नवरात्रि का सातवां दिन, मां कालरात्रि की आराधना से दूर हो जाता है बुरी शक्तियों और अकाल मृत्य का भय, जानिये महात्म्य
वाराणसी। नवरात्रि के सातवें दिन मां दुर्गा की सातवीं शक्ति माता कालरात्रि की पूजा की जाती है। माता कालरात्रि को 'शुभंकरी', 'महायोगिनी' और 'महायोगेश्वरी' के नाम से भी जाना जाता है। उनका स्वरूप भयंकर होते हुए भी भक्तों के लिए अत्यंत शुभकारी है। पुराणों में माता कालरात्रि को बुरी शक्तियों और अकाल मृत्यु से बचाने वाली देवी बताया गया है। माता की उपासना करने वाले भक्तों को सभी प्रकार के कष्टों और भय से मुक्ति मिलती है। जीवन में शांति और समृद्धि का वास होता है।
काशी के कालिका गली में माता का प्राचीन मंदिर है। माता कालरात्रि का स्वरूप अति भयानक है। उनका रंग काला है, उनके केश बिखरे हुए हैं, और उनके तीन नेत्रों से अग्नि की वर्षा होती है। चार भुजाओं वाली माता के एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में लोहे का कांटा सुशोभित हैं, जबकि अन्य दो हाथों में वरदान और अभय मुद्रा है, जो भक्तों को आशीर्वाद और सुरक्षा प्रदान करती है। माता की सवारी एक गधा है, जो दृढ़ता और साहस का प्रतीक है। बुधवार की भोर से ही माता के दर्शन को भक्तों की कतार लगी है।
शास्त्रों के अनुसार, माता कालरात्रि की विधिपूर्वक पूजा करने से नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है और सभी प्रकार की बुरी ऊर्जा दूर हो जाती हैं। तंत्र साधना करने वाले विशेष रूप से माता की आराधना करते हैं, क्योंकि माता कालरात्रि से सिद्धियों की प्राप्ति होती है। उनके पूजन से साधक को आत्मबल, दीर्घायु, और रोगों से मुक्ति मिलती है।
माता कालरात्रि के इस रूप की पूजा करने से परिवार में सुख-शांति का वास होता है और जीवन की सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। वे दुष्टों का संहार करती हैं और भक्तों को बल और आयु का आशीर्वाद प्रदान करती हैं। माता के इस रूप को निशा की देवी भी कहा जाता है, क्योंकि उनका नाम और स्वरूप रात्रि से जुड़ा हुआ है, जो उनके शक्ति और साहस को दर्शाता है।