जंक फूड, असंतुलित खानपान और तनाव में रहने से बढ़ सकती हैं कई समस्याएं, चिकित्सकों ने दी सलाह 

माहवारी’ एक ऐसी शारीरिक प्रक्रिया है, जिससे हर महिला का सामना होता है। इसको मासिक धर्म, रजोधर्म, महीना, पीरियड कई नामों से जाना जाता है। माहवारी कोई बीमारी या कोई व्याधा नहीं है। यह शरीर की एक सामान्य प्रक्रिया है जो निर्धारित समय पर चलती रहती है। इसके दृष्टिगत हर साल 28 मई को ‘अंतर्राष्ट्रीय माहवारी स्वच्छता दिवस’ मनाया जाता है। 28 तारीख को ‘आदर्श माहवारी’ दिन माना जाता है। यह दिवस खुलकर एक-दूसरे से बात करने और भ्रांतियों को दूर करने के लिए मनाया जाता है। इस बार दिवस की थीम ‘टुगेदार फॉर पीरियड फ्रेंडली वर्ल्ड’ रखी गई है, जिसका उद्देश्य घर परिवार और समाज में फ्रेंडली बिहेवियर को अपनाते हुए खुलकर अपनी बात रख सकें।
 

वाराणसी। ‘माहवारी’ एक ऐसी शारीरिक प्रक्रिया है, जिससे हर महिला का सामना होता है। इसको मासिक धर्म, रजोधर्म, महीना, पीरियड कई नामों से जाना जाता है। माहवारी कोई बीमारी या कोई व्याधा नहीं है। यह शरीर की एक सामान्य प्रक्रिया है जो निर्धारित समय पर चलती रहती है। इसके दृष्टिगत हर साल 28 मई को ‘अंतर्राष्ट्रीय माहवारी स्वच्छता दिवस’ मनाया जाता है। 28 तारीख को ‘आदर्श माहवारी’ दिन माना जाता है। यह दिवस खुलकर एक-दूसरे से बात करने और भ्रांतियों को दूर करने के लिए मनाया जाता है। इस बार दिवस की थीम ‘टुगेदार फॉर पीरियड फ्रेंडली वर्ल्ड’ रखी गई है, जिसका उद्देश्य घर परिवार और समाज में फ्रेंडली बिहेवियर को अपनाते हुए खुलकर अपनी बात रख सकें।

जिला महिला अस्पताल के ओपीडी विभाग के कमरा न॰ 7 बी में स्थित ‘किशोरी मित्रता स्वास्थ्य क्लीनिक’ में प्रतिदिन औसतन 10 से 15 किशोरियाँ परामर्श के लिए आ रहीं है। पिछले वर्ष अप्रैल 2023 से मार्च 2024 तक लगभग 6500 किशोरियों ने परामर्श प्राप्त किया है जबकि इस वर्ष अब तक करीब 700 किशोरियों अपनी माहवारी से संबन्धित समस्याओं पर किशोरी परामर्शदाता व जिला समन्वयक सारिका चौरसिया से परामर्श ले चुकी हैं। इसके अलावा स्कूलों व कॉलेजों में भी जागरूकता व स्क्रीनिंग का कार्य भी किया जा रहा है।

फ्रेंडली बिहेवियर व खुलकर बात करना जरूरी
जिला समन्वयक सारिका चौरसिया बताती हैं कि इस आधुनिक युग में हमें पीरियड व इसके स्वच्छता प्रबंधन पर फ्रेंडली बिहेवियर व खुलकर बात करना चाहिए। देखा जाए तो शहरी इलाकों के स्कूलों, कॉलेजों व घर परिवार में इस विषय पर खुलकर चर्चा हो जाती हैं लेकिन ग्रामीण इलाकों में किशोरियां एवं महिलाएं बात करने में कतराती हैं, क्योंकि उन्हें उनके सापेक्ष वातावरण नहीं मिल पाता है। इसकी भरपाई एएनएम, आशा, आशा संगिनी और गैर-सरकारी संस्थाओं के माध्यम से की जा रही है और वह उन्हें माहवारी स्वच्छता प्रबंधन के विषय पर जागरूक एवं व्यवहार परिवर्तन करने का कार्य कर रही हैं। साथ ही मिथक और भ्रांतियों को भी दूर कर रही हैं।

ये हो सकती हैं समस्याएं
सारिका ने कहा कि आजकल किशोरियों व युवतियों को बाहर के खाने की आदत हो गई है। मोमोज, पिज्जा, बर्गर, कोल्ड ड्रिंक आदि जंक फूड के साथ – साथ तनाव युक्त रहने से पीरियड आने में समस्याएं आ रही है। ऐसे में कभी माह में दो बार पीरियड आ रहे हैं तो कभी दो तीन महीने पीरियड ही नहीं आ रहे हैं। कभी कभी पीरियड एक डेढ़ महीने तक लगातार चल रहे हैं। ऐसे में एसटीआई, आरटीआई, पीसीओडी, हार्मोन असंतुलन, एनीमिक आदि गंभीर समस्याएं हो सकती है। भविष्य में गर्भधारण करने में भी समस्या हो सकती है। थकान होना, शरीर की ढीला होना, चिड़चिड़ापन होना, सिर दर्द होना, स्तनों में कसाव होना एवं कुछ किशोरियों में कब्ज की समस्या का होना। यह सभी माहवारी के सामान्य लक्षण हैं।

इन बातों का रखें विशेष ध्यान
सारिका ने कहा कि असमय पीरियड या संबन्धित समस्या से बचाव करने के लिए स्वस्थ, संतुलित व घर का खानपान पर ध्यान देना चाहिए। अपने आहार में आयरन व प्रोटीन युक्त चीजें जरूर शामिल करें। जैसे हरे पत्तों वाली सब्जियाँ विशेषतः पालक, हर तरह की दालें, कैल्शियम से भरपूर भोजन जैसे दूध या दूध से पदार्थ (पनीर, दही आदि। घर में मौजूद गुड़-चना के सेवन से खून की कमी (एनीमिया) की दर को कम किया जा सकता है। इसके अलावा आयरन की नीली गोलियों का सेवन करें जो स्कूलों एवं आंगनबाड़ी केंद्र पर 10 से 19 वर्ष की किशोरियों को निःशुल्क वितरित की जाती हैं। कॉटन युक्त सेनेटरी पैड का इस्तेमाल करें। साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। माहवारी के दौरान नियमित रूप से स्नान करें ताकि शरीर में ताज़गी बनी रहे।

एक नजर एनएफ़एचएस के आंकड़ों पर
नेशनल फेमली हेल्थ सर्वे -5 (2019 -21) की रिपोर्ट पर नजर डालें तो पर पता चलेगा कि मासिक धर्म के मामले में वाराणसी में किशोरियां/युवतियों में किस तरह जागरुकता आयी है। एनएफएचएस-5 की रिपोर्ट के अनुसार 15 से 24 वर्ष की 85.6 प्रतिशत किशोरियां/युवतियां पीरियड्स के दौरान स्वच्छता के आधुनिक तरीकों का प्रयोग कर रही हैं जबकि एन एफएचएस-4 (2015-16) की रिपोर्ट में यह महज 69.1 प्रतिशत ही रहा।