सभी पापों का नाश कर सौभाग्य प्रदान करती है वामन द्वादशी

हिन्दू पंचांग के अनुसार एकादशी के बाद बारहवीं तिथि को द्वादशी कहा जाता है। अमावस्या के बाद आने वाली द्वादशी शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि कहलाती है। इसे वामन द्वादशी भी कहते हैं। कहते हैं कि इस तिथि पर भगवान विष्णु के पांचवें अवतार वामनदेव राजा बलि के अहंकार को दूर करने के लिए धरती पर अवतरित हुए थे। 
 

वाराणसी। हिन्दू पंचांग के अनुसार एकादशी के बाद बारहवीं तिथि को द्वादशी कहा जाता है। अमावस्या के बाद आने वाली द्वादशी शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि कहलाती है। इसे वामन द्वादशी भी कहते हैं। कहते हैं कि इस तिथि पर भगवान विष्णु के पांचवें अवतार वामनदेव राजा बलि के अहंकार को दूर करने के लिए धरती पर अवतरित हुए थे। 

द्वादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा होती है। स्कन्द पुराण और महाभारत के अश्वमेधिक पर्व में उल्लिखित किया गया है कि हर महीने द्वादशी की तिथि पर शंख में दूध और गंगाजल मिलाकर भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण का अभिषेक करना चाहिए। इस दिन श्री हरि विष्णु के पूजन के बाद ब्राह्मणों को दान करने का भी विधान है। एकादशी का व्रत भी द्वादशी के दिन ही समाप्त होता है। इस दिन की पूजा अर्चना से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और परिवार में सुख समृद्धि और शांति का वास होता है। माना गया है कि इस दिन जन्म लेने वाले लोग मेहनती होते हैं और अपने प्रयासों से अपना भाग्य बनाते हैं। द्वादशी को यात्रा छोड़कर सभी शुभ काम करना फलदायी होता है।

कैसे करें द्वादशी की पूजा
इस दिन सुबह उठकर स्नान आदि के बाद वामन देव की पूजा अर्चना पूरे श्रद्धा भाव से करनी चाहिए। एक चौकी पर लाल या पीले वस्त्र बिछाकर वामन भगवान की तस्वीर रखें, उसके बाद चावल रखकर कलश स्थापित करें। कलश में जल भरने के बाद उस पर आम के पत्ते और उसके बाद उस पर नारियल रखें। कलश पर मौली बांध दें। अब धूप-दीप जलाकर पूजा आरती करें। आरती के बाद वामन अवतार की कथा का श्रवण करें। इसके बाद किसी गरीब या ब्राह्मण को भोजन कराएं और स्वेच्छानुसार दान करें।