पंचतत्व में विलीन में होने वाले महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर आखिर क्यों बंद हो गई चिताओं की गिनती !
ऐसा हम नहीं कर रहे हैं, ये प्रशासन के आंकड़े बताते हैं। यह परंपरा वर्ष 1998 से चली आ रही है। यहां कोई भी कभी भी आकर शवदाह कर सकता है। इसके लिए ना किसी आधार कार्ड की जरूरत, ना किसी पर्ची की जरूरत। यहां तक कि इसके बारे में कोई जांच पड़ताल नहीं होती। जबकि यहां चिताएं 24 घंटे चलती रहती हैं।
काशी में मरे तो मिले मोक्ष...
काशी मोक्ष की नगरी होने के कारण पूर्वांचल समेत पूरे उत्तर प्रदेश के लोग यहां पर अपने परिजनों के अंतिम संस्कार के लिए आते हैं। मान्यता है कि यहां पर अंतिम संस्कार होने से मृतक की आत्मा को शिवलोक की प्राप्ति होती है। काशी में के महाश्मशान पर दाह संस्कार के लिए आए शवों की कोई गिनती नहीं होती। जबकि वहीं पूर्वांचल के दूसरे बड़े गंगा घाट गाजीपुर में बाकायदा पर्ची दी जाती है और रजिस्टर में इसका रिकॉर्ड भी दर्ज होता है।
हरिश्चंद्र घाट पर दर्ज होता है रिकॉर्ड
काशी में हरिश्चंद्र घाट पर सीएनजी से संचालित शवदाह गृह में रिकॉर्ड रखा जाता है। यहां पर शवदाह मुश्किल से औसत पांच लोग ही प्रतिदिन करते हैं। इसका संचालन नगर निगम द्वारा किया जाता है और शवदाह से पहले इसकी पर्ची काटी जाती है। लेकिन हरिश्चंद्र घाट पर जो शव आते हैं, वह या तो लावारिस होते हैं या जिनके परिजन आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं, बस उन्हें के यहां पर अंतिम संस्कार किए जाते हैं।
बाबा मशाननाथ व काशी मोक्षदायिनी सेवा समिति के अध्यक्ष पवन कुमार चौधरी का कहना है कि पहले रिकॉर्ड मेंटेन होता था, लेकिन वर्ष 1998 में तत्कालीन नगर आयुक्त बाबा हरदेव सिंह के अने के बाद से यह प्रक्रिया बंद हो गई।
1998 के पहले मणिकर्णिका पर नगर निगम की चौकी होती थी। वहीं पर इसकी रसीद कटती थी ।साथ ही रजिस्टर भी मेंटेन होता था, फिर किसी ने फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र बनवा लिया। जिसके बाद इस प्रक्रिया को बंद कर दिया गया।
- अमरदेव यादव, पार्षद।
पहले नगर निगम यहां पर पर्ची काटता था। 1998 से यह व्यवस्था बंद है। जन्म और मृत्यु के संबंध में सरकार की नई गाइडलाइन के अनुसार कार्यालय में ही रिकॉर्ड दर्ज होता है।
- अक्षत वर्मा, नगर आयुक्त।