दशहरे पर बरेका में जलेगा 75 फीट का रावण, मुस्लिम परिवार बना रहा पुतला, चार पीढ़ियों से निभा रहे परंपरा

बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक महापर्व दशहरा 12 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इसको लेकर काशी में तैयारियां जोरों पर हैं। बरेका में रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ के विशालकाय पुतलों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। इन पुतलों को बनाने का कार्य शमशाद का परिवार कर रहा है, जो चार पीढ़ियों से दशहरे के पुतले तैयार करने की परंपरा को जीवित रखे हुए हैं।
 

वाराणसी। बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक महापर्व दशहरा 12 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इसको लेकर काशी में तैयारियां जोरों पर हैं। बरेका में रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ के विशालकाय पुतलों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। इन पुतलों को बनाने का कार्य शमशाद का परिवार कर रहा है, जो चार पीढ़ियों से दशहरे के पुतले तैयार करने की परंपरा को जीवित रखे हुए हैं।

शमशाद और उनका परिवार दशहरा से पहले इस काम में जुट जाता है। इस बार वे पूर्वांचल का सबसे बड़ा, 75 फीट ऊंचा रावण का पुतला तैयार कर रहे हैं। रावण के साथ कुंभकर्ण और मेघनाथ के पुतले भी बनाए जा रहे हैं। इस कार्य में उनके परिवार के 12 सदस्य, जिसमें बेटे, भाई और महिलाएं शामिल हैं, दिन-रात मेहनत कर रहे हैं।

शमशाद ने बताया कि इस परंपरा की शुरुआत उनके नाना ने की थी। उनका परिवार आज भी इसे निभा रहा है। डेढ़ महीने पहले से ही परिवार इस काम में जुट जाता है, ताकि दशहरे के दिन रावण का पुतला तैयार हो सके।

खास बात यह है कि शमशाद का परिवार वाराणसी में प्रमुख स्थानों पर जलाए जाने वाले सभी रावण के पुतलों को तैयार करता है। इनमें बीएलडब्ल्यू के रामलीला मैदान, रामनगर, लंका, मलदहिया, और फुलवरिया जैसे स्थान शामिल हैं। शमशाद और उनके परिवार द्वारा तैयार किए गए पुतले दशहरे के उत्सव में गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल पेश करते हैं, जो काशी की विविधता और सांस्कृतिक समन्वय को दर्शाते हैं।