हरिश्चंद्र महाविद्यालय में संगोष्ठी, वक्ता बोले, सकारात्मक मनोविज्ञान की जनक है भगवद्गीता

हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय में सोमवार को एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें सकारात्मकता और सफलता के माइंडसेट विषय पर चर्चा हुई। इस अवसर पर बीबीसी (लंदन) के पूर्व रेडियो संपादक (हिंदी सेवा) डॉ. विजय राणा ने अपने विचार रखे। उन्होंने महाभारत का उदाहरण देते हुए श्रीमद्भगवद्गीता को सकारात्मक मनोविज्ञान का जनक बताया। 
 

वाराणसी। हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय में सोमवार को एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें सकारात्मकता और सफलता के माइंडसेट विषय पर चर्चा हुई। इस अवसर पर बीबीसी (लंदन) के पूर्व रेडियो संपादक (हिंदी सेवा) डॉ. विजय राणा ने अपने विचार रखे। उन्होंने महाभारत का उदाहरण देते हुए श्रीमद्भगवद्गीता को सकारात्मक मनोविज्ञान का जनक बताया।

 

उन्होंने कहा कि नकारात्मक विचारों में व्यक्ति इतना उलझ जाता है कि उसको सही गलत में विभेद का पता नहीं चल पाता। यदि कृष्ण जैसे मार्गदर्शक नहीं होते तो महाभारत युद्ध का परिणाम भिन्न होता। उन्होंने भगवद्गीता को मनोविज्ञान का जनक की संज्ञा दी। ध्यान व मनन को कारगर रेमेडी बताते हुए डॉ. राणा ने कहा कि आजकल पश्चिमी देशों में भारतीय ध्यान पद्धति बहुत लोकप्रिय हो रही है। उन्होंने सकारात्मक सोच को बढ़ाने के लिए उन्होंने दया व आभार प्रकट करने जैसे व्यायाम को अपनाने की अपील की।

संगोष्ठी में बतौर विशिष्ट अतिथि उपस्थित प्रो. आशाराम त्रिपाठी, पूर्व विभागाध्यक्ष, कॉमर्स विभाग, बीएचयू ने कहा कि आधुनिक दौर में बाजार की ताकतों के प्रभुत्व, गला काट प्रतियोगिता, भौतिकवाद की विचारधारा और व्यक्तिवाद में अत्यधिक विश्वास के कारण नकारात्मकता का माइंडसेट बनना चिंता का विषय है। प्राचीन भारतीय चिंतन में इन सभी चिंताओं के समाधान सहज ही प्राप्त हैं। भारतीय दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हुए प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि यह सांसारिक वास्तविकताओं से अप्रभावित प्रसन्नता की अवस्था प्राप्त करने के लिए प्रयास करने का प्रतिपादन करता है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो. पंकज सिंह ने कहा कि सकारात्मक मनोविज्ञान मन और शरीर के एकीकरण में सहायक है। योग को इस एकीकरण में महत्वपूर्ण प्रक्रिया बताते हुए प्रो. सिंह ने कहा कि योग सकारात्मक दृष्टिकोण को परिपोषित करने में सहायक है। भारतीय चिंतन परंपरा में श्वास विज्ञान में प्राणायाम के महत्व को बताते हुए कहा कि इसके अभ्यास से मन को नियंत्रित करने की शक्ति प्राप्त होती है।

कार्यक्रम के संयोजक डॉ. अशोक सिंह ने कहा कि सकारात्मक मनोविज्ञान और भारतीय मनोविज्ञान दोनों का प्रमुख लक्ष्य सतत प्रसन्नता है। उन्होंने कहा कि भारतीय प्रज्ञा इस बात पर बल देती रही है कि सभी के कल्याण का लक्ष्य वैश्विक मंत्र होना चाहिए। कार्यक्रम का संचालन डॉ. सोनल सिंह व अतिथियों का सम्मान व धन्यवाद ज्ञापन प्रो. गजेंद्र दास ने किया। इस अवसर पर प्रो. अनिल कुमार, प्रो. विश्वनाथ वर्मा, प्रो. जगदीश सिंह, प्रो. शुभ्रा सिंह, प्रो. संजय सिंह, डॉ. राम आशीष, डॉ. धर्मेंद्र गुप्ता,अजय गौतम,आकांक्षा सिंह, मो. अबू शाहिद सहित समस्त अध्यापक व कर्मचारी उपस्थित रहे।