संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में पंडित गोपीनाथ कविराज की जयंती पर संगोष्ठी, वक्ता बोले – सच्ची विद्या से साधना प्राप्त होती है...

 

वाराणसी। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के योग साधना केंद्र में शनिवार को उपाध्याय पद्म विभूषण पंडित गोपीनाथ कविराज जी की जयंती श्रद्धापूर्वक मनाई गई। इस अवसर पर मुख्य वक्ता प्रोफेसर सुधाकर मिश्र ने कहा कि पंडित गोपीनाथ कविराज जी एक अद्वितीय विद्वान थे, जिनका हिंदी साहित्य, अंग्रेजी साहित्य, दर्शनशास्त्र, और अन्य कई विषयों में गहन ज्ञान था। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के सरस्वती भवन में संगृहीत लगभग सवा लाख पांडुलिपियों में से पंडित कविराज ने एक लाख से अधिक पांडुलिपियों का अध्ययन किया था और उन पर टिप्पणियां भी लिखी थीं। ऐसे महापुरुषों के विचारों और चिंतन से हमारे बौद्धिक विकास को दिशा मिलती है और वे हमारे जीवन में मार्गदर्शन का काम करते हैं।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रोफेसर रामकिशोर त्रिपाठी ने कहा कि पंडित गोपीनाथ कविराज एक परम साधक थे, जो यह मानते थे कि सच्ची विद्या साधना से ही प्राप्त होती है। साधना के माध्यम से चित्त की वृत्तियों का नियंत्रण होने पर ही अध्ययन का वास्तविक अर्थ हृदय में उतरता है। पंडित कविराज उस उच्च अवस्था तक पहुँच चुके थे जहाँ उन्हें पुरस्कारों या सम्मान की कोई लालसा नहीं थी, बल्कि उनके द्वारा प्राप्त सम्मान ही स्वयं में सम्मानित हुए।

कार्यक्रम का संचालन शंख योग एवं तंत्रगाम विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर राघवेंद्र दुबे ने किया। इस अवसर पर प्रोफेसर दिनेश कुमार गर्ग, प्रोफेसर जितेंद्र कुमार, प्रोफेसर हर प्रसाद अधिकारी, डॉक्टर कुंज बिहारी द्विवेदी, डॉक्टर मधुसूदन मिश्रा, अखिलेश कुमार मिश्रा, डॉक्टर विवेक कुमार उपाध्याय, डॉक्टर ए लक्ष्मण राव शास्त्री, डॉक्टर चन्द्रशेखर सिंह सहित विश्वविद्यालय के अध्यापक और छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे। कार्यक्रम की शुरुआत वैदिक और पौराणिक मंगलाचरण से हुई, जिसके बाद पंडित गोपीनाथ कविराज जी के चित्र पर अतिथियों द्वारा माल्यार्पण और दीप प्रज्वलन किया गया।