाष मन्दिर में पुष्प अर्पित किया एवं सुभाष चंद्र की आरती कर कीर्तन की शुरुआत की।
आज देश में राष्ट्रभक्ति पर संकट है देश को तोड़ने की साजिश चल रही है। धर्म और जाति के नाम पर विभाजन किया जा रहा है। ऐसे में राष्ट्रीय कीर्तनकारों की टोली सुभाष भवन पहुंची। देश को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के महान त्याग को अमर गाथा के रूप में जन-जन तक पहुंचाने के लिए चारुदत्त आफले बुआ ने सुभाष कीर्तन किया। सुभाष भवन में कीर्तन के माध्यम से आजाद हिन्द फौज की गौरव गाथा गूंजी। सुभाष बाबू के जन्म कथा से कीर्तन शुरू हुई। विशाल भारत संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. राजीव गुरूजी ने स्वागत भाषण दिया।
चारुदत्त आफले ने कीर्तन के माध्यम से कहा कि देश को आजादी सुभाष के प्रयासों से मिली। नेताजी की वजह से अंग्रेजों की फौज में भारतीयों ने विद्रोह कर दिया। यही मुख्य वजह देश को आजाद करने की थी, यह बात उस समय इंग्लैंड के प्रधानमंत्री लार्ड एटली ने कही थी।
चारूदत्त आफले बुआ द्वारा गीतों एवं कीर्तन के माध्यम से सुभाष कथा कही गयी, जिसमें नेताजी के संघर्षों एवं भारत की आजादी की लड़ाई में उनके त्याग एवं बलिदान की गाथा को अपने कथा के माध्यम से व्यक्त किया गया। भगवान श्रीराम के त्याग से सुभाष चन्द्र बोस के बलिदान को जोड़ते हुए धर्मयुद्ध को राष्ट्र युद्ध के रूप में प्रस्तुत किया। भगवान श्रीराम सामर्थ्यवान होने के साथ सभ्यता के प्रतीक हैं। सामर्थ्य होने के साथ सभ्य होना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि जैसे-जैसे शक्ति बढ़ती है, मनुष्य वैसे–वैसे क्रूरता की तरफ बढ़ता है।
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस में भगवान श्रीराम के वे सभी गुण थे। 1920 से 1940 तक के 20 वर्षों तक कांग्रेस के साथ मिलकर देश की आजादी के लिये लड़ाई लड़े। कलकत्ता के महानगर पालिका के अध्यक्ष होने पर अंग्रेजों के अभिनन्दन समारोह पर प्रतिबन्ध लगा दिया। अंग्रेजों को यह महसूस होने लगा जब तक सुभाष इस देश में हैं हम चैन से नहीं रह सकते। इसलिये 1940 में उन्हें जेल में डाल दिया गया। इसके पहले 20 वर्षों में वे 10 बार जेल गए। दूसरों के सुख के लिये स्वयं दुख उठाना भगवान श्रीराम का चरित्र था। अपने सुख के लिये दूसरों को दुख देना रावण का चरित्र था। उसी प्रकार नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने भगवान श्रीराम के आदर्शों पर चलते हुए अपने सभी सुखों का त्याग कर रावण रूपी अंग्रेजों को देश से निकालने का निश्चय किया। सुभाष चन्द्र बोस ने अपनी सेवा, सामर्थ्य एवं सभ्यता के साथ भारतीय राजनीति में प्रभु श्रीराम के आदर्शों पर चलने की प्रेरणा दी।
इस कीर्तन की अध्यक्षता रामपंथ के धर्म प्रवक्ता डॉ. कवीन्द्र नारायण श्रीवास्तव ने किया। संचालन नजमा परवीन ने किया। कीर्तन में डॉ. निरंजन श्रीवास्तव, डॉ. अर्चना भारतवंशी, नाजनीन अंसारी, डॉ. मृदुला जायसवाल, आभा भारतवंशी, ज्ञान प्रकाश, अनिल पाण्डेय, अजय सिंह, मयंक श्रीवास्तव, अजीत सिंह टीका, नौशाद शेख, संतोष कुमार, डी.एन. सिंह, हीतेन्द्र श्रीवास्तव, मुकेश श्रीवास्तव, विद्याशंकर त्रिपाठी, शंकर पाण्डेय, लक्ष्मी, सुनीता, प्रभावती, अंजु, हीरामनी, इली भारतवंशी, खुशी भारतवंशी, उजाला भारतवंशी, दक्षिता भारतवंशी, शिखा भारतवंशी, राधा भारतवंशी आदि लोग शामिल रहे।