वामपंथी-क्रांतिकारी समूहों की पहल पर शुरू हुई कोलकाता से वाराणसी तक जनचेतना यात्रा का हुआ समापन
वाराणसी। देश के कई वामपंथी-क्रांतिकारी समूहों की पहल पर कोलकाता से वाराणसी तक जनचेतना यात्रा शुरू की गई है। 20 दिसम्बर को यात्रा का समापन प्रधानमंत्री मोदी के चुनावी क्षेत्र वाराणसी के बीएचयू के लंका गेट पर हुआ। पिछले दो हफ्तों में यात्रा बंगाल, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश के विभिन्न ज़िलों व शहरों से गुज़री। इसके आयोजक संगठन हैं - अखिल हिन्द फॉरवर्ड ब्लॉक (क्रांतिकारी), आजाद गण मोर्चा, बीएएफआरबी, बिहार निर्माण एवं असंगठित श्रमिक संघ, सीबीएसएस, सीसीआई, सीपीआई-एमएल, सीपीआई-एमएल (एनडी), सीपीआई-एमएल (आरआई), एफआईआर, जनवादी लोक मंच, मार्क्सवादी समन्वय समिति, एमकेपी, नागरिक अधिकार रक्षा मंच, पीसीसी - सीपीआईएमएल, पीडीएसएफ, सर्वहारा जनमोर्चा, एसएनएम, एसडब्ल्यूसीसी, और अन्य लोकतांत्रिक व्यक्ति।
6 दिसंबर को बाबरी विध्वंस दिवस को फांसीवादी लामबंदी के प्रमुख आयोजनों में से एक के रूप में चिह्नित करते हुए कोलकाता से शुरू हुई यात्रा का उद्देश्य- आरएसएस-भाजपा और उनके कॉरपोरेट के सांप्रदायिक एजेंडे के बारे में लोगों के भीतर जागरूकता बढ़ाकर फासीवादी जन-आंदोलन का मुकाबला करना है। कोलकाता की उद्घाटन रैली में 1000 से अधिक लोग शामिल हुए। एमकेपी के कॉमरेड कुशल देबनाथ ने सभा का संचालन किया। एफआईआर से निशा विश्वास, सीपीआईएमएल से सुबोध मित्रा, सीपीआईएमएल (एनडी) से चंदन प्रमाणिक, पीसीसी सीपीआईएमएल से सैलेन भट्टाचार्य, सीपीआईएमएल (आरआई) से अलीक चक्रवर्ती सहित अन्य वक्ताओं ने संबोधित किया।
100 से अधिक लोग पूरे रास्ते में लगातार यात्रा में सक्रिय हैं। जहां से भी यह यात्रा गुजरती है, उन क्षेत्रों के लोग शामिल हो रहे हैं, भागीदार बन रहे हैं और अठानी-मोदी गठजोड़ के विरुध आवाज़ उठा रहे हैं। हुगली के पुराने औद्योगिक बेल्टों में अभियान के दौर के बाद अपना बंगाल चरण पूरा किया। यात्रा सिंगूर के पास, हुगली के कृषि क्षेत्र से होकर गुजरी, जो एक समय नव उदारवाद- विरोधी आंदोलन का स्थल था। यह पूर्वी बर्धमान के कृषि क्षेत्र से होकर गुजरा, जो इस समय एक गहरे कृषि संकट का सामना कर रहा है क्योंकि किसानों को अपनी आजीविका कमाने के लिए सरकार से प्रभावी समर्थन की कमी है और हार्वेस्टर के आयात के कारण खेतिहर मजदूरों की नौकरियां चली गयी हैं। गैर-औद्योगिकीकरण का संकट और हाल ही में तीव्र सांप्रदायिक लामबंदी का खतरा पैदा हो गया है। आरएसएस इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बेरोजगार युवाओं के भीतर सांप्रदायिक मानसिकता को उजागर कर रहा है।
यात्रा झारखंड में धनबाद और बोकारो के कोलियरी बेल्ट से होकर बिहार के पटना, औरंगाबाद, सासाराम के ग्रामीण इलाकों से होते हुए उत्तर प्रदेश के चंदौली ज़िले में पहुंची है। झारखंड एवं बिहार में भी नव-उदारवादी नीतियों का असर देखा जा सकता है। कोलियरी में भी श्रमिकों की स्थिति में बदलाव आये हैं जो बड़े पूंजीपति वर्ग के लाभ के लिए हैं।
पिछले कुछ सालों में बेरोज़गारी के खिलाफ आंदोलनों में बिहार में नौजवानों की अच्छी भागीदारी देखने को मिली है। एतिहसिक रूप से बिहार में क्रान्तिकारी आंदोलन हुए हैं। जिनको याद करते हुए और उनसे प्रेरणा लेते हुए यात्रा बिहार के कैमूर ज़िले से होकर उत्तर प्रदेश के चंदौली में प्रवेश करी। यह यात्रा देश में सभी जुझारू आंदोलनों और संगठनों के लिए एक आह्वान है की एक क्रान्तिकारी आंदोलन के माध्यम से आरएसएस-बीजेपी और अम्बानी-अदानी के गठबंधन को तोड़ने के संघर्ष में शामिल हों।