अस्सी स्थित गोयनका संस्कृत विद्यालय में महारानी लक्ष्मीबाई का मनाया गया 188 वां जन्मोत्सव

 

वाराणसी। शनिवार दिनांक 11 नवम्बर 2023 को अस्सी स्थित गोयनका संस्कृत विद्यालय में महारानी लक्ष्मीबाई का 188 वां जन्मोत्सव हर्ष व उल्लास के साथ मनाया गया। वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई को अपने जीवन का आदर्श मानने वाली बहनों का एकत्रीकरण व प्रदर्शन वस्तुतः रोमांचक रहा। कार्यक्रम की शुरुआत न्यास के महामंत्री राजेन्द्र प्रताप पांडेय एडवोकेट के आह्वान से दीप प्रज्वलित कर के हुआ। पांडे ने कार्यक्रम की प्रस्तवना रखते हुए अपने उद्बोधन में कहा कि रानी एक शत्रु बहुतेरे होने लगे वार पर वार --------

कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी महारानी लक्ष्मीबाई के जन्मदिन को मना कर लक्ष्मीबाई की स्फूर्ति ऊर्जा उत्साह एवं अदम्य साहस को धारण किये हुए देश की आन बान एवं शान पर खुद को न्योछावर करने वाली भारतीय संस्कृति, संस्कारों एवं राष्ट्रभक्ति से ओत प्रोत बालिकाओं के कार्यक्रम हुए। उसके उपरांत महारानी लक्ष्मीबाई की भव्य शोभायात्रा स्मारक स्थल पर परिक्रमा के साथ पुष्पार्चन हुआ। वर्ष पर्यंत लक्ष्मीबाई के जीवन चरित्र से प्रेरणा लेकर बालिकाएं व नारीशक्ति ऊर्जान्वित होती है। आदर्श शिक्षा मंदिर के प्रतिभागियों द्वारा गणेश वंदना प्रस्तुत किया। समूह नृत्य-आरम्भ है प्रचण्ड है की मोहक प्रस्तुति लिटल स्टार स्कूल के विद्यार्थियों ने किया।

विवेकानंद इन्टर कालेज की छात्रा के एकल नृत्य पर सभी ने जम कर करतल ध्वनि से उत्साह वर्धन किया। पाणिनि विद्यालय की वीर बालाओं ने भाला, लेजियम, तलवार के प्रदर्शन से सिद्द कर दिया कि भारत की बालिकाएं राष्ट्र रक्षा हेतु तैयार हैं। अनन्य राय के राष्ट्र भक्ति गीत गाया, बुंदेले हर बोलो के मुंह हमने सुनी कहानी थी पर किया हुआ समूह नृत्य सराहनीय प्रदर्शन कहा जायेगा।
आज से अब से इन मैं मेरी मैं तुमको ना छूने दूंगी गीत पर रोमांचक समूह नृत्य एवम महारानी लक्ष्मीबाई के जीवन पर नृत्य नाटिका की भावपूर्ण प्रस्तुति प्रशंसनीय अभिनय रहा।

कार्यक्रम में मुख्य वक्ता राष्ट्र सेविका समिति की राष्ट्रीय बौद्धिक प्रमुख डॉक्टर शरद रेणु ने अपने उद्बोधन में कहा आज के पावन पर्व पर मंचासीन का स्वागत, बाबा विश्वनाथ, मां गंगा व प्रांगण में उपस्थित बहने, बालिकाएं सबको नमन। आज का दिन महिला सशक्तिकरण के नाम से जाना जाता है। हिंदी तिथि को काशी ने चुना, आज का दिन नारी के अंदर के तेज को प्रकट करने का है, त्योहार के होते हुए बालिकाओं का प्रदर्शन भी इसी तेज को स्फुरित किया, महारानी के शौर्य को कार्यक्रम के माध्यम से रखा। माता
अन्नपूर्णा की नगरी में जन्मी मनु ने मैं अपनी झांसी नही दूंगी का मंत्र दिया, अर्थात मैं अपने भारत की मिट्टी का एक कण भी नही दूंगी।

