काशी विद्यापीठ में राष्ट्रीय संगोष्ठी, मिथिलेश नंदिनी महाराज बोले, भारत विश्व में गुरु है, विश्व का गुरु नहीं है
वाराणसी। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के दर्शन शास्त्र विभाग व विश्व संवाद केंद्र काशी के संयुक्त तत्वावधान में विद्यापीठ में काशी शब्दोत्सव के चतुर्दिवासीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें वक्ताओं ने विचार रखे। भारत के गौरवशाली इतिहास व आध्यात्मिक चिंतन पर चर्चा की।
मिथिलेशनंदिनी शरण महाराज ने कहा कि भारत विश्व का गुरु नहीं है। भारत विश्व में गुरु है, क्योंकि हर गुरु किसी का शिष्य होता है, भारत भगवान शिव एवं प्रभु राम के पदचिह्नों पर चलने वाला उनका शिष्य है। भारत जितना प्राचीन और तथ्यपूर्ण इतिहास विश्व में किसी और देश का नहीं है, इसलिए भारत विश्व में गुरु है। भारत अपने गौरवपूर्ण इतिहास से गौरवान्वित होकर विश्व के अन्य देशों को हीन भावना से नहीं देखता। वह सबको समान समझता है और समान आदर देता है। अन्नपूर्णा मंदिर के महंत शंकर पुरी श्री रामचंद्र के बाल्यकाल की काकभुशुंडि लीला की व्याख्या की। उन्होंने प्रभु श्रीराम के चरित्रकाल में सभी प्राणियों को समान भाव से देखने एवं सभी को एकरूप से सम्मान देने के सरल व्यवहार और विषमता रहित रामराज्य की चर्चा की। प्रभु राम की बाल्यावस्था से लेकर युवावस्था की कई लीलाओं का वर्णन किया।
विशिष्ठ अतिथि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. अनूप वशिष्ठ ने दैहिक दैविक भौतिक तापा राम राज्य नहीं काहुहीं व्यापा , सब नर करहीं परस्पर प्रीति चलहीं स्वधर्म नीरत श्रुति नीति की व्याख्या को ध्येय मानते हुए प्रेम तत्व को आपसी जुड़ाव का कारण बताया। उन्होंने कहा कि यदि हमें यशस्वी बनना है तो हमें अपनी परम्परा में धंसना होगा। हमारी जड़ें तभी मजबूत होंगी जब हम अपनी परंपराओं से जुड़ेंगे। उसके लिए हमें राम को जानना होगा कृष्ण को पहचानना होगा। स्वागत भाषण प्रो. राजेश मिश्रा, संचालन प्रो. अंबारिश राय एवं धन्यवाद ज्ञापन संपत्ति अधिकारी डॉ एस. एन. सिंह जी ने किया।