प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध से अधिक रहा कोविड का दुष्प्रभावः डॉ सौम्या स्वामीनाथन
वाराणसी। बीएचयू विज्ञान संस्थान के महामना सभागार में बुधवार को 24वां एसपीरे चौधरी मेमोरियल व्याख्यान का आयोजन किया गया। इसमें भारत रत्न, हरित क्रांति के जनक प्रो. एमएस स्वामीनाथन की बेटी और डब्लूएच्ओ की पूर्व चीफ साइंटिस्ट डॉ सौम्या स्वामीनाथन नें “लेसन फ्रॉम दी पैनडेमिक फॉर साइंस एंड पब्लिक हेल्थ” विषय पर अपने विचार रखे। उन्होंने दुनिया में कोविड के दुष्प्रभाव को प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध से भी अधिक बताया।
उन्होंने कहा कि प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध में जितनी जान माल की क्षति हुई उससे कहीं ज़्यादा नुक़सान कोविड से हुआ। कोविड महामारी ने भारत सहित सभी देशों के लिए एक अभूतपूर्व चुनौती पेश की। महामारी ने लोगों को समझा दिया कि स्वास्थ्य हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज है, इसके लिये विज्ञान और प्रौद्योगिकी में तेजी से प्रगति हुई। विज्ञान की प्रगति से ही हम और वायरस और इसके रोगजनन को बेहतर तरीक़े से समझ सकते हैं। उस पर विजय पाने के लिए नये उपकरण विकसित करने के लिए उस ज्ञान का उपयोग कर सकते हैं। वर्तमान में उपलब्ध वैज्ञानिक उपकरणों का उपयोग विज्ञान के चार क्षेत्रों (सर्विलांस, बेसिक रिसर्च, ट्रांसलेशनल रिसर्च और क्लिनिकल ट्रायल्स) पर केंद्रित करते हुए हम किसी आने वाले उभरते नये वायरस खतरों को सक्रिय रूप से प्रबंधित करके बेहतर अनुसंधान कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि मौजूदा और भविष्य के महामारी जोखिमों की निगरानी और आकलन के लिए नए पैथोजन की निरंतर खोज और ज्ञात पैथोजन का सर्विलांस नितांत आवश्यक है। इन रोगजनकों का चयन विशिष्ट मानदंडों के आधार पर किया जाता है, जो मौलिक अनुसंधान को बढ़ावा देते हैं और उभरते भविष्य के खतरों के लिए हमारी तैयारी को बढ़ाता है।
उन्होंने वैज्ञानिकों की प्रशंशा करते हुए कहा कि किसी भी वैक्सीन के विकास में कम से कम 10-15 वर्ष लगते हैं, लेकिन यह वैज्ञानिकों की मेहनत का परिणाम था कि हम इतनी तेज़ी से कोविड की वैक्सीन बना सके। कोविड के पहले सबसे तेज़ी से मम्प्स की वैक्सीन बनी थी। इसमें 4 वर्ष लगे थे। सभा के मुख्य अतिथि बीएचयू के पूर्व वीसी प्रोफेसर पंजाब सिंह ने कहा कि किसी भी भविष्य की महामारी के लिए वैज्ञानिकों को समग्र रूप से काम करना होगा।
कार्यक्रम की शुरूआत अध्यक्ष प्रोफेसर राजीव रमन नें प्रोफेसर एस पी रे चौधरी के व्यक्तिव और शोध के बारे में बताया। सभा का संचालन प्रोफेसर मधु तापड़िया ने किया और डॉ गौरव पांडेय ने धन्यवाद ज्ञापन किया। इस अवसर पर विज्ञान संस्थान के डीन, डायरेक्टर के अलावा पूर्व डायरेक्टर प्रोफ़ अनिल त्रिपाठी, प्रोफेसर खरवार, प्रोफेसर एसबी अग्रवाल, प्रोफेसर कायस्था, प्रोफेसर एस सी लखोटिया, प्रोफेसर मर्सी जे रमन, डॉ समीर गुप्ता, डॉ बामा चरण मंडल, डॉ ऋचा आर्य सहित विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष और छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।