सर्दी के साथ ही काशी में साइबेरियन पक्षियों की दस्तक, कलरव से गुंजायमान हो रहे गंगा घाट
वाराणसी। सर्दी की दस्तक के साथ ही काशी में साइबेरियन पक्षियों के पहुंचने का क्रम शुरू हो गया है। गंगा घाटों पर जहां विदेशी और देशी पर्यटकों की चहल-पहल रहती है, वहीं अब उनके साथ-साथ साइबेरियन पक्षियों का कलरव भी लोगों को आकर्षित कर रहा है। हजारों किलोमीटर की दूरी तय कर आने वाले साइबेरियन पक्षी फरवरी तक काशी में अपना आशियाना बनाते हैं। वहीं गर्मी की आहट के साथ ही वापस लौटने लगते हैं।
हर साल सर्दियों की शुरुआत के साथ साइबेरिया और मध्य एशिया के ठंडे इलाकों से हजारों की संख्या में ये पक्षी सात समंदर पार उड़कर वाराणसी पहुंचते हैं। इनका यह प्रवास लगभग 10,000 किलोमीटर लंबी यात्रा का हिस्सा होता है। इतनी लंबी दूरी तय करने के बाद ये पक्षी गंगा की तटवर्ती जलवायु और यहां के अनुकूल वातावरण में अपना अस्थायी घर बना लेते हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, इन पक्षियों का आगमन सामान्यतः अक्टूबर के अंत से नवंबर की शुरुआत में शुरू होता है, जब उत्तरी एशिया और साइबेरिया के इलाकों में तापमान शून्य से नीचे चला जाता है। वाराणसी की मध्यम सर्द जलवायु और गंगा की स्वच्छ जलधारा उन्हें रहने और भोजन के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करती है। यहां उन्हें पर्याप्त मात्रा में मछलियाँ, कीट और पर्यटकों द्वारा डाला गया दाना आसानी से मिल जाता है।
सर्दियां समाप्त होते ही, यानी फरवरी के अंत या मार्च की शुरुआत में, ये पक्षी अपने मूल स्थान साइबेरिया की ओर लौट जाते हैं, जहां गर्मी शुरू होने पर उनका प्रजनन काल प्रारंभ होता है। इस प्रकार, हर साल इनका यह मौसमी प्रवास (Migratory Cycle) प्रकृति के संतुलन का प्रतीक बन जाता है।
गंगा घाटों पर आने वाले पर्यटकों के लिए ये पक्षी किसी वरदान से कम नहीं हैं। नाव पर सवार होकर सैलानी जब इन पक्षियों के बीच से गुजरते हैं, तो मानो गंगा की गोद में प्रकृति का उत्सव अनुभव करते हैं। विदेशी सैलानी अक्सर इन पक्षियों को आवाज देकर बुलाने की कोशिश करते हैं और ये पक्षी भी उतनी ही सहजता से पास आ जाते हैं।
वाराणसी के अस्सी घाट, राजघाट, दशाश्वमेध और रविदास घाट जैसे प्रमुख स्थलों पर इन पक्षियों का जमावड़ा खासतौर पर देखने को मिलता है। गंगा की लहरों पर उनका उड़ना और पानी में कलरव करना घाटों के सौंदर्य को और अधिक जीवंत बना देता है।