बीएचयू में पुरालिपि-पांडुलिपि विज्ञान उन्नत प्रशिक्षण, ब्राह्मी के उद्भव, विकास व मूलाधार पर चर्चा
वाराणसी। बीएचयू स्थित भारत अध्ययन केंद्र के तत्वावधान में भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद नई दिल्ली से प्रायोजित पुरालिपि शास्त्र एवं पांडुलिपि विज्ञान उन्नत प्रशिक्षण कार्यक्रम विषयक राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इसमें ब्राह्मी लिपि के उद्भव, विकास व मूलाधार पर विस्तार से चर्चा की गई।
कार्यशाला के 12वें दिवस के मुख्य वक्ता डॉ टीएस रविशंकर श्रीनिवासन निदेशक एपीग्राफिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया ने अत्यंत सरल, सहज और बारीकी से ब्राह्मी लिपि के उद्भव, विकास क्रम तथा मूलाधार पर प्रकाश डाला। उन्होंने मौर्यन ब्राह्मी, कुषाण ब्राह्मी, क्षत्रप ब्राह्मी साथ गुप्त तथा वाकाटक ब्राह्मी के स्वर, व्यंजन, संयुक्त अक्षर तथा मात्राओं का ज्ञान कराया। उन्होंने प्रतिभागियों को अक्षरों, मात्राओं का बड़ी तन्मयता के साथ अभ्यास भी कराया। साथ ही लेखन और वाचन का भी कार्य किया गया। उनकी ओर से अनेकों अभिलेखों को पढ़ाया गया, जैसे प्रयाग प्रशस्ति, कहोम अभिलेख, एरन अभिलेख, मेहरौली लौह स्तंभ लेख, शिवनी ताम्रपत्र, पुणे ताम्रपत्र तथा उदयगिरि आदि का वाचन, लेखन तथा लिपि का अभ्यास कराया गया।
द्वितीय सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में पुरालिपि विशेषज्ञ प्रोफेसर सुमन जैन विभागाध्यक्ष प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय ने बहुत ही प्रासंगिक एवं सारगर्भित व्याख्यान प्रस्तुत किया। प्रोफेसर जैन ने अशोकन ब्राह्मी से लेकर गुप्त ब्राह्मी तक के विभिन्न वेरिएशन को बताया। साथ ही लिपियों के विकास क्रम में कुटिल लिपि की विशेष चर्चा की। उन्होंने कुटिल लिपि के नामकरण के संदर्भ में कुटिलक्षराणी व विकताक्षराणी जैसे शब्दों को प्रमाणित भी किया। उदाहरण स्वरूप लिपिशास्त्र विशेषज्ञ जीएच ओझा, टाड, ब्यूलर,जेम्स प्रिंसेप का उदाहरण दिया। साथ ही अफसड अभिलेख हर्ष का बांसखेड़ा अभिलेख इत्यादि की भी चर्चा किया। प्रोफेसर सदाशिव द्विवेदी ने पांडुलिपि के बारे में बताया। इस अवसर पर कार्यशाला की संयोजिका डॉक्टर प्रियंका सिंह ने मुख्य वक्ताओं का स्वागत किया। कार्यशाला के आयोजन में सचिव डॉ ज्ञानेंद्र नारायण राय, आयोजन समिति सदस्य डॉ उत्तम कुमार द्विवेदी आदि उपस्थित रहे।