भैरव अष्टमी विशेष: काशी पुराधिपति के शहर की रक्षा का दायित्व संभालते हैं कालभैरव, दर्शन मात्र से समस्त पापों का होता है दमन

 
वाराणसी। भैरव अष्टमी काशी में न्याय के देवता भैरव की उपासना का पर्व है। काशी में अलग-अलग जगहों पर अष्टभैरव विद्यमान हैं। इनमें कालभैरव की विशेष पूजा होती है। कालभैरव दंड के देवता माने जाते हैं। अर्थात् काशी में दुष्टों को दंड का निर्धारण कालभैरव ही करते हैं। इसीलिए इन्हें काशी का कोतवाल भी कहा जाता है। काशी में पहली बार आने वाला कोई भी व्यक्ति बाबा के चरणों में हाजिरी लगाना नहीं भूलता। चाहे वह कोई दर्शनार्थी हो या फिर कोई भी प्रशासनिक अधिकारी। 

मान्यता यह भी है कि कोई भी प्रशासनिक अधिकारी ड्यूटी ज्वाइन करने से पहले काशी के कोतवाल बाबा कालभैरव के दरबार में हाजिरी लगाता है। उसके बाद ही ड्यूटी ज्वाइन करता है। स्वयं प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री भी बाबा से आशीर्वाद लिए बिना काशी में किसी काम की शुरुआत नहीं करते। एक मान्यता यह भी है कि बिना कालभैरव के दर्शन के काशी विश्वनाथ का दर्शन भी अधूरा माना जाता है। 

ब्रह्मा के पांचवे शीश का कालभैरव ने किया दमन

काल भैरव मंदिर के महंत सुमित उपाध्याय ने बताया कि वेदों की वाणी सुनकर ब्रह्मा जी के पांचवे मुख ने शिव के निमित्त अपशब्द बोलना शुरू कर दिया। इस दौरान एक दिव्यज्योति प्रकट हुई। यह कोई और नहीं महादेव के ही रौद्र अवतार काल भैरव थे। शिव के इस रूप ने ब्रह्मा जी का पांचवा मुख धड़ से अलग कर दिया। उस दिन मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि थी। काशी में जहां ब्रह्मा जी का सिर गिरा उसे कपाल तीर्थ कहा जाता है। काल भैरव को ब्रह्महत्या का पाप लगा। काल भैरव को काशी में ही इस पाप से मुक्ति मिली। शिव ने उन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त किया। तभी से काल भैरव यहां निवास करते हैं। 

अष्टमी तिथि को काल भैरव जयंती

महंत सुमित उपाध्याय के अनुसार, बाबा भैरव को शिव जी का अंश माना जाता है, वह भोलेनाथ के पांचवे अवतार हैं। भैरव के दो स्वरूप हैं एक बटुक भैरव, जो शिव के बालरूप माने जाते हैं। यह सौम्य रूप में प्रसिद्ध है। वहीं दूसरे हैं काल भैरव जिन्हें दंडनायक माना गया है। अनिष्ट करने वालों को काल भैरव का प्रकोप झेलना पड़ता लेकिन जिस पर वह प्रसन्न हो जाए उसके कभी नकारात्मक शक्तियों, ऊपरी बाधा और भूत-प्रेत जैसी समस्याएं परेशान नहीं करती।

 काशीपुराधिपति ने बनाया कोतवाल

भगवान शिव ने काल भैरव को आदेश दिया कि तुम इस नगर की कोतवाली की कमान संभालोगे और कोतवाल कहे जाओगे। युगों तक तुम्हारी इसी रूप में पूजा की जाएगी। शिव का आशीर्वाद पाकर काल भैरव काशी में ही बस गए और वो जिस स्थान पर रहते थे वहीं काल भैरव का मंदिर स्थापित है। बहुत से भक्त यह भी मानते हैं कि बाबा कालभैरव में अर्जी (प्रार्थना) लगाने के बाद ही बाबा विश्वनाथ उसे सुनते है। कहा जाता है कि काशी में जिसने काल भैरव के दर्शन नहीं किए, उसको बाबा विश्वनाथ की पूजा का भी फल नहीं मिलता है। 

कोतवाली थाने की हनक भी बाबा की

काशी में कालभैरव मंदिर के समीप कोतवाली थाना में भी कोतवाल के रूप में बाबा कालभैरव ही विराजमान हैं। यहां के थाना प्रभारी कभी कोतवाल की कुर्सी पर बैठने की हिम्मत नहीं करते। कोतवाल की कुर्सी के पास एक कुर्सी लगाकर वह अपना कार्य करते हैं। यहां बाबा की टोपी भी है, मेज भी है, दंड भी है और दंडनायक भी बाबा ही हैं। यहां सर्वप्रथम बाबा की पूजा के बाद ही थाने का कार्य शुरू होता है। 

कोतवाली थाने के थाना प्रभारी आशीष मिश्रा ने बताया कि यहां आज भी बाबा का ही राज चलता है। हम सभी केवल एक माध्यम हैं। बिना उनकी आज्ञा के एक पत्ता तक नहीं हिलता। यहां बाबा की कुर्सी के साथ उनका मेज, उनका डंडा और थानेदार की टोपी भी है और रुल भी है, जो दंड का निर्धारण करता है।