महामना के सांस्कृतिक राष्ट्र चिंतन पर राष्ट्रीय संगोष्ठी, वक्ता बोले, मालवीय जी के विचार आज भी प्रासंगिक
वाराणसी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के भारत अध्ययन केंद्र में "महामना का सांस्कृतिक राष्ट्र चिंतन" विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का आयोजन पार्थीबन और शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। इसमें विभिन्न वक्ताओं ने महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के विचारों और उनके योगदान पर प्रकाश डाला।
जेएनयू के प्रोफेसर रामसागर मिश्रा ने ऑनलाइन माध्यम से जुड़ते हुए कहा कि महामना के विचार आज भी प्रासंगिक हैं। उनके अनुसार, "राष्ट्र की सच्ची शक्ति उसकी सांस्कृतिक धरोहर में निहित होती है। अगर हमें एक सशक्त और आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करना है, तो हमें अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहना होगा।" उन्होंने आगे कहा कि मालवीय जी ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को गति देने के लिए पत्रकारिता के माध्यम से भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
डॉ. स्वर्ण सुमन ने कहा कि मालवीय जी ने 20वीं सदी के जागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और जीवन मूल्यों को संरक्षित करने की दिशा में काम किया। उन्होंने बताया कि मालवीय जी ने 1916 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की, जिसका उद्देश्य भारतीय संस्कृति और आधुनिक शिक्षा को एक साथ लाना था। पत्रकारिता विभाग के डॉ. बाला लखेंद्र ने मालवीय जी के योगदान को रेखांकित करते हुए कहा कि "उन्होंने शिक्षा, संस्कृति और भाषा को राष्ट्र निर्माण का साधन माना। काशी हिंदू विश्वविद्यालय भारतीय संस्कृति और ज्ञान का एक महत्वपूर्ण केंद्र बना हुआ है।"
कार्यक्रम के संयोजक डॉ. विनोद जायसवाल ने कहा कि महामना का राष्ट्रवाद किसी संकीर्ण विचारधारा से नहीं बंधा था। उन्होंने विविधता में एकता के सिद्धांत को अपनाया और सभी धर्मों और जातियों का आदर किया। कार्यक्रम में लगभग 400 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। सभी प्रतिभागियों को प्रशस्ति पत्र वितरित किए गए।