चावल उत्पादन में मीथेन उत्सर्जन कम करने की तकनीकों पर काम करेंगे इरी और विश्व बैंक, गोलमेज सम्मेलन में बनी सहमति 

वाराणसी स्थित इरी दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र (आइसार्क) में गुरुवार को चावल उत्पादन में मीथेन उत्सर्जन कम करने की तकनीकों पर चर्चा के लिए गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया। प्रदेश में प्रस्तावित यूपी एग्रीज परियोजना के तहत यह कार्यक्रम हुआ। इसमें चावल की सीधी बुआई तकनीक (डीएसआर) को बढ़ावा देने पर चर्चा हुई। इससे प्रदेश एवं दक्षिण एशिया में चावल उत्पादन में मीथेन उत्सर्जन की मात्रा को कम करने एवं सतत कृषि को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा सके।
 

वाराणसी। वाराणसी स्थित इरी दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र (आइसार्क) में गुरुवार को चावल उत्पादन में मीथेन उत्सर्जन कम करने की तकनीकों पर चर्चा के लिए गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया। प्रदेश में प्रस्तावित यूपी एग्रीज परियोजना के तहत यह कार्यक्रम हुआ। इसमें चावल की सीधी बुआई तकनीक (डीएसआर) को बढ़ावा देने पर चर्चा हुई। इससे प्रदेश एवं दक्षिण एशिया में चावल उत्पादन में मीथेन उत्सर्जन की मात्रा को कम करने एवं सतत कृषि को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा सके।

गोलमेज सम्मेलन में विभिन्न सरकारी और निजी क्षेत्र के प्रतिनिधि, कार्बन परियोजना डेवलपर्स और किसान एक साथ आएं। विश्व बैंक 2030 जल संसाधन समूह, बायर, कोर कार्बन एक्स, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन, पायरोसीसीएस/टीओ वेंचर्स, रेड्डीज फाउंडेशन एवं प्रदेश के कृषि विज्ञान केन्द्रों के विशेषज्ञों ने डीएसआर के बहुआयामी लाभों जैसे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी, जल संरक्षण में वृद्धि, महिला किसानों पर श्रम-भार और कृषि उत्पादकता में वृद्धि आदि पर चर्चा की। इस कार्यक्रम में कार्बन संसाधन प्रबंधन के मौजूदा और संभावित अवसरों तथा कार्बन बाजारों के भविष्य के लिए भारत के दृष्टिकोण पर भी मंथन किया गया।
 
इरी की महानिदेशक डॉ. यवोन पिंटो ने आइसार्क को चुनने के लिए विश्व बैंक और भाग लेने वाले हितधारकों को धन्यवाद दिया। डीएसआर इरी की एक प्रमुख पहल रही है और यह जलवायु चुनौतियों का सामना कर रहे चावल आधारित कृषि खाद्य प्रणालियों के लिए अत्याधुनिक समाधानों में से एक है। यह गोलमेज सम्मेलन एक महत्वपूर्ण क्षण है और दक्षिण एशिया में डीएसआर को अपनाने के पैमाने को बढ़ाने की रणनीति बनाने की दिशा में इरी काएक प्रतिबद्ध प्रयास है।

इरी ने असम में अपार्ट, ओडिशा में क्लाइमेट प्रो प्रोजेक्ट, वियतनाम में एक मिलियन हेक्टेयर उच्च गुणवत्ता वाले चावल परियोजना जैसी परियोजनाओं पर विश्व बैंक के साथ सफलतापूर्वक कार्य कर चुका है, और केरल में केरा और उत्तर प्रदेश में यूपी-एग्रीस के लिए नई साझेदारियां प्रस्तावित है। यह परियोजनाएँ कम कार्बन वाली तकनीकों जैसे कि डीएसआर, अल्टरनेट वेटिंग एंड ड्रायिंग (एडब्ल्यूडी) और बायोचार को बढ़ावा देने में मदद करती हैं। साथ ही कम अवधि वाली किस्मों, समय पर रोपण, उद्यमिता विकास और उच्च लाभप्रदता के लिए कार्बन क्रेडिट तंत्र के साथ सिस्टम को अनुकूलित करती हैं। 

