मालवीय मूल्य अनुशीलन केंद्र में व्याख्यान, वक्ताओं ने डा. भीमराव अंबेडकर के विचारों पर डाला प्रकाश
वाराणसी। बीएचयू के मालवीय मूल्य अनुशीलन केन्द्र एवं अन्तर-सांस्कृतिक अध्ययन केन्द्र के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय व्याख्यान श्रृंखला का आयोजन किया गया। इसमें डा. बीआर अंबेडकर धर्म और आधुनिक जनता विषय पर वक्ताओं ने विचार रखे।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के राजनीतिक अध्ययन केन्द्र के पूर्व आचार्य प्रो. वेलेरियन रोड्रिग्स ने डा. बीआर अंबेडकर : धर्म और आधुनिक जनता (Dr. B. R. Ambedkar on Religion and the Modern Public) विषय पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि अम्बेडकर का जन्म कबीर पंथी परिवार में हुआ और बाद में बौद्ध धर्म को स्वीकार किया। उन्होंने भारत में रहते हुए और बाद में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान विभिन्न धर्मों का गहरा अध्ययन भी किया था। उनके अनुसार धर्म केवल व्यक्तिगत और निजी ही नहीं है बल्कि इसकी एक सामाजिक भाषा है, जो वृहत्तर रूप से बड़े समाज को प्रभावित करती है। कई बार धर्म के आधार पर बने नियम मानव के स्वाभाविक विकास को बाधित भी करते हैं।
प्राचीन समाज में धर्म के एक प्रमुख तत्त्व भगवान का मानव जीवन में एक सहज स्थान था, जो परिवार-समाज के अभिभावक रूप में था। अम्बेडकर का मार्क्स के विपरीत मानना था कि धर्म अफीम नहीं है बल्कि यह समाज के लोगों में चेतना जगाने, गलत के विरुद्ध खड़े होने का साहस भी देता है। अम्बेडकर का मानना था कि धर्म नैतिकता की स्थापना के एक प्रमुख प्रेरक शक्ति है। उदाहरण स्वरूप बुद्ध का धम्म का विचार नैतिकता को उच्चतम पवित्रता के रूप में स्थापना है। कई बार धर्म का स्वरूप हमारे दैनिक व्यवहार में इस प्रकार आ जाता है कि वह किसी भी विधिक व्यवस्था से अधिक प्रभावी हो जाता है। धर्म कई बार आधुनिक मानव समाज के नियंत्रण, उत्थान और उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है। धर्म एक भाषा की तरह समाज के इकाइयों को आपस में बांध रखता है।
अम्बेडकर ने भारत के स्वाधीनता आंदोलन के सन्दर्भ में कहा कि धर्म पर अधिक जोर देने के कारण प्रारम्भ में यह आंदोलन समृद्ध वर्ग को अधिक पोषित किया और दलित-दमित जनता को मुख्यधारा में लाने में अधिक समय लगा। अम्बेडकर बुद्ध की इस शिक्षा से प्रभावित थे कि कुछ भी सनातन नहीं है, सब कुछ बदलता है। उसी प्रकार धर्म के तत्व भी सामाजिक प्रभाव में बदलते हैं और यह सामाजिक विकास के लिए अनिवार्य भी है। प्रो. रोड्रिग्स ने कहा कि अम्बेडकर का मानना था कि जो भी परम्पराएं किसी भी ऐसे नियम पर आधारित हों, जो किसी भी प्राचीन पुस्तक में लिखित हो और ये परम्पराएं आधुनिक समाज के मानवीय मूल्यों का क्षरण करती हों, ऐसी पुस्तकों और धार्मिक परंपराओं को अस्वीकार कर देना चाहिए। कार्यक्रम के अंत में प्रो. रोड्रिग्स ने श्रोताओं के एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि अम्बेडकर नास्तिकवादी नहीं थे, बल्कि धर्म के प्रमुख तत्त्व सर्वोच्च शक्ति के रूप में भगवान् और आत्मा के स्वरूप को स्वीकार नहीं करते हैं, जैसा की बौद्ध दर्शन स्वीकार करता है।
कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत मालवीय मूल्य अनुशीलन केन्द्र के समन्वयक प्रो. संजय कुमार एवं धन्यवाद ज्ञापन अन्तर-सांस्कृतिक अध्ययन केन्द्र के समन्वयक प्रो. राजकुमार के किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. प्रियंका झा ने किया। इस दौरान विश्वविद्यालय के वरिष्ठ सलाहकार प्रो. कमलशील, प्रो. महेश प्रसाद अहिरवार, डॉ. ध्रुब कुमार सिंह, प्रो. अंजैया, प्रो. प्रमोद बागडे, डॉ. राहुल मौर्य, डॉ. धर्मजंग, डॉ. राजीव कुमार वर्मा एवं बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित रहे।