अंधेर नगरी चौपट राजा, बनारस रंग महोत्सव में भारतेंदु के नाटक का हुआ कठपुतली मंचन 

बनारस रंग महोत्सव की पांचवें दिन अभिनय का मंच सजा। इस दौरान आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह भारतेंदु हरिश्चंद्र के नाटक अंधेर नगरी चौपट राजा का कठपुतली मंचन किया गया। इसके माध्यम से संदेश देने की कोशिश की गई।
 

वाराणसी। बनारस रंग महोत्सव की पांचवें दिन अभिनय का मंच सजा। इस दौरान आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह भारतेंदु हरिश्चंद्र के नाटक अंधेर नगरी चौपट राजा का कठपुतली मंचन किया गया। इसके माध्यम से संदेश देने की कोशिश की गई। 

नाटक 'अंधेर नगरी' में एक ऐसे नगर का चित्रण है, जहां न्याय-अन्याय में फ़र्क नहीं किया जाता। महंत अपने दो चेलों के साथ जिस नगर में पहुंचता है, वहां हर वस्तु का भाव ‘टके सेर' है। यह देखकर महंत को हैरानी होती है। वह अपने चेलों को तुरंत नगर छोड़ने की सलाह देता है। लेकिन एक चेला गुरु की बात न मानकर उसी नगर में रह जाता है। इस अंधेर नगरी के राजा के राज्य में एक बकरी दीवार से दबकर मर जाती है। फरियादी राजा के पास न्याय की आशा लेकर पहुंचता है। राजा के हुक्म के अनुसार बकरी के मरने के लिए ज़िम्मेदार के रूप में क्रमश: कल्लू बनिए, कारीगर, चूने वाले, भिश्ती, कसाई, गड़रिए तथा कोतवाल को पकड़कर लाया जाता है, लेकिन हर व्यक्ति किसी दूसरे को ज़िम्मेदार बनाकर खुद छूटता जाता है।

अंतत: चेले गोबरधनदास को पकड़ लिया जाता है। फांसी के पहले चेला गुरु को याद करता है। महंत आकर गोबरधनदास से गुप्त बातचीत करता है। फिर गुरु चेले में वाद-विवाद होने लगता है। कारण पूछने पर महंत बताता है कि इस शुभ मुहूर्त में जिसे फांसी होगी, उसे स्वर्ग मिलेगा। यह सुनकर राजा स्वयं फांसी पर झूलने के लिए तैयार हो जाता है। इस तरह अन्यायी और मुर्ख राजा स्वतः नष्ट हो जाता है। यह प्रस्तुति अभिनव कला मंच की थी। इसका निर्देशन राजेंद्र श्रीवास्तव ने किया था। शाम 6:30 बजे फैक्ट रंगमंडल बिहार कि प्रस्तुति कथा ने दर्शकों का मन मोह लिए। यह प्रस्तुति विशेष रूप से बेगूसराय बिहार से बनारस रंग महोत्सव में प्रस्तुत होने आई थी। इसका लेखन सुधांशु फ़िरदौस एवं निर्देशन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालए वाराणसी केंद्र के निदेशक प्रवीण कुमार गुंजन ने किया।

यह नाटक कथाकारों की बात करता है। जबसे मनुष्य का इतिहास है, तभी से कथा का इतिहास है। मानव सभ्यता के आरंभ से ही कथा सुनने-सुनाने पर बहुत जोर रहा है । इस देश में कथा सुनाने वालों की एक लंबी परम्परा रही है, जो घूम -घूमकर कथा बांच कर ही अपना जीवन चलाते रहे हैं। नाटक कथा ऐसे ही कथावाचकों की बातचीत से सम्भव हुई कथा की व्यथा है, जिसमें काथिक लोचन व गुड़िया की कहानी के माध्यम से प्रेम और पानी को बचाने की बात कहते हैं। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के नाट्य विभाग के छात्रों ने बताया कि जो भी कुछ वो नाट्य प्रयोग की शैली के बारे में पढ़ते हैं उनका प्रयोग कैसे होता है वो उनको आईएसएसए नाटक में बखूबी देखने को मिला। कार्यक्रम का संचालन महोत्सव निदेशक गुंजन शुक्ला ने किया। नाटक में मुख्य भूमिका में प्रिया कुमारी, आयशा सिंह यादव, वैभव कुमार, चन्दन कुमार वत्स दिखे। छह नवंबर को महोत्सव में वाराणसी की हास्य प्रस्तुति राजा मास्टर का मंचन होगा।