खिचड़ी का प्रसाद पाने को रोजाना उमड़ते हैैं भक्त, पूरे होते हैं मनोरथ, जानिये महत्ता 

गोदौलिया दशाश्वमेध मार्ग पर डेढ़सी पुल के पास खिचड़ी बाबा का प्रसिद्ध मंदिर है। यहां रोजाना दर्जनों भक्तों को बाबा का प्रसाद स्वरूप खिचड़ी बंटती है। प्रसाद पाने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ती है। भक्त बताते हैं कि बाबा के आशीर्वाद से प्रसाद अमृत समान हो जाता है। इसलिए भंडारे में प्रसाद पाने के लिए भक्तों की लाइन लगी रहती है। 
 

वाराणसी। गोदौलिया दशाश्वमेध मार्ग पर डेढ़सी पुल के पास खिचड़ी बाबा का प्रसिद्ध मंदिर है। यहां रोजाना दर्जनों भक्तों को बाबा का प्रसाद स्वरूप खिचड़ी बंटती है। प्रसाद पाने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ती है। भक्त बताते हैं कि बाबा के आशीर्वाद से प्रसाद अमृत समान हो जाता है। इसलिए भंडारे में प्रसाद पाने के लिए भक्तों की लाइन लगी रहती है। 

जानकारों के अनुसार 1937 में खिचड़ी बाबा ब्रह्मलीन हो गए। बाबा के ब्रह्मलीन होने के बाद मकान मालिक ने बाबा का सामान आदि फेक कर स्थान पर कब्जा करने की चेष्टा की, तो बाबा के भक्तो ने हंगामा मचा दिया। बाबा के एक भक्त ने केदारघाट से लाकर काले पत्थर का शिवलिंग स्थापित कर दिया। यह शिवलिग बाबा की स्मृत्ति में अब तक पूजित है। बाना के 20 वर्ष बाद बाबा के एक भक्त के प्रयास से बंगाल की एक महिला ने संगमरमर की एक मूर्ति बनवाकर वहां स्थापित कराई और सन्त हरिहर बाबा की मूर्ति भी स्थापित की गई। बाबा के भक्तों ने वहां अच्छी व्यवस्था कर दी है। फर्श पर टाइल्स, सममरमर बिजली दरवाजा आदि और प्रतिदिन पूजा आरती नियमित रूप में होता है। अब भी खिचडी का भंडारा प्रायः होता रहता है। लोगो का अनुमान है कि खिचड़ी बाबा बंगाली थे। उनकी गुरु परम्परा का पता किसी को नहीं है। बाचा के अनेक सेवक और भक्त अब भी बाबा का स्मरण और भक्ति से करते हैं। बहुत श्रद्धा से यह स्वीकार करते है कि बाबा के आशीर्वाद से ही जीवन जीने लायक बना है। 


गोदौलिया दशाश्वमेध मार्ग पर डेढ़सी पुल के पास बाबा की मूर्ति स्थापित है। बाबा को लोग शंकर बाबा और खिचड़िया बाना के नाम से जानते थे। खिचडिया बाबा नग्न रहते थे। न किसी से बोलते थे न किसी से कुछ मागते थे। कोइ कुछ खिला देता था तो खा लेते थे, अन्यथा उसी तरह पड़े रहते थे। सर्दी, गर्मी, बरसात का इन पर कोई प्रभाव नहीं पडता था। कमी बहुत मौज में रहते थे तो खिचड़ी बनाते थे। इनकी खिचड़ी मे साग सब्जी मिठाई गुड़ नमक फल आदि जो भी रहता था, वह डाल दिया जाता था, इतना ही नही बाबा के पास जमा हडिया, पुरवा आदि में लगा सडा गल्ला दुर्गन्धित जो जूठन आदि रहता था वह सब भी खुरच कर खिचडी में डाल दिया जाता था। बाबा जी की यह खिचडी महाप्रसाद के रूप में जो लोग ग्रहण करते थे उनके मनोरथ पूर्ण हो जाते थे।