वाराणसी स्पेशल : आत्मनिर्भरता की नई कहानी लिख रही हैं वाराणसी की 1 लाख से अधिक ‘बैंक सखियां'
वाराणसी। सरकार के राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के जरिए ग्रामीण महिलाओं के स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता की नई कहानी आकार ले रही है। गांवों में महिलाओं को बैंकिंग व्यवस्था से जोड़ने और उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत बनाने की दिशा में मिशन की ‘बैंक सखी’ योजना प्रभावी माध्यम बनकर उभरी है। बैंक सखियाँ प्रतिदिन बैंक परिसर में बैठकर बैंकिंग सेवाएं लेने वाले ग्राहकों, स्वयं सहायता समूहों और उनके सदस्यों को जटिल प्रक्रियाओं में हर तरह का सहयोग दे रही हैं। इससे न केवल बैंकिंग प्रक्रिया आसान हुई है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय जागरूकता भी बढ़ी है, जिसका सीधा असर महिलाओं की आय में वृद्धि के रूप में दिख रहा है।
11 हजार स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी 1.3 लाख महिलाएं
योगी सरकार के प्रयासों से वाराणसी में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन की योजनाओं के तहत 11 हजार से अधिक स्वयं सहायता समूह गठित किए जा चुके हैं। इन समूहों से लगभग 1.3 लाख महिलाएं जुड़ी हैं, जो विभिन्न रोजगारपरक गतिविधियों से अपनी आमदनी बढ़ा रही हैं। मिशन के माध्यम से इन समूहों को रिवॉल्विंग फंड, सामुदायिक निवेश निधि, जोखिम निवारण निधि और आजीविका निधि के अंतर्गत अब तक 100 करोड़ रुपये से अधिक की सहायता राशि उपलब्ध कराई जा चुकी है।
111 बैंक सखियाँ निभा रहीं अहम भूमिका
मुख्य विकास अधिकारी प्रखर कुमार सिंह ने बताया कि वाराणसी जनपद में इस समय कुल 111 बैंक सखियाँ सक्रिय हैं। इन सभी महिलाओं को बैंकिंग मॉड्यूल और आरसेटी (रूरल सेल्फ एम्प्लॉयमेंट ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट) के माध्यम से प्रशिक्षण दिया गया है। इसके बदले मिशन की ओर से उन्हें मानदेय दिया जाता है। साथ ही अधिकांश बैंक अपनी नीति के अनुसार खाता खुलवाने और ऋण दिलाने पर अतिरिक्त कमीशन भी प्रदान करते हैं। बैंक सखियों की सक्रियता का सकारात्मक परिणाम यह रहा कि विभागीय क्रेडिट लिंकेज का वार्षिक लक्ष्य अक्टूबर 2025 में ही पूरा कर लिया गया, जिसे ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन की दिशा में बड़ी सफलता माना जा रहा है।
6 से 8 हजार रुपये महीना कमा रहीं बैंक सखियाँ
उपायुक्त (स्वरोजगार) पवन कुमार सिंह ने बताया कि बैंक सखियों को मिशन की ओर से प्रतिमाह 4000 रुपये मानदेय और लगभग 2000 रुपये इंसेंटिव मिलता है, जबकि बैंक की ओर से भी करीब 2000 रुपये प्रतिमाह का मानदेय दिया जाता है। इस तरह बैंक सखियाँ औसतन 6 से 8 हजार रुपये प्रति माह कमा रही हैं। इससे महिलाओं को रोजगार के नए अवसर मिले हैं और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भी सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहा है।
महिला केंद्रित ऋण योजनाओं पर बढ़ा फोकस
जिला मिशन प्रबंधक श्रवण कुमार सिंह ने बताया कि हाल के दिनों में बैंक सखियों ने विभिन्न बैंकों द्वारा शुरू की गई महिला केंद्रित ऋण योजनाओं, खासकर उद्यम ऋण, पर विशेष फोकस करना शुरू किया है। यह पहल ग्रामीण महिलाओं के सशक्तिकरण, रोजगार और आत्मनिर्भरता का मजबूत आधार बन रही है।
बैंक सखियों की जुबानी बदलाव की कहानी
ग्राम गंगापुर की बैंक सखी रोशनी शर्मा का कहना है कि डबल इंजन की सरकार की योजनाओं से महिलाओं को दोहरा लाभ मिला है। महिलाएं अब आर्थिक और सामाजिक दोनों रूप से सशक्त हो रही हैं। साहूकारों से छुटकारा दिलाकर ग्रामीण क्षेत्रों के जरूरतमंद लोगों को सीधे बैंक से जोड़ा गया है।
वहीं ग्राम नरपतपुर की बैंक सखी माला बताती हैं कि योगी सरकार ने महिलाओं को घर से बाहर निकलकर सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर दिया है। अच्छी आय के साथ आर्थिक गतिविधियों की समझ बढ़ी है और अब परिवार व गांव में महिलाओं की सलाह और मदद को महत्व दिया जाने लगा है।
कुल मिलाकर, ‘बैंक सखी’ योजना ग्रामीण महिलाओं के लिए रोजगार, सम्मान और आत्मनिर्भरता की मजबूत कड़ी बनकर उभरी है, जो गांव और बैंक के बीच की दूरी पाटते हुए विकास की नई इबारत लिख रही है।