श्रौत याग–अनुष्ठान कार्यशाला से सामाजिक समरसता और मानसिक शुद्धि का विकास: डॉ. ज्ञानेन्द्र सापकोटा

वाराणसी। वैदिक संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के उद्देश्य से सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय एवं श्रीकाशी तारक ब्रह्मेन्द्र विद्यामठ के संयुक्त तत्वावधान में श्रीकाशी तारक ब्रह्मेन्द्र विद्यामठ परिसर में 18 दिसंबर से 23 दिसंबर 2025 तक श्रौत याग–अनुष्ठान कार्यशाला का भव्य आयोजन किया जा रहा है। यह आयोजन भारतीय ज्ञान परम्परा केन्द्र के माध्यम से किया जा रहा है, जिसमें देशभर से विद्वान आचार्य, शोधार्थी और विद्यार्थी सहभागिता कर रहे हैं।
 

वाराणसी। वैदिक संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के उद्देश्य से सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय एवं श्रीकाशी तारक ब्रह्मेन्द्र विद्यामठ के संयुक्त तत्वावधान में श्रीकाशी तारक ब्रह्मेन्द्र विद्यामठ परिसर में 18 दिसंबर से 23 दिसंबर 2025 तक श्रौत याग–अनुष्ठान कार्यशाला का भव्य आयोजन किया जा रहा है। यह आयोजन भारतीय ज्ञान परम्परा केन्द्र के माध्यम से किया जा रहा है, जिसमें देशभर से विद्वान आचार्य, शोधार्थी और विद्यार्थी सहभागिता कर रहे हैं।

श्रौत परम्परा को व्यावहारिक रूप में समझाने का प्रयास
कार्यशाला के संयोजक एवं प्रधान गवेषक डॉ. ज्ञानेन्द्र सापकोटा ने बताया कि इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य वेदों में वर्णित श्रौत याग–परम्परा को व्यावहारिक रूप में समझाना और नई पीढ़ी को इस दुर्लभ वैदिक ज्ञान से परिचित कराना है। उन्होंने कहा कि श्रौत कर्मकाण्ड केवल ग्रंथों तक सीमित न रहकर प्रत्यक्ष अभ्यास के माध्यम से समझे जाएं, इसी उद्देश्य से उदाहरण आधारित प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

यज्ञकुंड निर्माण से अग्न्याधान तक प्रत्यक्ष अभ्यास
कार्यशाला के प्रथम सत्र में आचार्यों द्वारा यज्ञकुंड निर्माण की विधि का प्रदर्शन किया गया, जिसमें श्रौतसूत्रों के अनुसार ईंटों की संख्या, आकृति और माप को समझाया गया। दूसरे सत्र में अग्न्याधान संस्कार की प्रक्रिया का प्रत्यक्ष अभ्यास कराया गया, जिसमें अग्नि-स्थापन, समिधा-विधान और मंत्र-पाठ की विधियों का प्रशिक्षण दिया गया।

दर्शपूर्णमास याग और अग्निहोत्र का विस्तृत प्रशिक्षण
इसके बाद प्रतिभागियों को दर्शपूर्णमास याग, नवग्रह याग और अग्निहोत्र जैसे प्रमुख श्रौत कर्मों की विधियों का विस्तार से अभ्यास कराया जा रहा है। प्रशिक्षकों ने समझाया कि प्रत्येक याग के लिए पृथक मंत्र, द्रव्य और काल निर्धारण अनिवार्य होता है। हवि-समर्पण में घृत, सोमलता, तण्डुल और समिधा के प्रयोग को श्रौत ग्रंथों के संदर्भ सहित समझाया गया।

पर्यावरण संरक्षण और मानसिक अनुशासन का संदेश
डॉ. ज्ञानेन्द्र सापकोटा ने कहा कि श्रौत याग केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं हैं, बल्कि इनमें पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक समरसता और मानसिक शुद्धि के तत्व निहित हैं। याग में प्रयुक्त औषधीय द्रव्यों से वायु-शुद्धि होती है, जबकि सामूहिक मंत्र-पाठ से मानसिक एकाग्रता, अनुशासन और सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है।

विद्वानों और विद्यार्थियों की सक्रिय सहभागिता
कार्यशाला में विश्वविद्यालय के वेद, कर्मकाण्ड और भारतीय ज्ञान परम्परा से जुड़े आचार्यगण, शोधार्थी और बड़ी संख्या में छात्र भाग ले रहे हैं। प्रतिभागियों को शुल्बसूत्र, आपस्तम्ब श्रौतसूत्र, बौधायन श्रौतसूत्र और कात्यायन श्रौतसूत्र जैसे ग्रंथों के संदर्भों के साथ विधियों का अध्ययन कराया जा रहा है।

प्रमाणपत्र वितरण और वैदिक परम्परा के पुनर्जीवन की पहल
आयोजन समिति के अनुसार, कार्यशाला के समापन पर प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र प्रदान किए जाएंगे, जिससे उन्हें भविष्य में वैदिक अनुष्ठानों के अध्ययन और प्रयोग में सहायता मिलेगी। यह आयोजन न केवल वाराणसी की प्राचीन वैदिक परम्परा को पुनर्जीवित करने का प्रयास है, बल्कि भारतीय ज्ञान परम्परा को वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित करने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

गणमान्य विद्वानों की उपस्थिति
कार्यक्रम का संचालन शेखर द्राविड घनपाठी ने किया, जबकि अध्यक्षता मूलाम्नाय काञ्ची शंकराचार्य पीठ के काशी प्रतिनिधि श्रीअमृतानन्द सरस्वती जी महाराज ने की। मंगलाचरण डॉ. विजयकुमार शर्मा ने प्रस्तुत किया और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. दुर्गेश पाठक ने किया। इस अवसर पर प्रो. हरिप्रसाद अधिकारी, प्राचार्य गोविन्द पाण्डेय, सुशील पाण्डेय, डॉ. गोविन्द पौडेल, नागार्जुन अधिकारी, डॉ. आशीष मणि त्रिपाठी और अखिलेश मिश्र सहित अनेक विद्वानों की गरिमामयी उपस्थिति रही।