बौद्ध ज्ञान के केंद्र में चार आर्य सत्य की अवधारणा : कुलपति प्रो वांगचुक दोर्जे
वाराणसी। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के योग साधना केंद्र में बुद्ध जयंती के उपलक्ष्य में श्रमण विद्या संकाय के अंतर्गत बौद्ध धर्म दर्शन में निहित ज्ञान परंपरा विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें बौद्ध धर्म दर्शन पर विस्तार से चर्चा हुई। विद्वानों ने इसमें निहित ज्ञान परंपरा पर अपने विचार रखे।
केंद्रीय तिब्बती अध्ययन तिब्बती संस्थान सारनाथ, वाराणसी के कुलपति प्रोफेसर बांगचुक दोर्जे नेगी ने कहा कि बौद्ध धर्म, एक धर्म और दर्शन जो प्राचीन भारत में उत्पन्न हुआ। बौद्ध धर्म एक समृद्ध ज्ञान परम्परा का प्रतीक है जो कि पीढ़ियों से चला आ रही है। यह परंपरा सिद्धार्थ गौतम की शिक्षाओं में निहित है, जिन्होंने दुख की प्रकृति को समझने और मुक्ति का मार्ग खोजने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि बौद्ध ज्ञान के केंद्र में चार आर्य सत्य की अवधारणा है। क्रमशः दुख का सत्य,दुख की उत्पत्ति का सत्य, दुख की समाप्ति का सत्य और दुख की समाप्ति के मार्ग का सत्य। य़ह सत्य केवल हठधर्मिता नहीं है, बल्कि मानवीय स्थिति और वास्तविकता की प्रकृति को समझने के लिए रूपरेखा हैं।
बतौर मुख्य वक्ताभदंत चंदिमा थेरो, संस्थापक अध्यक्ष धम्मालर्निंग सेंटर, सारनाथ, वाराणसी ने कहा कि बौद्ध परंपरा में नैतिकता, ध्यान और ज्ञान सहित विभिन्न अनुशासन भी शामिल हैं। नैतिक आचरण (शील) आध्यात्मिक विकास के लिए एक आधार प्रदान करता है, जबकि ध्यान (समाधि) मानसिक स्पष्टता और ध्यान केंद्रित करता है।बुद्धि (प्रज्ञा)इस प्रक्रिया की परिणति है, जो व्यक्तियों को चीजों को वैसा ही देखने में सक्षम बनाती है जैसी वे वास्तव में हैं। पूर्व श्रमण विद्या संकाय अध्यक्ष प्रो. हरप्रसाद दीक्षित ने कहा कि बौद्ध धर्म की ज्ञान परंपरा केवल शास्त्रों तक ही सीमित नहीं है। यह पूरे इतिहास में बौद्ध गुरुओं और विद्वानों की प्रथाओं और शिक्षाओं में भी सन्निहित है।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा ने कहा कि बौद्ध धर्म की ज्ञान परंपरा एक गहन और कालातीत ज्ञान प्रदान करती है, जो व्यक्तियों को उनकी आध्यात्मिक यात्रा पर प्रेरित और मार्गदर्शन करना जारी रखती है। वास्तविकता, स्वंय और मुक्ति के मार्ग की प्रकृति पर इसकी शिखाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, जितनी सदियों पहले थीं।
इस दौरान प्रोफेसर रामकिशोर त्रिपाठी, प्रो रामपूजन पाण्डेय, प्रो जितेन्द्र कुमार सिंह, प्रो सुधाकर मिश्र, प्रो हीरककांत चक्रवर्ती, प्रो शैलेश कुमार मिश्र, प्रो हरिशंकर पाण्डेय, प्रो हरिप्रसाद अधिकारी,प्रो महेंद्र पाण्डेय,डॉ मधुसूदन मिश्र, डॉ सत्येंद्र कुमार यादव,डॉ विजय कुमार शर्मा आदि उपस्थित रहे।