नामवर सिंह ने आलोचना को बनाया रचनात्मक, प्रख्यात आलोचक की जयंती पर परिचर्चा
वाराणसी। बीएचयू के मुक्ताकाशी मंच 'पुलिया प्रसंग' द्वारा हिंदी के प्रख्यात आलोचक व बीएचयू के हिंदी विभाग के पुरा छात्र नामवर सिंह की 98 वीं जयंती पर 'नामवर की आलोचना भूमि' पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस परिचर्चा में नामवर सिंह के सृजन कर्म को याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
हिंदी विभाग,बीएचयू के आचार्य व वरिष्ठ रचनाकार प्रो.श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि नामवर सिंह ने हिंदी आलोचना को न केवल बौद्धिक बनाया, बल्कि उसे रचनात्मक भी बनाया। वे ऐसे विरल आलोचक थे, जो रुचि के निर्माण के साथ-साथ उसका परिष्कार भी किया। काशी और काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रति उनका प्रेम गहरा था। प्रो.शुक्ल ने कहा कि नामवर सिंह ने आलोचक की स्वाधीनता से कभी समझौता नहीं किया। इसीलिए उन्होंने हर जगह यांत्रिकता का विरोध किया। लगभग पांच दशकों तक नामवर जी हिंदी आलोचना के केंद्र में रहे, जो उनके आलोचना कर्म की एक बड़ी मजबूती है।
कहा कि अपने समृद्ध अध्ययन के दायरे में नामवर जी की आलोचना ने आचार्य रामचंद्र शुक्ल के बाद हिंदी आलोचना को सर्वाधिक प्रभावित किया है। नामवर सिंह ऐसे पहले आलोचक हैं जिन्होंने छायावाद के सामाजिक आधार की खोज की और समकालीन साहित्य पर जोर देते हुए इतिहास बोध व आलोचना के महत्व को बताया। डॉ. शैलेंद्र सिंह ने कहा नामवर जी हिंदी आलोचना या हिंदी मीमांसा को तमाम दूसरे ज्ञान के अनुशासनों से जोड़ा। नामवर जी ने कठिन भाषा की आलोचना से परहेज किया। डॉ. उदय प्रताप पाल ने कहा कि नामवर सिंह की आलोचना उनके विस्तृत अनुभव और संवाद से प्रसूत है जिन्होंने हिंदी आलोचना को नई दिशा दी।
शोध छात्र अमित कुमार ने कहा कि नामवर जी की आलोचना का आधार उनकी समृद्ध ज्ञानभूमि और उनका व्यापक अध्ययन है। शिवम यादव ने बताया कि नामवर जी ने अपनी आलोचना दृष्टि से हिंदी आलोचना की परम्परा को जीवंत बनाया। राहुल कुशवाहा ने कहा कि नामवर जी हिंदी आलोचना की प्रगतिशील परम्परा के मान्य आचार्य हैं। कार्यक्रम का संचालन युवा अध्येता अक्षत पाण्डेय और धन्यवाद ज्ञापन नीलेश देशमुख ने किया।