22 जनवरी को हम जिस श्री राम के भव्य मंदिर का शिलान्यास कर रहे, वो श्री राम माता सीता सहित वनवास में जिस मिट्टी की रोज पूजा करते थे वो अपनी जन्म भूमि भारत की मिट्टी थी। माता भूमि पुत्रो अहम पृथ्वीयाः - ऐसी भावना जताता वसुधैव कुटुम्ब कहने वाला अभी G20 के माध्यम से अभी भारत ने पुनः दिया। इस धरती की मातृत्व को धरना कर महात्मा बन जाते हैं। मुट्ठी भर लोग भारत को कैसे गुलाम बनाया - मनु के इस प्रश्न का जवाब देते हैं कि यह फूट डाल कर साशन करने की नीति से है।


तेजश्वीनी मनु तांत्या टोपे की टोली में शामिल हुई, कृतित्व व मातृव के सम्मिश्रण का शौर्य प्रस्तुत करने वाली मनु। संग्राम सिंह डाकू ही कई बार महारानी से युद्ध किया उसे भी भारत माता के चरणों मे समर्पण करने हेतु बात करने जाती हैं और उसे अंग्रेजो के विरुद्ध युद्ध हेतु तैयार कर लिया।

महारानी की सुंदर मुन्दर सखियों झलकारी बाई व अन्य को युद्ध में निपुण किया। ऐसी मातृत्व की भवना से सैनिकों के लिए भोजन बनवाने वाली लक्ष्मीबाई अपने सैनिकों व प्रजा के साथ आत्मिक सम्बन्ध का वर्णन मिलता है। एक सैनिक के घायल होने पर उनके नेत्रों से ऐसे आंसू बहते है जैसे उनके बेटे को चोट लगी हो। क्षत विक्षत चोटिल होने के बाद वह कहती हैं मेरे शरीर को कोई अंग्रेज हाथ न लगावे और दामोदर से कहती हैं आज से तुमसे मेरी विदाई है- रोते दामोदर को छोड़ कर मातृ भूमि के लिए अमरत्व को प्राप्त करती हैं। अहम भावी तेजश्वी राष्ट्रय धन्या ऐसी प्रार्थना राष्ट्र सेविका समिति में गाई जाती है एवं हम भारत को मातृत्व की भावना से भारत को देखना, श्रेष्ठता से समझना। रामकृष्ण परमहंस मा शारदा को कहते हैं सांसारिक रूप से तुम मेरी पत्नी हो किन्तु मैं तुम में  माँ काली के दर्शन करना चाहते हैं- जो मातृत्व, जन कल्याण, राष्ट्र रक्षा के भाव को प्रस्तुत करती है, मां शारदा कहती है जैसा आप कहे मैं वही करूंगी।


भारत का हर बच्चा अखण्ड भारत की ही कल्पना करता है, भले ही भौगोलिक रूप से वह हमारा नही किन्तु हम सभी उन भूखंडों को मातृत्व की भावना से अपने अखण्ड भारत को याद करता है, यह हमारी भूमि है। हमे गूगल से उसी अखण्ड भारत को देख रोज याद करना चाहिए ताकि  पुनः उसी अखण्ड भारत को  प्राप्त कर सके। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए तिब्बती संस्थान कुल सचिव डॉक्टर सुनीता चंद्रा जी ने कहा कि  मैं तो अचंभित हूं ऐसे रोमन्चक व ऊर्जावान महारानी स्वरूपा को देख , प्रत्येक प्रतिभागी में  महारानी दिखी।

इस दौरान न्यासी उपाध्यक्ष आरती अग्रवाल, डॉक्टर रंजना श्रीवास्तव, मंत्री कोषाध्यक्ष दुर्गा पांण्डेय, न्यासी मीना चौबे, डॉ. मंजू द्विवेदी, लीला कुमारी, अंजू सिंह कार्यक्रम की कुशल संचालिका, डॉ. भारती मिश्रा, कार्यक्रम संयोजिका कविता मालवीय व विजय मिश्रा, कल्पना, वैदेही, पद्मजा, संतोष केशरी, ड़ॉ. रजनीश, कुमकुम पाठक, गीता शास्त्री, माधुरी शर्मा, वीणा पाण्डे, ज्योत्सना वाजपाई आदि गणमान्य उपस्थित रहे।