विश्व बैंक की दीना उमाली-डीनिंगर ने पहल की सराहना की। कहा कि "यूपी-एग्रीस परियोजना के तहत इरी और विश्व बैंक के बीच साझेदारी कृषि में अभिनव समाधानों को बढ़ावा देने की हमारी प्रतिबद्धता का प्रमाण है। विभिन्न हितधारकों की विशेषज्ञता और संसाधनों को एकीकृत करके, हमारा लक्ष्य एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र बनाना है जो डीएसआर जैसी जलवायु-स्मार्ट प्रथाओं को व्यापक रूप से अपनाने का समर्थन करता है।"

कृषि और खाद्य वैश्विक अभ्यास के लिए विश्व बैंक की वैश्विक निदेशक डॉ. शोभा शेट्टी ने कहा, "डीएसआर तेजी से रोपण, जल्दी पकने और एरोबिक प्रणालियों के आसपास काम करने का वादा करता है। यह कम मीथेन उत्सर्जन के लिए एक अच्छा समाधान है। किसानों के लिए इस तकनीक को और अधिक व्यवहार्य बनाने के लिए, हमें कम लागत वाले संचालन की रूप-रेखा और योजना बनाने की जरूरत है। चावल आधारित प्रणालियों में मीथेन उत्सर्जन को कम करने के बारे में भारत में हो रही चर्चा देखना उत्साहजनक है। यह ज्ञान-साझाकरण पहल हमें हमारी कमियों की पहचान करने और संभावित समाधानों की रणनीति बनाने में मदद कर सकती है। 

उत्तर प्रदेश भारत एवं विश्व पटल पर चावल उत्पादन में प्रमुख स्थान पर है। इस प्रकार की बहुआयामी परियोजनाओं से उत्तर प्रदेश कृषि में दक्षिण एवं दक्षिण पूर्व एशिया के अन्य देशों के लिए उदहारण स्वरुप बन सकता है।” कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने मीथेन उत्सर्जन, कार्बन क्रेडिट एवं फसल अवशेष प्रबंधन पर अपने विचार प्रकट किये। इस गोलमेज सम्मेलन में टिकाऊ प्रथाओं को प्रोत्साहित करने में कार्बन क्रेडिट की भूमिका और डीएसआर के माध्यम से कार्बन क्रेडिट उत्पन्न करने की क्षमता पर भी बात की गयी, जिससे किसानों को नए आर्थिक अवसर मिले।

भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के संयुक्त सचिव श्री फ्रैंकलिन खोबंग ने कहा “कृषि से आने वाले मीथेन उत्सर्जन में 14 प्रतिशत योगदान को देखते हुए भारत में स्वैच्छिक कार्बन बाजारों (वीसीएम) के लिए विशाल उभरते अवसर दिखाई से रहे हैं। हालांकि कार्बन संसाधन प्रबंधन का विषय हमारे लिए थोड़ा नया है, लेकिन भारत सरकार ने अपनी 100-दिवसीय कार्य योजना में इस क्षेत्र में संभावित अवसरों के लिए एक दूरदर्शी रूपरेखा पहले ही तैयार कर ली है। हम इस विषय के इर्द-गिर्द राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली को गतिशील और सक्षम बनाने के लिए कई पायलट परियोजनाएं भी लेकर आ रहे हैं,” । 

उन्होंने चावल प्रणालियों में विकास को आगे बढ़ाने में इरी जैसे सीजीआईएआर केंद्रों और विश्व बैंक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और भारतीय राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा प्रणाली संस्थानों जैसे संगठनों के प्रयासों की सराहना भी की। उन्होंने वीसीएम को बढ़ावा देने और सटीक ऋण उत्पन्न करने वाली अल्पकालिक और लागत प्रभावी पद्धतियों को विकसित करने में इन संस्थानों के महत्व पर जोर दिया।

प्रतिभागियों को डीएसआर प्लॉट का दौरा करने और स्थानीय किसानों के साथ बातचीत करने का अवसर भी मिला। यह आयोजन कृषि उत्सर्जन को कम करने के पूरक लाभों के साथ डीएसआर को बढ़ाने और वितरित करने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी का लाभ उठाने के लिए विविध हितधारकों को एक ही मंच पर एक साथ लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। इस कार्यक्रम में डीएसआर और अन्य कम उत्सर्जन वाले चावल की खेती के तरीकों जैसे कि बायोचार और जैव-ऊर्जा के माध्यम से बेहतर फसल अवशेष प्रबंधन को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने की दिशा में कार्बन क्रेडिट बाजारों द्वारा प्रस्तुत अवसरों पर भी प्रकाश डाला गया।